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बिखरे मोती

शान्ति प्रेम प्रसन्नता, आत्मा का है नीड़

बिखरे मोती-भाग 202 गतांक से आगे…. संसार में भोगेच्छा से नहीं, अपितु भगवद्इच्छा से जीओ, और ध्यान रखो, भक्ति मार्ग में प्रभाव का नहीं, स्वभाव का महत्व है। अत: अपने स्वभाव को ऐसा बनाइये, जिससे प्रभु प्रसन्न हो जायें। प्रभु का सामीप्य (प्रभु-कृपा) प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि भक्त का मन इतना सधा […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-64

उपरोक्त लेखक आगे लिखते हैं कि-”रोम में कैथोलिकों की जनसंख्या लगभग पच्चीस लाख (1978 में) है। यहां प्रतिवर्ष सत्तर नये पादरी निर्माण किये जाते थे। जब 1978 में लुसियानी (जॉन पॉल प्रथम) पोप बने तब मात्र छह पादरी ही निर्माण होते थे। वस्तुत: शहर के अधिकांश क्षेत्रों में पैगन (अर्थात मूत्र्तिपूजक हिन्दू लोग) भरे थे […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-63

इतनी बड़ी संख्या में समाजसेवी संगठनों के होने के उपरान्त भी यदि परिणाम आशानुरूप नहीं आ रहे हैं तो यह मानना पड़ेगा कि कार्य उस मनोभाव से या मनोयोग से नहीं किया जा रहा है-जिसकी अपेक्षा की जाती है। हमें अपने सामाजिक स्वयंसेवी संगठनों की कार्यशैली को सुधारना होगा। जातिगत आधार पर बनने वाले सामाजिक […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-10

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-10 गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार हमारे देश में लोगों की मान्यता रही है कि शत्रु वह है जो समाज की और राष्ट्र की व्यवस्था को बाधित करता है। ऐसा व्यक्ति ही अधर्मी माना गया है। धर्म विरूद्घ आचरण करने वाला व्यक्ति समाज, राष्ट्र और […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-9

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-9 गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार अर्जुन समझता था कि दुर्योधन और उसके भाई, उसका मित्र कर्ण और उसका मामा शकुनि युद्घ क्षेत्र में उसके हाथों मारे जा सकते हैं, इसके लिए तो वह मानसिक रूप से पहले से ही तैयार था। वह यह भी […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-8

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-8 गीता का पहला अध्याय और विश्व समाज गीता के विषय के संक्षिप्त या विस्तृत होने की सभी शंका आशंकाओं, सम्भावना और असम्भावना के रहते भी गीता का पहला अध्याय गीताकार के उच्च बौद्घिक चिन्तन और विश्व समाज के प्रति भारत की जिम्मेदारियों को स्पष्ट करता है। गीताकार […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-7

इसके पश्चात सफेद घोड़ों से जुते हुए विशाल रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण और अर्जुन ने भी अपने दिव्य शंख बजाये, जिससे कि सभी को यह सूचना मिल जाए कि यदि कौरव युद्घ का शंखनाद कर चुके हैं तो पाण्डव भी अब युद्घ के लिए तैयार हैं। संजय धृतराष्ट्र को बता रहे हैं कि कृष्ण […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-6

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-6 वैदिक गीता-सार सत्य गीता ज्ञान व्यक्ति को भी परिमार्जित करता है और समाज को भी परिमार्जित करता है। उसका परिमार्जनवाद उसे हर व्यक्ति के लिए उपयोगी और संग्रहणीय बनाता है। अपने इस प्रकार के गुणों के कारण ही गीता सम्पूर्ण संसार का मार्गदर्शन हजारों वर्षों से करती […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-5

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-5 वैदिक गीता-सार सत्य हम अपनों को अपना मानकर उधर से किसी हमला की या विश्वासघात की अपेक्षा नहीं करते। अपनों की ओर से हम पीठ फेरकर खड़े हो जाते हैं। यह मानकर कि इधर से तो मैं पूर्णत: सुरक्षित हूं। कुछ समय बाद पता चलता है कि […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-2

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-2 वैदिक गीता-सार सत्य गीता की उपयोगिता इसलिए भी है कि यह ग्रन्थ हमें अपना कार्य कत्र्तव्य भाव से प्रेरित होकर करते जाने की शिक्षा देती है। गीता का निष्काम-भाव सम्पूर्ण संसार को आज भी दु:खों से मुक्ति दिला सकता है। परन्तु जिन लोगों ने गीता ज्ञान को […]

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