Categories
आज का चिंतन

अजमेर में महर्षि दयानन्द लेख संख्या 28*

*

लेखक आर्य सागर खारी 🖋️

(जगतगुरु महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200 वीं जयंती के उपलक्ष्य में 200 लेखों की लेखमाला के क्रम में लेख संख्या 28)

महर्षि दयानंद सरस्वती जी के उपलब्ध जीवन चरित् के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है महर्षि दयानंद सरस्वती जी का अजमेर में प्रथम प्रवास 4 महीने के लगभग रहा सन 1866 के आसपास।अजमेर आगमन में प्रथम डेरा महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने जयपुर के प्रसिद्ध ब्रह्म मंदिर में डाला था। उल्लेखनीय होगा पौराणिक मान्यता के अनुसार आज भी ब्रह्म की पूजा केवल इसी मंदिर में होती है। पुष्कर में महर्षि दयानंद ने प्रबलता से मूर्ति पूजा का खंडन किया यह देख ब्राह्मण उनसे झगड़ा करने के लिए इकट्ठे हुए लेकिन कोई दयानन्द के सामने विद्या में कोई टिक न सका तो सभी ब्राह्मण इकट्ठे होकर जयपुर के प्रसिद्ध न्यायिक विद्वान व्यंकट शास्त्री के पास गए। एक बार तो यह तय हुआ व्यंकट शास्त्री स्वयं स्वामी जी के पास आएगा ब्रह्म मंदिर में लेकिन जब वह ना आया तो स्वयं स्वामी जी उसके पास गए उसकी गुफा में जो अगस्त्य ऋषि की गुफा बताई जाती थी। 300 400 ब्राह्मण की उपस्थिति में शास्त्रार्थ हुआ शास्त्रार्थ में भागवत खण्डन से लेकर व्याकरण की शुद्धि अशुद्धि पर चर्चा चल पड़ी 1 घंटे बातचीत के पश्चात व्यंकट शास्त्री ने कहा की स्वामी दयानंद की विद्या बहुत ऊंची है उसने स्वामी दयानंद की प्रशंसा की और उसने अपने गुरु एक अघोरी से स्वामी जी को मिलाया उसके बारे में कहा जाता था वह मनुष्य को पत्थर मारता था गालियां दिया करता था चिता से मनुष्य को निकाल कर खा लिया करता था लेकिन महर्षि दयानंद जी ने उसके बारे में बताया था वह संस्कृत का अच्छा विद्वान है व्यंकट शास्त्री ने सब ब्राह्मणों से कह दिया व्यर्थ हठ मत करो यह सत्य कहते हैं।

‘एक दिन स्वामी दयानन्द ने पुष्कर के एक पुजारी से कहा था तेरे पास यह ढाई मन के पत्थर की मूर्तियां मानो पारस पत्थर है खूब साधुओं को लड्डू खिलाया करो रंडी- भडुओ से बचा करो’

पुष्कर के ब्राह्मण पंडितों को स्वामी जी एक ही उपदेश देते थे यह स्तोत्र साधारण मनुष्यों के बनाये हुए हैं बहुत पीछे लोगों ने इन्हें बनाया है प्राचीन आचार्य के नाम से इन्हें प्रचारित करते हैं ताकि यह प्रचारित हो जाए यह उन वास्तविक आचार्य के बनाये हुए नहीं है । पुष्कर निवासी स्वामी रतन गिरी ने महर्षि दयानंद की जीवनीकार पंडित लेखराम को बतलाया था। स्वामी दयानन्द जी हमसे कहते थे- आप लोग विद्या पर ही परिश्रम करें खीर पुरी के जाने की चिंता ना करें खीर पूरी भी विद्या से अधिक मिलेगी घबराइये नहीं ऐसे ही स्वामी जी ब्राह्मणों को कहते थे।

पुष्कर में स्वामी जी का शास्त्रार्थ विभिन्न संप्रदाय मतों के विद्वानों से हुआ लेकिन सभी महर्षि दयानंद से निरूत्तर होकर दयानंद के प्रशंशक बनकर लौटते थे ।कुछ तो शास्त्रार्थ समर में आते ही नहीं थे। स्वामी जी कहते थे शरीर जलाने से स्वर्ग नहीं मिलता व्रत यम नियम से शरीर को तपाएं मन को विषयों से रोक कर जप आदि में लगाये तब सुख प्राप्त होता है। अनेकों पंडितों पुरोहितों की कंठी स्वामी दयानंद ने तुडवाई थी कहा करते थे तिलक और कंठी वैदिक धर्म का अंग नहीं है।

शेष अगले अंक में
नीचे चित्र में पुष्कर का ब्रह्म मंदिर है जहां स्वामी जी अजमेर प्रवास में अधिकांश समय ठहरे थे।

लेख में जयपुर के स्थान पर अजमेर पढ़ने का कष्ट करें।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version