गीता के दूसरे अध्याय का सार और गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-13आत्मा को नहीं होत है, सुख, दु:ख का कभी भान। द्वन्द्व सताते देह को बात वेद की जान।। हमारे देश के भी बड़े-बड़े विद्वानों तक को ऐसी भ्रांति रही है। आज के संसार के लोगों की तो यह प्रमुख समस्या है […]
लेखक: डॉ॰ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत
शिवाजी के पत्र का जयसिंह पर नही पड़ा कोई प्रभाव हमने पिछले आलेख में शिवाजी के उस पत्र को उल्लेखित किया था, जो उन्होंने जयपुर के राजा जयसिंह के लिए लिखा था। उस पत्र के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि शिवाजी मराठाभक्त नहीं हिंदू और हिंदूस्थान के भक्त थे। पर दुर्भाग्य की बात […]
नाथ करूणा रूप करूणा आपकी सब पर रहे गतांक से आगे…. संसार के किसी न्यायाधीश से जब कोई व्यक्ति स्वयं को आहत मानता है तो वह दया की भीख इसीलिए मांगता है कि दण्ड अपेक्षा से अधिक कठोर हो गया है-उसे दयालुतापूर्ण कर लिया जाए। न्यायिक प्रक्रिया में फिर भी कहीं कोई दोष त्रुटि या […]
भारत के राष्ट्रनायकों और इतिहास पुरूषों के साथ जो अन्याय हमारे इतिहासकारों और आज तक के दुर्बल नेतृत्व ने किया है, संभवत: उसी के विषय किसी कवि ने कितना सुंदर कहा है- ”धरती की सुलगती छाती के बेचैन शरारे पूछते हैं, जो लोग तुम्हें दिखला न सके, वो खून के धारे पूछते हैं अंबर की […]
नाथ करूणा रूप करूणा आपकी सब पर रहे गतांक से आगे…. ऋग्वेद (3 / 18 / 1) के मंत्र की व्याख्या करते हुए स्वामी वेदानंद तीर्थ जी अपनी पुस्तक ‘स्वाध्याय संदोह’ में लिखते हैं कि- ‘हे ज्ञान दान निपुण! अग्रगन्त:! आदर्श ! ज्ञान विज्ञान की खान ! प्रकाशकों के प्रकाश ! परम प्रकाशमय! अज्ञानान्धकार विनाशक […]
गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार गीता और शहादत अपनी मजहबी मान्यताओं को संसार पर बलात् थोपने वाले जिहादियों को लालच दिया गया है कि यदि ऐसा करते-करते तुम मृत्यु को प्राप्त हो जाते हो तो तुम शहीद कहे जाओगे। जबकि श्रीकृष्ण जी अर्जुन से इसके ठीक विपरीत बात कह रहे हैं। गीताकार […]
देश के विषय में ना तो कुछ सोचो ना कुछ बोलो ना कुछ करो और जो कुछ हो रहा है उसे गूंगे बहरे बनकर चुपचाप देखते रहो-आजकल हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता की यही परिभाषा है। यदि तुमने इस परिभाषा के विपरीत जाकर देश के बारे में सोचना, बोलना, लिखना, या कुछ करना आरम्भ कर दिया […]
हमारे देश को प्रयोगशाला बनाकर नये-नये प्रयोग करते जाने की राजनीतिज्ञों की पुरानी परम्परा है। जब किसी प्रयोग पर करोडों-अरबों रूपया व्यय हो जाता है तो फिर उसे भुला दिया जाता है या जब उस प्रयोग के गलत परिणाम राजनीतिज्ञों को मिलने लगते हैं तो उन्हें जनता को न बताकर चुपचाप उस योजना को ही […]
गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-11 गीता के दूसरे अध्याय का सार और संसार आजकल पैसा कैसे कमाया जाए और कैसे बचाया जाए?-सारा ध्यान इसी पर केन्द्रित है। आय के सारे साधन चोरी के बना लिये गये हैं, जिससे व्यक्ति उन्हें किसी को बता नहीं सकता, इसलिए उनकी मार को चुप-चुप झेलता रहता […]
हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रह्वहे गतांक से आगे…. कथावाचकों की फीस लाखों में पहुंच गयी है। धर्म और प्रवचन बेचे जा रहे हैं। उनके माध्यम से अश्लीलता परोसी जा रही है। ‘इदन्नमम्’ का सार्थक व्यवहार समाप्त हो गया है, जिससे लोभवृत्ति में वृद्घि हो गयी है, झूठे अहम् को लेकर लड़ाई झगड़े […]