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बिखरे मोती

कड़ुवा और क्रोध में, मत बोलो कभी बोल

बिखरे मोती-भाग 86 मांगे से तीनों घटें,  प्यार पुरस्कार सत्कार। सहज भाव से होत है, सदा तीनों का विस्तार ।। 873 ।। बिन मांगे मत सीख दे, बिन श्रद्घा के दान। वाणी पर संयम रखें, वे नर चतुर सुजान  ।। 874 ।। सीख अर्थात उपदेश, सलाह मन को चिंता में नही, चिंतन में जो लगाय। […]

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बिखरे मोती

आत्मबोध से मिटत है,जग में सभी अभाव

बिखरे मोती-भाग 83 जग में दुर्लभ ही मिलें, उर में साधुभाव। यही तो दैवी संपदा, पार लगावै नाव ।। 860 ।। साधुभाव-अंत:करण के श्रेष्ठ भावों को साधुवाद कहते हैं। श्रेष्ठभाव अर्थात सद्गुण-सदाचार दैवी संपत्ति है। व्याख्या : इस संसार में जमीन जायदाद और धन वैभव के स्वामी तो बहुत मिलते हैं किंतु दैवी संपत्ति का […]

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बिखरे मोती

पवित्र बुद्घि से आत्मा के स्वरूप को पहचान

बिखरे मोती-भाग 174 गतांक से आगे…. जो आशा को ‘ब्रह्म’ मानकर उसकी उपासना करता है, उसके सब आशीर्वाद अमोघ होते हैं, फलते हैं, किंतु आशा की गति की भी एक सीमा है। नारद ने पूछा, तो क्या भगवन! आशा से बढक़र भी कुछ है? हां है। नारद ने कहा, तो भगवन! आप मुझे उसका ही […]

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बिखरे मोती भाग-52

चित चिंतन और चरित्र को, राखो सदा पुनीत भाव यह है कि प्रेम के बिना संसार के सारे रिश्ते ऐसे लगते हैं जैसे सूखा गन्ना। सूखा गन्ना शक्ल सूरत से तो बेशक गन्ना दिखाई देता है किंतु रस न होने के कारण वह अनुपयोगी हो जाता है। ठीक इसी प्रकार यदि सांसारिक रिश्तों में प्रेम […]

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बिखरे मोती भाग- भाग-75

युवा जीयें भविष्य में, ऐसा विधि-विधान जो जन आसक्ति रहित, अपनी सिद्धि में लीन। भूसुर ज्ञानी तपस्वी, मिलें दुर्लभ ऐसे कुलीन ॥813॥ स्वयं को करता माफ तू, गैरों से प्रतिशोध। ये तो आत्मप्रवंचना, कब जागेगा बोध ॥814॥ आत्मप्रवंचना- अपने आपको धोखा देना। कब जागेगा बोध से अभिप्राय है- अपनी गलती को मानने का विवेक कब […]

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बिखरे मोती भाग- 72

सोये शेर के मुखन में, हिरण कभी नहीं आय प्रेम का शाश्वत नियम है- “प्रेम यदि हृदय में हो तो नेत्र में उतरता है, नेत्र से फिर वह सामने वाले के हृदय में उतरता है।” यश धन अदने को मिलै, तो अपनों से कट जाए। ज्यों गुब्बारे में हवा, अधिक आय फट जाए ॥786॥ ‘अपनों […]

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बिखरे मोती

सतसंकलपों के कारनै, झुकता है संसार

बिखरे मोती भाग – 57 दया की करे अपेक्षा, खुद है दयविहीन। आड़े वक्त में तड़फता, जैसे जल बिन मीन ॥646॥ प्राय देखा गया है कि लोग स्वयं पर संकट आने पर परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करते हैं- हे प्रभु! दया करना, जबकि दूसरे पर संकट आने पर मुंह फेर लेते हैं अथवा उपहास करते […]

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बिखरे मोती – भाग 32

बुद्धिमान को चाहिए, छिपावै कुल का दोष जैसा लेकर भाग्य नर, आता इस संसार। सगे सहायक वैसे मिलें, जीविका कारोबार ॥467॥ कालचक्र तब भी चले, जब सोता इंसान। समा गए सब गर्भ में, काल बड़ा बलवान ॥468॥ जन्मांध और कामान्ध को, कुछ न दिखाई देय। भला बुरा दिखता नहीं, स्वार्थी को दीखै ध्येय ॥469।। कर्मों […]

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बिखरे मोती

ओउम नाम की नाव से, तरे अनेकों संत

आधी बीती नींद में, कुछ रोग भोग में जाए। पुण्य किया नहीं हरी भजा, सारी बीती जाए ॥415॥ धर्म कर्म का उपार्जन, खोले सुखों के द्वार। इनमें मत प्रमाद कर, कल खड़यो है त्यार ॥416॥ रसों में रस है ब्रह्मा रस, रोज सवायो होय। जितना हो रसपान कर, सारे दुखड़ा खोय ॥417॥ पग-पग पर यहाँ […]

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बिखरे मोती

आशा से ही मनुष्य कर्म करता है

बिखरे मोती-भाग 173 गतांक से आगे…. महर्षि सनत्कुमार ने कहा-ध्यान से बड़ा विज्ञान है। विज्ञान द्वारा ही ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद आदि, द्यु, पृथ्वी, आकाश, वायु, जल, अग्नि तथा धर्म-अधर्म सत्य-असत्य इत्यादि का ज्ञान होता है। इसलिए हे नारद! तू विज्ञान की उपासना कर। नारद ने फिर पूछा, विज्ञान से बढक़र क्या है? भगवन। महर्षि […]

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