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बिखरे मोती

मन पर पावै जो विजय, वह वीरों का भी वीर

बिखरे मोती-भाग 103 मद में हो मगरूर नर, करता है अन्याय। अहंकार आंसू बनै, जब हो प्रभु का न्याय ।। 946।। व्याख्या :- इस संसार में धन, यौवन अथवा पद के कारण अहंकार में चूर होकर जब व्यक्ति किसी को अपमानित करता है, अन्याय करता है अथवा उसकी अंतरात्मा को सताता है तो आक्रोष्टा के […]

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बिखरे मोती

सत्गुरू मिलै भक्ति जगै, जग में दुर्लभ होय

बिखरे मोती-भाग 102 जितने भी संयोग हैं, उतने ही हैं वियोग। अटल सत्य संसार का, मत लगा चिंता रोग ।। 943।। व्याख्या :- हमारे वेदों ने हमें जाग्रत पुरूष की तरह जिंदगी जीने के लिए प्रेरित किया है, किंतु इस संसार में अधिकांशत: मनुष्य आधी अधूरी जिंदगी जीते हैं। बेशक ऐसे व्यक्ति यज्ञ, सत्संग अथवा […]

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बिखरे मोती

पुण्यात्मा का मन सदा, हरि में रूचि दिखाय

बिखरे मोती-भाग 101 धन के संग में धर्म भी, ज्यों-ज्यों बढ़ता जाए। मन हटै संसार से, प्रभु चरणों में लगाय ।। 938 ।। व्याख्या :- इस नश्वर संसार में मनुष्य की धन दौलत जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, यदि उसी अनुपात में दान पुण्य अथवा भक्ति और धर्म के कार्यों में रूचि बढ़ती है, तो मन […]

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बिखरे मोती

कोयला हीरा एक है, किंतु भिन्न है मोल

बिखरे मोती-भाग 100 भौतिकता में मन फंसा, क्या जाने मैं कौन? नशा विकारों का चढ़ा, चेतन कर दिया मौन ।। 934 ।। व्याख्या :- इस संसार में ऐसे भी लोग हैं जो तन से तो मनुष्य हैं किंतु मन में पाशविकता इतनी भरी पड़ी है कि वे राक्षस और पिशाच की श्रेणी में आते हैं। […]

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तनु-भाव में जो रम गया, उसे मिलै हरि का देश

बिखरे मोती-भाग 99 ऋजुता का जीना सदा, राखै हरि समीप। एक कुटिलता के कारनै, बुझै ज्ञान का दीप ।।931।।  व्याख्या :- ऋजुता से अभिप्राय है कि सरलता अर्थात हृदय का कुटिलता रहित होना। जिनका हृदय ऋजुता से ओत-प्रोत होता है उन्हें प्रभु का सानिध्य प्राप्त होता है। वे प्रभु-कृपा  के पात्र होते हैं, किंतु हृदय […]

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बिखरे मोती

प्रेरणा ले आगे बढ़ै, करे जीवन का कल्याण

बिखरे मोती-भाग 106 चल मनुवा उस देश को, जहां मिलै आनंद। प्रकृति से है परे, वह प्यारा परमानंद ।। 955 ।। व्याख्या :- महर्षि पतंजलि ने कहा था कि संसार के सारे क्लेश तन, मन और बुद्घि में है। मन का स्वभाव है-माया (प्रकृति) में रमण करना, और बुद्घि को भी माया में ही लगाये […]

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बिखरे मोती

मुक्ति में इच्छा लेने की, भक्ति में देने का भाव

बिखरे मोती-भाग 90 कर्म बदल सत्कर्म में, जीवन के दिन चार। पुण्य मुद्रा स्वर्ग की, भर इसके भण्डार ।। 898 ।। व्याख्या :  हे मनुष्य! यह जीवन क्षणभंगुर है। जितना हो सके कर्मों को पुण्य में परिवर्तित कर क्योंकि स्वर्ग की मुद्रा पुण्य है। इसी के आधार पर तुझे स्वर्ग में प्रवेश मिलेगा। इसलिए समय […]

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बिखरे मोती

वह परमात्मा अज्ञान से अत्यंत परे है

बिखरे मोती-भाग 89 जितना समीप परमात्मा, इतना कोई नाहिं। कारण बनकै रम रहा, हर कारज के माहिं ।। 893 ।। व्याख्या : प्रकृति से अधिक समीप स्थूल शरीर है, स्थूल शरीर से अधिक समीप सूक्ष्म शरीर है, सूक्ष्म शरीर से अधिक समीप कारण शरीर है, कारण शरीर से अधिक समीप अहम है और अहम से […]

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बिखरे मोती

देह, आत्मा, जगत की, कभी एकता न होय

बिखरे मोती-भाग 88 कृपा जीवन बदल देती है, रंक को राजा बना देती है। दिखने में कृपा मामूली लगती है किंतु गुणकारी और प्रभावशाली इतनी होती है कि जिंदगी का कायाकल्प कर देती है। देखने में तो लाइटर की चिंगारी भी बड़ी सूक्ष्म होती है, किंतु जब वह चूल्हे की अग्नि बनकर जलती है तो […]

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बिखरे मोती

हे मनुष्य! याद रख, तू आनंद लोक का वासी है

बिखरे मोती-भाग 87 कर्म करो ऐसे सदा, मीठी याद बन जाय। तू पंछी उस देश का, जाने कब उड़ जाये ।। 885 ।।  व्याख्या : हे मनुष्य! यह जीवन क्षणभंगुर है। इसका कोई भरोसा नही है। तू पृथ्वी पर कर्म-क्रीड़ा करने के लिए आनंद लोक से आया है। इसलिए यहां पर ऐसे कर्म कर ताकि […]

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