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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

जब भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने एसेम्बली में धुंए वाला बम फेंका था

अप्रैल 1929
जब भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने एसेम्बली में धुंए वाला बम फेंका था। सभी को पता है कि क्रांतिकारियों के परिवार बुरी स्थिति में रहे।
परन्तु गद्दारों का क्या हुआ?
खुशवंत सिंह का खानदान
शोभा सिंह ही 8 अप्रैल 1929 को संसद में हुए बम विस्फोट के मुख्य गवाह थे। शोभा सिंह ने ही भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की पहचान की थी और गवाही दी थी। । शोभा सिंह की वफादारी ब्रिटिश सरकार के प्रति वैसे ही थी जैसे कुंज बिहारी थापर की थी। इसी वजह से दोनों वंशजों को अकूत संपत्ति के साथ प्रतिष्ठा भी मिली। भारत के तत्कालिन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ने जैसे ही भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने की घोषणा की ब्रिटिश सरकार ने सुजान सिंह के साथ उन्हें भी लुटियंस दिल्ली बनाने का ठेका देकर पुरस्कृत किया। साउथ ब्लॉक, और वार मेमोरियल आर्क (अब इंडिया गेट) के लिए यही अशिक्षित सोभा सिंह एकमात्र बिल्डर थे। सोभा सिंह दिल्ली में जितनी जमीन खरीद सकते थे उतनी ख़रीदते गए ।2 रुपये प्रति गज़ के हिसाब से उन्होंने कई व्यापक साइटें खरीदीं और वो भी फ़्री होल्ड के रूप में.उस समय उन्हें आधी दिल्ली दा मलिक (दिल्ली के आधे हिस्से का मालिक) कहा जाता था। उन्हें 1944 के बर्थडे ऑनर्स में सर की उपाधि से विभूषित किया गया था। शोभा सिंह के छोटे भाई सरदार उज्जल सिंह सांसद बन गए जो बाद में पंजाब और तमिलनाडु के राज्यपाल भी बने।सर शोभा सिंह के चार बेटे थे भगवंत, खुशवंत, गुरबक्श और दलजीत और एक बेटी थी मोहिंदर कौर। खुशवंत सिंह एक नामी पत्रकार और लेखक होने के साथ ही एक राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने 1980 से 86 तक राज्य सभा के सदस्य व इंदिरा गांधी के आपातकाल के समर्थक खुले रूप से कांग्रेस के समर्थक थे। इसके एवज में उन्हें 1974 में पद्म-भूषण पुरस्कार से और 2007 में उनको दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित भी किया गया।

थापर खानदान
जनरल डायर की मृत्यु सेरिब्रल हेमरेज से 1927 में हुई। तत्कालीन पंजाब के गवर्नर माइकल ओड्वायर का वध शहीद उधम सिंह ने 13 मार्च 1940 में की। ऐसी दुर्दांत घटना के बाद तत्कालीन पंजाब के गवर्नर माइकल ओड्वायर को स्वर्ण मंदिर में सम्मानित किया गया था। मृत्यु के बाद उसके परिवार को पंजाब से ही कुंज बिहारी थापर, उम्र हयात खान, चौधरी गज्जन सिंह और राय बहादुर लाल चंद की ओर से 1,75,000 रुपये दिए गए।
कुंज बिहारी थापर के तीन बेटे थे दया राम, प्रेम नाथ तथा प्राण नाथ। इसके अलावा उन्हें पांच बेटियां भी थीं। पत्रकार करण थापर के पिता जनरल प्राण नाथ थापर एकमात्र ऐसे सेना प्रमुख थे जिन्होंने युद्ध हारा था। 1962 में चीन से लड़ाई हारने के कारण ही उन्हें 19 नवंबर 1962 को अपमानित होकर जबरन इस्तीफा देना पड़ा था। 1936 में प्राण नाथ थापर ने गौतम सहगल की बहन बिमला बशिराम सहगल से शादी की थी। वहीं 1944 में गौतम सहगल की नयनतारा सहगल से शादी हुई। नयनतारा सहगल जवाहरलाल नेहरू की बहन विजया लक्ष्मी की तीन बेटियों में से दूसरी बेटी थी। प्रसिद्ध मार्क्सवादी इतिहासकार रोमिला थापर इन्ही कुंज बिहारी थापर के बेटे दायराम थापर की बेटी हैं और रिश्ते मे कर्ण थापर की बहन हैं।

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