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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-44

गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज अच्छे बुद्घिमानों का और पवित्रात्माओं का परिवार ऐसे ही योगभ्रष्ट लोगों को एक पुरस्कार के रूप में मिलता है। जिनके संसर्ग, सम्पर्क और सान्निध्य में रहकर वह योगभ्रष्ट व्यक्ति या योगी शीघ्र ही आगे बढऩा आरम्भ कर देता है। वह पूर्व जन्म के बुद्घि संयोग को फिर से […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-43

गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज योगेश्वर श्री कृष्णजी कहते हैं कि अर्जुन यह कार्य अर्थात मन को जीतना या वश में करना अभ्यास तथा वैराग्य के माध्यम से सम्भव है। अभ्यास और वैराग्य से होती मन की जीत। मन को लेते जीत जो पाते रब की प्रीत।। इस प्रकार श्रीकृष्णजी ने मन को […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-42

गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज भारत की ऐसी ही परम्पराओं में से एक परम्परा यह भी है कि जब किसी व्यक्ति को कोई कष्ट होता है तो दूसरा उसके विषय में यह कहता है कि यह कष्ट मुझे ऐसे ही अनुभव हुआ है जैसे कि मुझे ही हुआ हो। लोग अक्सर कहते हैं […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-41

गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज अब पुन: हम उस आनन्द के विषय में ‘ब्रह्मानन्दवल्ली’ (तैत्तिरीय-उपनिषद) का उल्लेख करते हैं। जिसका ऋषि कहता है कि यदि कोई बलवान युवावस्था को प्राप्त वेदादि शास्त्रों का पूर्ण ज्ञाता सम्पूर्ण पृथ्वी का राजा होकर राज भोगे तो उसे उस राज से जो आनन्द प्राप्त होगा वह एक […]

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संपादकीय

देश से पहले संस्कृति बचाओ

भारत में अध्यात्म और मानव समाज का चोली दामन का साथ है। बिना अध्यात्म के भारत में मानव समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती। यही कारण है कि भारत में आध्यात्मिक संतों व महात्माओं का विशेष सम्मान है। प्राचीनकाल में लोग पाप पुण्य से बहुत डरते थे। यही कारण था कि अपने अधिकांश […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-40

गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज योगी की समाधि अवस्था गीता के छठे अध्याय की विशेषता यह है कि इसमें श्रीकृष्ण जी ने ध्यान योगी के लक्षण भी बताये हैं। इस पर प्रकाश डालते हुए श्रीकृष्णजी कहते हैं कि जब चित्त व्यक्ति के वश में हो जाता है और वह आत्मा में स्थित हो […]

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संपादकीय

किसका अहंकार ईश्वरीय ग्रास बनेगा?

अंगिरा ऋषि का मत है कि अहंकार देवताओं का भी नाश कर देता है। जबकि वशिष्ठ जैसे आचार्य का कथन है कि अहंकार जीव का ही नाश कर देता है। इसी प्रकार सन्त तुलसीदास जी का कहना है कि अहंकारी का विनाश निश्चित है। इन महापुरूषों के ये वाक्य भारतीय संस्कृति के मूल्य हैं। भारत […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

अपनी वीरता के कारण बालक त्यागमल बन गया था तेगबहादुर

भारतीय वीर परंपरा का मूल स्रोत पंजाब की गुरूभूमि के प्रति औरंगजेब और उसके अधिकारियों की कोप-दृष्टि बढ़ती ही जा रही थी। पर पंजाब की गुरू परंपरा जनता में औदास्यभाव को समाप्त कर स्वराज्य भाव की ज्योति को ज्योतित किये जा रही थी। मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है :- ”आने न दो अपने निकट औदास्यमय […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-39

गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज श्री कृष्णजी की बात का अभिप्राय है कि बाहरी शत्रु यदि बढ़ जाते हैं तो योगी भी भयभीत हो उठते हैं। ये बाहरी शत्रु ऐसे लोग होते हैं, जो दूसरों को शान्तिपूर्ण जीवन जीने नहीं देते हैं। उनके भीतर उपद्रव होता रहता है तो उनके जीवन में भी […]

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संपादकीय

कश्मीर के हिन्दू विस्थापितों को लौटाओ उनका घर और देश

जिस समय देश स्वतन्त्र हुआ उस समय सरदार पटेल के प्रयासों से देश की 563 रियासतों में से 560 ने भारत के साथ अपने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये थे, जो शेष तीन रियासतें बची थीं वे थीं कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद की रियासतें। सरदार पटेल जिस समय हैदराबाद को सैनिक कार्यवाही के माध्यम […]

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