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संपादकीय

‘इंडिया’ की नाव डुबो सकती है आम आदमी पार्टी

सत्ताकेंद्रित राजनीति कभी राष्ट्र का भला नहीं कर सकती। जो राजनीति सत्ताकेंद्रित न होकर राष्ट्र केंद्रित हो जाती है वह राजनीति न होकर राष्ट्रनीति बन जाती है। उसी को राष्ट्र धर्म कहा जाता है । जब उसके प्रति ही समर्पित होकर नीतियां बनाई जाती हैं और उन्हें पूर्ण विवेक, पूर्ण संयम और पूर्ण संतुलन के साथ न्याय पूर्ण दृष्टिकोण अपनाते हुए लागू किया जाता है तो उस समय वही राष्ट्रधर्म राजधर्म बन जाता है। भारत के राजधर्म को समझने के लिए महाभारत, रामायण, मनुस्मृति आदि हमारा अच्छा मार्गदर्शन कर सकते हैं।
आज के अहंकारी भ्रष्ट और सत्तावादी सोच रखने वाले राजनीतिज्ञों के मन मस्तिष्क से राष्ट्रधर्म और राजधर्म का चिंतन बहुत दूर हो गया है। विशेष रूप से ‘इंडिया’ नाम के गठबंधन के नेताओं पर तो यह बात पूर्णतया लागू होती ही है। ये लोग भारत के लोगों की समस्याओं का समाधान करने के लिए बाहर के राजनीतिक चिंतकों की ओर देखते हैं। जिनके चिंतन और सोच – विचार का भारत के लोगों के हितों, भारत की समस्याओं और भारत के मौलिक चिंतन से दूर-दूर का संबंध नहीं, उनकी उधारी मानसिकता को ये लोग भारत में लागू करते हैं।
‘इंडिया’ गठबंधन के भीतर केजरीवाल नाम के नौटंकीबाज नेता का पूरा चिंतन भारतीय न होकर विदेशी चिंतन है । यही स्थिति कांग्रेस के राहुल गांधी की है। राहुल गांधी को तो विदेशी चिंतन विरासत में मिला है। भारतीय राजनीति में सम्मिलित नेताओं को केवल आज के अपने स्वार्थ दिखाई देते हैं। इन्हें दूर का दिखाई नहीं देता। अधिकांश राजनीतिक दलों के नेता ‘धृतराष्ट्र’ की भूमिका में हैं। जिन्हें किसी न किसी प्रकार से अपने किसी ‘दुर्योधन’ को राजनीति में समायोजित करने की चिन्ता है। जब देश के राजनीतिज्ञों को अपने-अपने ‘दुर्योधनों’ को राजनीति में समायोजित करने की चिंता सता रही हो, तब वह देश का भला कहां सोच पाएंगे?
हम सभी जानते हैं कि इसी वर्ष के अंत में देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव संपन्न होने हैं। उनके पश्चात आम चुनाव भी निकट आ रहे हैं। इस समय राजनीतिक गलियारों में पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों और आम चुनावों की तैयारी जोरों पर चल रही है। ‘इंडिया’ गठबंधन भी येन केन प्रकारेण सत्ता में लौटने के लिए ही तैयार किया गया है। जितने भर भी राजनीतिक दल इस राजनीतिक गठबंधन में सम्मिलित हैं वे सारे के सारे दस्सी, पंजी और चवन्नी की खरीज है। इनमें से रुपया कोई भी नहीं है। जबकि भाजपा और उसके सहयोगी दलों में से कुछ दल अवश्य दस्सी, पंजी की श्रेणी के हैं ,जबकि रुपया के रूप में भाजपा अपने आपको साबित कर चुकी है। रुपया से हमारा अभिप्राय है एक ऐसा राजनीतिक दल जो जनता का विश्वास जीतकर अपने दम पर सरकार बनाने की क्षमता रखता हो। जिस राजनीतिक दल में रुपया बनने की क्षमता हो, उसका ही दृष्टिकोण राष्ट्रीय हो सकता है । जबकि जो राजनीतिक दल किसी एक प्रांत में सत्ता में रहा हो, या जिसका विस्तार किसी आंचल विशेष में ही हो, उसकी सोच राष्ट्रीय कभी नहीं हो सकती। ऐसे नेता को यदि देश का प्रधानमंत्री भी बना दिया जाएगा तो भी वह संकीर्ण सोच के दायरे से बाहर नहीं निकल पाएगा।
‘इंडिया’ गठबंधन के नेताओं में केजरीवाल के बारे में हम सभी जानते हैं कि उन्होंने किस प्रकार अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी? उन्होंने अन्ना हजारे जैसे सामाजिक नेता के उन कंधों को ठोकर मारने में देर नहीं की जिन्होंने उन्हें ऊंचाई दी थी । आज भी आम आदमी पार्टी ‘इंडिया’ गठबंधन में रहकर भी उसी में सेंध लगा रही है। राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में लगभग सभी सीटों से चुनाव लड़ने की उसकी घोषणा ने इंडिया गठबंधन में खलबली मचा दी है। केजरीवाल एक ऐसे छुपे रुस्तम हैं जो कांग्रेस के राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। प्रधानमंत्री मोदी से भी अधिक खतरनाक राहुल गांधी के लिए इस समय भारतीय राजनीति में यदि कोई व्यक्ति है तो वह केजरीवाल ही हैं। केजरीवाल तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और अपनी कुटिलताओं के चलते हुए बड़ी सावधानी से कांग्रेस के जाल को कुतर रहे हैं। राजनीति के अन्य कबूतर अर्थात इंडिया गठबंधन के अन्य सहभागी नेता या दल हो सकता है कि समय आने पर दाने चुगते रह जाएं पर कांग्रेस नाम के कबूतर को जाल सहित उठा कर ले जाने की ताकत इस समय केजरीवाल चुपचाप हासिल कर रहे हैं। वे यह भली प्रकार जानते हैं कि राजनीतिक संकीर्णताओं में रहने वाले ‘इंडिया’ गठबंधन के अन्य राजनीतिक दलों से उन्हें कोई खतरा नहीं है । उनके लिए यदि कांग्रेस को ‘शांत’ कर दिया जाए तो भविष्य में देश के लोग उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के विकल्प के रूप में चुन सकते हैं। बड़ी सावधानी से केजरीवाल जिस आशियाने पर बैठे हैं, उसी को काटने का काम कर रहे हैं। उनकी योजना है कि जैसे भी हो बीजेपी को तो सत्ता से बेदखल किया ही जाए, इंडिया गठबंधन की भी नाव डुबो दी जाए।
इंडिया नामक इस चुनावी गठबंधन से लोगों का एकमात्र प्रश्न केवल यही है कि यदि यह गठबंधन राजनीति में आता है तो इसका प्रधानमंत्री पद का चेहरा कौन होगा ? इस पर गठबंधन के नेता लोगों को भ्रमित करने के लिए कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री पद के लिए हमारे पास अनेक चेहरे हैं। हम भाजपा की तरह किसी एक चेहरे को आगे रखकर नहीं चलते। पर संसदीय लोकतंत्र का तकाजा यही होता है कि इसमें किसी एक चेहरे को लेकर ही आगे चला जाता है। कांग्रेस नेहरू से लेकर राजीव गांधी के जमाने तक तो निसंकोच इसी सोच और विचारधारा को लेकर आगे बढ़ती रही , उसके बाद भी वह अपनी इस परंपरागत नीति और सोच को त्याग नहीं रही है।
जब विपक्षी दल यह कहते हैं कि उनके पास प्रधानमंत्री पद के लिए अनेक चेहरे हैं तो इससे उनकी पोल खुल जाती है कि यदि वह सत्ता में आए तो प्रधानमंत्री पद को लेकर उनमें जूतम पैजार होगी। नीतीश कुमार जिस उम्मीद को लेकर आगे बढ़े थे, उनकी उम्मीदों पर पानी फिरते ही वह निष्क्रिय हो गए हैं। ममता बनर्जी अपने जुगाड़ में है। वह अपने समर्थकों को इस बात के लिए उकसा रही हैं कि वह उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में पेश करें। जबकि कांग्रेस पहले ही कह चुकी है कि प्रधानमंत्री पद के बारे में इस बार कोई समझौता नहीं होगा। जी – 20 में भोज के समय जिस प्रकार तृणमूल कांग्रेस ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई उसको लेकर कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी इस पार्टी पर तंज कस चुके हैं। इसी दौरान आम आदमी पार्टी राजस्थान में प्रत्येक विधानसभा सीट पर अपने उम्मीदवार खड़ा करने की घोषणा कर चुकी है। इससे इंडिया की बिल्डिंग बनने से पहले ध्वस्त होती दिखाई दे रही है। बहुत संभव है कि आम आदमी पार्टी अन्य चुनावी राज्यों में भी अपने उम्मीदवार प्रत्येक सीट पर उतार दे। ऐसी स्थिति में इंडिया गठबंधन अपने आप ही घटिया गठबंधन सिद्ध हो जाएगा। आम आदमी पार्टी जिस प्रकार धीरे-धीरे अपना विस्तार करती जा रही है उसके दृष्टिगत वह अपने पर कैच करवाना उचित नहीं मानेगी जबकि इंडिया गठबंधन में उसके रहने का अर्थ उसके पर कैच करना जैसा ही होगा। कांग्रेस कदापि या नहीं चाहेगी कि राज्यों के विधानसभा चुनाव में इसका तीखा विरोध करने वाली आम आदमी पार्टी को आम चुनाव के समय विशेष सुविधा प्रदान की जाए।

डॉ राकेश कुमार आर्य

(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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