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संपादकीय

‘ग्लोबल-विलेज’ की दोषपूर्ण अवधारणा

आजकल संपूर्ण विश्व को एक ग्राम (ग्लोबल बिलेज) कहने का प्रचलन बड़ी तेजी से बढ़ा है। विश्व में इस समय बाजारीकरण का वर्चस्व है और एक देश का उत्पाद दूसरे देश में बड़ी सहजता से उपलब्ध हो जाता है। थोड़ी सी देर में आज आप हवाई यात्राओं से विश्व के किसी भी कोने में पहुंच […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

कुतुबुद्दीन ऐबक, जयचंद और बनारस के वो बलिदान

जब पृथ्वीराज चौहान का तेजोमयी पुण्य प्रताप मां भारती के लिए अपना बलिदान देकर मां के श्री चरणों में विलीन हो गया, और जब ‘जयचंदी-छलप्रपंचों’ के कारण कई दुर्बलताओं ने मां केे आंगन में विदेशी आक्रांता को भीतर तक घुसने का अवसर उपलब्ध करा दिया तो मौहम्मद गौरी की मृत्यु के पश्चात उसके द्वारा भारत […]

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संपादकीय

राष्ट्र की आस्था बनाम व्यक्ति की आस्था

स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज ने सांईबाबा के लिए पिछले दिनों कह दिया कि सांई हिंदू नही, मुसलमान थे। इसलिए उनकी पूजा उचित नही कही जा सकती। स्वरूपानंद जी महाराज द्वारका पीठ के शंकराचार्य हैं, उनका कहना है कि सांई भगवान का अवतार नही है। स्वरूपानंद जी महाराज ने ये भी कहा है किसांई हिंदू मुस्लिम […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

गुर्जर प्रतीहारों ने रखा था 300 वर्ष तक देश सुरक्षित

सम्मान, संपत्ति, सत्ता और शक्ति के लिए विश्व के पिछले दो हजार वर्ष के युद्घ हुए हैं। इन युद्घों को लड़ते-लड़ते एक धारणा रूढ़ हो गयी, या स्थापित कर दी गयी कि जर, जोरू और जमीन के लिए तो सभी लड़ते हैं। जबकि ऐसा कहना समस्या का समाधान नही है, अपितु समस्या को और भी […]

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संपादकीय

मोदी जी ! मंत्रियों की भी ‘क्लास’ लो

कौटिल्य ने देश को चलाने के लिए किसी मंत्री की योग्यता की एक व्यवस्थित सूची हमें दी है। उनके अनुसार-‘‘एक मंत्री को देशवासी (विदेशी ना हो) उच्चकुलोत्पन्न (संस्कारित और उच्च शिक्षा प्राप्त) प्रभावशाली, कलानिपुण, दूरदर्शी, विवेकशील, (न्यायप्रिय दूध का दूध और पानी का पानी करने वाला-नीर-क्षीर विवेकशक्ति संपन्न) अच्छी स्मृति वाला, जागरूक, अच्छा वक्ता, (समाज […]

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संपादकीय

मोदी जी! मेट्रो सिटी नही ‘मेधा ग्राम’ बसाइए

ग्राम अपने आप में एक ऐसी व्यवस्था है जिसके विषय में इसके पूर्णत: आत्मनिर्भर पूर्णत: आत्मानुशासित और पूर्णत: आत्मनियंत्रित रहने की परिकल्पना को हमारे ऋषि पूर्वजों ने साकार रूप दिया। आज के भौतिकवादी युग में किसी ईकाई या संस्था के पूर्णत: आत्मनिर्भर आत्मानुशासित अथवा आत्मनियंत्रित होने की कल्पना नही की जा सकती। ग्राम्य और शहरी […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

मथुरा नरेश कुलचंद का वो अप्रितम बलिदान

बात सन 986-987 की है। भारत पर उस समय आक्रमण करने की एक श्रंखला को महमूद गजनवी अभी आरंभ कर नही पाया था। तब प्रतीहार वंश भारत में पतनोन्मुख हो चला था, यद्यपि यह वंश भारत के लिए बहुत ही गौरव प्रदान कराने वाला रहा था। ऐसा गौरव जिसे देखकर इतिहासकारों की मान्यता बनी कि […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

जब गुजरात की भूमि ने कुतुबुद्दीन ऐबक को चटाई थी धूल

गुजरात का प्राचीन काल से ही भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह प्रांत वीर गुर्जर जाति का निवास स्थान रहा है। गुर्जर जाति ने इस प्रांत से देश विदेश के बहुत बड़े भूभाग पर शासन किया और मां भारती के यश और शौर्य की गाथा का डिण्डिम घोष किया।

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संपादकीय

सबका हाथ, सबका साथ और सबका विकास

भारत के संविधान की मूल भावना के साथ हमारे राजनीतिज्ञों ने निहित स्वार्थों में निर्लज्जता की सीमा तक छेड़छाड़ की है। संविधान नही चाहता कि देश में किसी गरीब को सरकारी संरक्षण से केवल इसलिए वंचित होना पड़े कि वह किसी अगड़ी या सवर्ण जाति का है, लेकिन व्यवहार में कितने ही निर्धनों को जाति […]

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संपादकीय

नेहरू हार गये और सावरकर जीत गये

अभी हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा है। इस हार से पहुंचे ‘सदमे’ से सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेता अभी उभर नही पाए हैं। देश के लिए कांग्रेस का हार जाना बुरी बात नही है, बुरी बात है देश में अब […]

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