Categories
इतिहास के पन्नों से हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

जयपुर नगर में महर्षि दयानन्द

लेख संख्या 26

लेखक आर्य सागर खारी 🖋️

(जगत-गुरु महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200 वी जयंती के उपलक्ष्य में 200 लेखों की लेखमाला के क्रम में आर्य जनों के अवलोकनार्थ लेख संख्या 26)

जिस कालखंड में महर्षि दयानन्द सरस्वती जी का प्रवास जयपुर में हुआ उस समय भी जयपुर के राजा राम सिंह थे, वही जयपुरपति राम सिंह जो महर्षि दयानन्द के गुरु प्रज्ञा चक्षु विरजानन्द को सार्वभौमिक विद्वत परिषद् के गठन का आश्वासन देकर अपने वचन से विमुख हो गए थे ।

क्या महर्षि दयानंद की भेंट जयपुर के राजा राम सिंह से हुई? क्या राजा राम सिंह से मिलने का आग्रह महर्षि दयानंद ने किया या स्वयं राजा राम सिंह ने महर्षि दयानंद से मिलने की इच्छा की यह भली-भांति स्पष्ट हो जाएगा।

महर्षि दयानंद की तेजस्विता विद्वता की धूम पूरी जयपुर रियासत में मची हुई थी। महर्षि दयानंद के अद्भुत विलक्षण पांडित्य की खबर राजा राम सिंह के कानों तक भी पहुंची। राजा राम सिंह शैव मत को मानने वाले थे। वह शैवो व वैष्णवों के मध्य शास्त्रार्थ कराते थे। शैव मत की ओर से उन्होंने अपने राज पंडित व्यास बख्शीराम और उनके भाई धनीराम व्यास को इस काम में नियुक्त किया था। व्यास बख्शी राम ने यह विचार किया यदि महर्षि दयानंद सरस्वती हमारे पक्ष में हो जाए तो फिर किसी प्रकार की शंका न रहे ऐसा विचार कर वह महाराज राम सिंह से मिले। जयपुर नरेश राम सिंह पहले से ही महर्षि से मिलने को इच्छुक थे उन्होंने अपने रईस सरदार जिनका हम पूर्व में वर्णन कर चुके हैं ठाकुर रणजीत सिंह जो महर्षि दयानंद के भक्त थे जिनके बाग में उस समय महर्षि दयानंद ठहरे हुए थे उनको बुलवाकर कहा कि महर्षि दयानंद को आप हमारे पास ससम्मान ले आए हम उनसे भेंट करेंगे वार्तालाप करेंगे अगले दिन प्रातः काल राज पंडित बक्शीराम के साथ प्रातः 10:00 बजे स्वामी जी के पास गए स्वामी जी को पीनस में बिठाकर जयपुर के राजमहल में ले आए स्वामी जी राजमहल के राजराजेश्वर मंदिर में जाकर बैठे परंतु वहाँ स्वामी जी ने मूर्ति को नमस्कार ना किया यह घटनाक्रम उस मंदिर के पुजारी वर्ग ने देख लिया जब व्यास बक्शीराम मंदिर में आए तो मुख्य पुजारी ने कहा की यह संन्यासी तो प्रत्येक प्रकार की मूर्ति पूजा को हटाना चाहते हैं यदि तुम इनका राजमहल में प्रवेश कर दोगे तो यह तुम्हारा सारा कार्य भ्रष्ट कर देंगे ,महादेव वादेव को उठवा देंगे। यह सुन व्यास बख्शी राम का स्वार्थ जागृत हो गया। उसने एक चाल चली वह महाराज जयपुर के कक्ष की ओर गया साधारण रूप से भीतर जाकर वापस आकर बाहर महर्षि दयानंद को बतलाया कि महाराज साहब तो कहीं भ्रमण को गए हैं आप फिर आगमन करे स्वामी जी। स्वामी जी ने कहा हमारा महाराज से क्या प्रयोजन ?आप ही हमको लेकर आए थे हमारी तो उनसे कोई मिलने की इच्छा नहीं थी रास्ते में कुछ सरदारों ने स्वामी जी को बतला दिया था की पंडित बख्शी राम का मूर्ति पूजा में विशेष आग्रह है और महाराज जी भी शैव मूर्ति पूजक है। जब स्वामी जी को यह पता चला तो स्वामी जी दूसरे दिन स्वतः ही महाराज से मिलने को गए फिर वही खेल राज पंडित ने खेल दिया कहा आज महाराज जी को अवकाश नहीं है यह सुन स्वामी जी क्रोधित हो गए ।पुनः राज पंडित के कपट का वृतांत उन्हें विदित हो गया था कहां अब हम कुछ भी हो कभी भी राजमहल में नहीं जाएंगे ऐसा कहकर स्वामी जी बाग की ओर प्रस्थान कर गए स्वामी जी को इस कपट का जयपुर के कई जागीरदारों से पता चला दरअसल जयपुर के अनेक जागीरदार जिसमें अचरौल के जागीरदार रणजीत सिंह सहित बहुत से जागीरदार स्वामी जी के भक्त हो गए थे जिन्होंने स्वामी जी से जनेउ व गायत्री पाठ सन्ध्या आदि की दीक्षा ली थी,उन्होंने मूर्ति पूजा को त्याग दिया था स्वामी जी के उपदेशों से प्रभावित होकर ।स्वामी जी चार महीने जयपुर में रहे जयपुर में रहकर स्वामी जी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में किशनगढ़ होते हुए पुष्कर की ओर प्रस्थान कर गए।।
नियति का खेल तो देखिए महर्षि दयानंद के गुरु के मनोरथ को स्वार्थी पंडितों ने पूरा नहीं होने दिया राजा राम सिंह को भ्रमित किया महाराजा को भ्रमित करते हुए कहा यदि वह विरजानंद का पंडितों से शास्त्रार्थ करा देते तो इससे जयपुर के कुल पर कलंक लगेगा और वही व्यास बख्शीराम जैसे पेटपूजक स्वार्थी पंडितों ने कपट से राजा राम सिंह को महर्षि दयानंद से नहीं मिलने दिया।

राजा राम सिंह की नौ रानियां थी अनेको दासियाँ थी फोटोग्राफर प्रिंस के तौर पर विख्यात हुए। राम सिंह अपनी सभी पत्नियों महल की दासियों की फोटो उतारते थे जो कोई भी उनसे मिलता था सभी की फोटो तैयार करते थे स्वभाव से विद्या प्रिया थे यदि महर्षि दयानंद से उनकी भेंट हो जाती तो निस्संदेह वह उदयपुर नरेश सज्जन सिंह की तरह वह भी लाभान्वित होते जिनका उल्लेख हम आगे के लेखों में यथा अवसर प्रसंग पर करेंगे।

नीचे फोटो में जयपुर नरेश राम सिंह शैवमत की वेशभूषा में यह फोटो उनका उनके निर्देश पर उनके ही कमरे से लिया गया था।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version