कोई व्यक्ति खेलकूद में अपना सुख ढूंढता है, कोई गीत संगीत में, कोई खाने पीने में, कोई फैशन में, और कोई सुंदर वस्त्र आभूषण में। *"हर व्यक्ति सुख या प्रसन्नता को प्राप्त करने के लिए दिन रात योजनाएं बनाता रहता है, और उसके लिए पुरुषार्थ भी करता है। इन सब कार्यों में सुख मिलता भी […]
श्रेणी: आज का चिंतन
जब हम सर्वोच्च आध्यात्मिक इच्छा को धारण कर लेते हैं तो क्या होता है? उच्च अधिकारियों के साथ पवित्र और दिव्य सम्बन्धों का क्या महत्त्व है? शचीवइन्द्रपुरुकृद् द्युमत्तमतवेदिदमभितश्चेकितेवसु। अतः संगृभ्याभिभूतआभरमात्वायतोजरितुः काममूनयीः।। ऋग्वेदमन्त्र 1.53.3 (शचीवः) सभी विद्वानों में सर्वोच्च विद्वता, सभी शक्तियों, बलों और ऊर्जाओं का स्रोत (इन्द्र) सर्वोच्च नियंत्रक, परमात्मा (पुरुकृत्) प्रत्येक को धारण और […]
** Dr DK Garg रामायण में भ्रांतियां पुस्तक से साभार , निवेदन: कृपया अपने विचार बताएं और शेयर करे। एक प्रश्न है कि मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति पर सिन्दूर का लेप लगाते है। ऐसा क्यों है? दरअसल हर मूर्खता,अज्ञानता के कार्य को वैज्ञानिक बताने और किसी न किसी किस्से कहानी से जोड़ने की […]
Dr D K Garg भाग 1 निवेदन: PLz share and give your feedback, चामुंडा माता के नाम से देश के विभिन्न राज्यों में मंदिर है। जिनमें हिमाचल प्रदेश ,राजस्थान ,उज्जैन , बिहार और गुजरात के मंदिर ज्यादा प्रसिद्व है। यहां चामुंडा नामक देवी की पूजा करते है और मन्नत मांगते हैं। प्रचलित कथा और मान्यताये: […]
परमात्मा हमें क्या देता है? सर्वोच्च इन्द्र की महिमा के लिए शब्द प्रस्तुत करने में कौन सक्षम है? सर्वोच्च इन्द्र के द्वारा कौन कुचला जाता है? दुरोअश्वस्य दुरइन्द्रगोरसिदुरो यवस्य वसुनइनस्पतिः। शिक्षानरः प्रदिवोअकामकर्शनः सखासखिभ्यस्तमिदं गृणीमसि।। ऋग्वेदमन्त्र 1.53.2 (दुरः) दाता, सुखों का द्वार (अश्वस्य ) अश्वों का, कर्मेंन्द्रियों का (दुरः) दाता, सुखों का द्वार (इन्द्र) परमात्मा, इन्द्रियों […]
वास्तविक यज्ञ करने वाला व्यक्ति किस प्रकार का होता है? यज्ञ के स्थान पर किस प्रकार के वातावरण का निर्माण होता है? ऋग्वेदमन्त्र 1.53.1 न्यू३षुवाचंप्रमहेभरामहेगिरइन्द्राय सदनेविवस्वतः। नूचिद्धि रत्नंससतामिवाविदन्न्ादुष्टुतिर्द्रविणोदेषु शस्यते।। 1।। (नि – भरामहे से पूर्व लगाकर) (सुवाचम्) उत्तम वाणियाँ (प्रार्थनाओं तथा पूजा की) (प्र – भरामहे से पूर्व लगाकर) (महे) महान् (भरामहे – नि प्र […]
दिव्य लोग परमात्मा की पूजा और उनका आह्वान् क्यों करते हैं? हमारी वृत्तियों का नाश कौन करता है? आर्चन्नत्र मरुतः सस्मिन्नाजौविश्वेदेवासोअमदन्ननुत्वा। वृत्रस्य यद्भृष्टिमता वधेननित्वमिन्द्रप्रत्यानंजघन्थ।। ऋग्वेद 1.52.15 (आर्चन् – नि आर्चन्) सदैव एवं नियमित आपकी पूजा करता है और आपका आह्वान करता है (अत्र) यहाँ, इस जीवन में (मरुतः) दिव्य श्रद्धालु, कम बोलने वाले (सस्मिन्) सम्पूर्ण […]
प्रत्येक व्यक्ति सदा सुखी रहना चाहता है, दुखी होना कोई भी नहीं चाहता। *”परंतु ईश्वर की न्याय व्यवस्था को न जानने के कारण, वह उल्टे-सीधे काम करता रहता है। दूसरों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार नहीं करता, बल्कि उन पर अन्याय करता रहता है, जिसके कारण ईश्वर की न्याय व्यवस्था से उसे अनेक प्रकार के दुख […]
Dr D K Garg ये एक अलंकारिक चित्रण है। विष्णु का तात्पर्य परमपिता परमात्मा से है जो महान रचनाकार हैं,चारो तरफ फैली रंग बिरंगी प्रकृति उसका श्रृंगार है,और आकाश से सूर्य की सतरंगी करने ,कलरव करती नादिया, ऊंचे ऊंचे पहाड़ जो तरह तरह के खनिज अपने में समेटे है। ईश्वर ने केवल सृष्टि ही नहीं […]
डॉ डी के गर्ग कृपया अपने विचार बताये और शेयर भी करे। दरअसल इस प्रसंग का वर्णन महाभारत के आदि पर्व में भी मिलता है। जिसके अनुसार एक बार शेषनाग ने इस पृथ्वी को अपने फन पर धारण किया था और जब वो (शेषनाग) थोड़ा सा हिलते हैं तो भूकंप आता है।क्या धरती किसीं वस्तु […]