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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-40

तुर्किस्तान कर्नल टॉड का कहना है कि-”जैसलमेर के वृत्तांत में लिखा है कि यहां के यदु विक्रम से काफी समय पूर्व से ही गजनी और समरकन्द में शासन करते थे। वे यहां महाभारत के युद्घ के पश्चात आकर बस गये थे और फिर इस्लाम के उदय होने के पश्चात उन्हें भारत में धकेल दिया गया […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

हिंदू शक्ति के संगठनीकरण से राष्ट्रीय भावना को मिला बल

वीरता को अपने आधीन करके उसे अपनी चेरी बनाकर रखना हर शासक के लिए आवश्यक माना जाता है, विशेषत: तब जबकि वीरता या साहस किसी विपरीत पक्ष वाले व्यक्ति के पास हों। तब हर शासक यह मानता है कि यदि इस व्यक्ति का पूर्णत: दमन करके नही रखा गया तो यह भविष्य में तेरे लिए […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-68

इदन्नमम् का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो क्वाचिद्भूमौ शय्याक्वचिदपि च पर्यंकशयनम्  क्वचिच्छाकाहारी क्वचिदपि च शाल्योदन रूचि:। क्वचिन्तकन्थाधारी क्वचिदपि च दिव्याम्बर धरो, मनस्वी कार्यार्थी न गणपति दुखं न च सुखम्।। (नीतिशतक 83) भर्तहरि जी स्पष्ट कर रहे हैं कि जो व्यक्ति संकल्प शक्ति के धनी होते हैं, विचारधील और उद्यमी होते हैं, अपने कार्य की सिद्घि […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-39

सिंधु नदी के मुहाने से लेकर कुमारी अंतरीप तक समुद्र के किनारे रहने वाले लोगों के प्रयत्नों का ही प्रभाव था कि उनकी शानदार सभ्यता यहां पुष्पित एवं पल्लिवत हुई। ये लोग समुद्र के किनारे-किनारे चलकर ओमान, यमन होते हुए शक्तिशाली धारा को पार करके मिस्र न्यूकिया एवं अबीसिनिया आये। ये वही लोग हैं जो […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-38

विकास और विनाश के इस खेल को भारत अपने देवासुर संग्राम की कहानियों के माध्यम से स्मरण रखता है और उसे इसीलिए बार-बार दोहराता है अर्थात ध्यान करता है कि यदि कहीं थोड़ी सी भी चूक हो गयी या हमने प्रमादपूर्ण शिथिलता का प्रदर्शन किया तो महाविनाश हो जाएगा। यही कारण है कि भारत अत्यंत […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-37

मनु महाराज के पश्चात प्रियव्रत ने अपने पुत्र आग्नीन्ध्र को जम्बूद्वीप (आज का एशिया महाद्वीप), मेधातिथि को प्लक्षद्वीप (यूरोप), वयुष्मान को शाल्मलिद्वीप (अफ्रीका महाद्वीप), ज्योतिष्मान को कुशद्वीप (दक्षिण अमेरिका), भव्य को शाकद्वीप (आस्टे्रलिया) तथा सवन को पुष्करद्वीप (अण्टार्कटिका महाद्वीप) का स्वामी या अधिपति बनाया। पुराणों की इस साक्षी से पता चलता है कि भारत के […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-36

जलप्लावन की सूचना और भारतीय इतिहास भारत के इतिहास ने ज्योतिष शास्त्र और विज्ञान के क्षेत्र की बहुत सी घटनाओं को अपने में समाविष्ट किया है। इसलिए इसके गहन अध्ययन से अतीत की बहुत सी ऐसी घटनाओं की सूचना हमें सहज ही उपलब्ध हो जाती है जो कि ज्योतिष से या विज्ञान से जुड़ी होने […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-35

भारत के इतिहास में रूचि रखने वाले किसी भी विद्यार्थी को चाहिए कि वह भारत को यहीं से समझना आरंभ करे। उसके पश्चात अमैथुनी सृष्टि संबंधी भारत की वैज्ञानिक धारणा को समझकर मानव के मैथुनी सृष्टि में प्रवेश को समझे, तो हमें मानव इतिहास की श्रंखला का प्रथम सूत्र हाथ लग जाएगा जो इस चराचर […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-34

ईश्वर के विषय में यह माना जाता है कि वह सृष्टि के अणु-अणु में विद्यमान है और घट-घट वासी है। उसकी दृष्टि से कोई बच नहीं सकता। अत: वह मनुष्य के प्रत्येक विचार का और प्रत्येक कार्य का स्वयं साक्षी है। जिससे उसकी न्यायव्यवस्था से कोई बच नहीं पाएगा। घट-घट वासी होने से ईश्वर हमारे […]

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विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-33

राजा और राजनीति को भारत में ईश्वर की न्याय-व्यवस्था को सुचारू रूप से जारी रखने के लिए स्थापित किया गया। अत: राजा और राजनीति का धर्म यह बताया गया कि तुम ऐसी राज्य व्यवस्था बनाओ जिससे लोगों में ‘पाप’ के प्रति घृणा और पुण्य के प्रति लगाव या आकर्षण उत्पन्न हो और वे स्वाभाविक रूप […]

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