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आज का चिंतन

गंगा ब्रह्मा जी के कमंडल से निकली?*

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DR D K Garg

पौराणिक मान्यताये: एक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी के कमंडल का जल गंगा नामक युवती के रूप में प्रकट हुआ था। एक अन्य (वैष्णव) कथा के अनुसार ब्रह्माजी ने विष्णुजी के चरणों को आदर सहित धोया और उस जल को अपने कमंडल में एकत्र कर लिया।एक तीसरी मान्यता के अनुसार गंगा पर्वतों के राजा हिमवान और उनकी पत्नी मीना की पुत्री हैं, इस प्रकार वे देवी पार्वती की बहन भी हैं।

विश्लेषण – गंगा हमारी भौगोलिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत ही नहीं, धार्मिक और आध्यात्मिक धरोहर भी है। यह जीवनदायिनी और पतितपावनी होने के साथ-साथ त्रिभुवन तारिणी भी है, इसलिए लोकमानस में यह पावन देव सरिता स्वरूपा माँ गंगा रूप में मानव मन-मस्तिष्क में विराजमान है। जब सागर की अतुल गहराई में हिमालय का बीजारोपण भी नहीं हुआ था, यह तब से अनवरत प्रवाहमान है और अनादिकाल से लोक जीवन के साथ-साथ लोक संस्कृति को भी पल्लवित-पुष्पित करती आई है।

इसका निर्मल अमृतमय जल जड़ी-बूटियों के अर्क से पुष्ट और अविनाशी है, अपने पवित्र जल से प्यास बुझाने से लेकर कृषि कार्यो हेतु गंगा जल का प्रयोग होता है। करोडो के जेवण पालन का आसरा है गंगा।

इसीलिए गंगा नदी के साथ वाले स्थानों को तीर्थ की संज्ञा दी जाती है क्योकि:ः

1.जल ही जीवन है,गंगा के आसपास जल की पर्याप्त उपलब्धता रहती है जिससे हरियाली,शुद्ध वायु और अच्छी फसल प्राप्त होती है, पर्याप्त वनस्पति, फल और भोजन की प्राप्ति होती है।मनुष्य के अतिरिक्त पशु पक्षी भी आनंदमय रहते है,उद्योग और व्यवसाय खूब फलता फूलता है।
2. क्या कारण है की प्राचीन काल में यहाँ अनेक ऋषि-मुनियों के आश्रम होते थे, जहाँ पहुंच कर गृहस्थी लोग नर-नारी यदा-कदा सांसारिक कार्यों को भूलकर उनके चरणों में बैठ उस प्रभु के ज्ञान विज्ञान की चर्चा सुन शान्ति तथा आनन्द प्राप्त करते थे।
3. इसी बात को वेद में कहा है।
उपहवरे गिरीणाम् संगमे च नदीनाम।
धिया विप्रो अजायत।। सा. १४३।।
अर्थात्ः-पर्वतों की कन्दराओं में और नदियों के संगमों पर बुद्धिमान् ब्राह्मण विद्वान पैदा होते हैं। वहाँ का वातावरण इतना शुद्ध-पवित्र होता है कि प्रकृति के आंगन में मानव अपनी सब अथा-व्यथा भूल जाता है और वहाँ पहुँचकर उसका मन परमात्मा की गोद में जाने को लालायित हो उठता है।
4.ये भौतिक गंगा नदी मानव मुक्ति का साधन नही है। इस गंगा नदी के जल से तो केवल भौतिक शरीर ही स्वच्छ किया जा सकता है। मानव का अन्तः करण तो ज्ञान पूर्वक कर्म करने से ही पवित्र होगा अन्यथा नही।
ऋते ज्ञानन्न मुक्ति’
अर्थात् – बिना ज्ञान के मुक्ति संभव बिलकुल भी नहीं है।
वास्त्विकता के भ्रमित करने के लिए कुछ संस्कृत के श्लोक भी बनाए गए हैं, बानगी देखिएः
गंगागगेति यो ब्रूयाद्योजनानां शतैरपि।
मुच्यते सर्व पापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति।।
जो कोई सैकड़ों कोस दूर से भी गंगा-गंगा कहे तो उसके पाप नष्ट होकर वह विष्णुलोक अर्थात् वैकुण्ठ को चला जाता है। यह सब मित्या धारण है।

हम तो देखते हैं कि जो गंगातट पर ही वास करते हैं, वे कहीं अधिक दुखी हैं। इस प्रकार की मिथ्या बातों से अधिक पाप वृद्धि होती है।
यह है, सच्चा गंगा स्नान का महत्व गंगा में नहाने से केवल शरीर स्वच्छ होता है वहाँ ऋषि-मुनियों के सत्संग से ज्ञान गंगा का उदय होता है।

गंगा नदी और ये शुद्ध जल ईश्वर की अनुपम कृपा है इसीलिए गंगा हो कवियों और साहित्यकारों ने गंगा नदी को शिव की पुत्री ,गंगा मां, अप्सरा आदि की उपमा देकर अलंकार की भाषा का प्रयोग किया है।

यधपि ईश्वर का मुख्या नाम ॐ है परन्तु सृष्टि के रचिययता के कारण ईश्वर का एक अन्य नाम ब्रह्मा भी है। ईश्वर ने इसके लिए मुख्यत पांच तत्त्व प्रदान किये है जिनमे अग्नि ,जल ,पृथ्वी और आकाश है। सभी तत्व अपने में मुख्य है। फिर भी जल को जीवन की संज्ञा दी जाती है की जल ही जीवन है।
(बृह बृहि वृद्धौ) इन धातुओं से ‘ब्रह्मा’ शब्द सिद्ध होता है। ‘योऽखिलं जगन्निर्माणेन बर्हति वर्द्धयति स ब्रह्मा’ जो सम्पूर्ण जगत् को रच के बढ़ाता है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘ब्रह्मा’ है।

ब्रह्मा का अर्थ किसी शरीरधारी व्यक्ति से नहीं है अपितु निराकार ईश्वर से है जिसके द्वारा द्वारा सृष्टि की रचना की रचना की गयी है।यह तथ्य तो हम सभी अच्छी तरह समझते हैं कि ब्रह्मा ईश्वर को कहते हैं।ब्रह्म से ब्रह्मा शब्द की उत्पत्ति है। ब्रह्म (ज्ञान) ईश्वर को कहते हैं लेकिन जब वह अपने ज्ञान से संसार की रचना करता है तो उसको ब्रह्मा कहा जाता है।किस प्रकार सृष्टि के रचयिता को ब्रह्मा कहते हैं।

ब्रह्मा का अर्थ है सबसे महान ,विष्णु का अर्थ है सर्वव्यापक, और महेश का अर्थ है सब (जड़ और चेतन) का ईश अर्थात स्वामी ।ईश्वर अनन्त शक्ति वाला है और अपने सभी काम वह स्वयं ही करता है, उसका कोई सहायक नही है। इसी अलोक में कवि ,लेखकों ने ये उपमा दी जाती है की गंगा का उद्गम ब्रह्मा के कमंडल से हुआ। इसका ऐसा कोई भावार्थ ना निकाले की किसी शरीरधारी व्यक्ति जिसका नाम ब्रह्मा था उसने अपने कमंडल से सैकड़ो किलोमीटर में बाह रही गंगा को कैद कर लिया आदि।

अलग अलग मंदिरो में और घर में जो तस्वीर मुर्तिया मिलेंगी वो ब्रह्मा की नहीं है यह एक काल्पनिक चित्रण है।

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