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संपादकीय

राष्ट्रघाती मुस्लिम तुष्टिकरण

जो बातें अंग्रेजों के काल में नहीं हो पायीं वे स्वतंत्र भारत में हो गयीं। यथा-
नेहरू परिवार की व्यक्ति पूजा परक राजनीति।
नेहरू परिवार की मुस्लिम परस्त राजनीति।
नरसिम्हाराव के प्रधानमंत्री काल में मस्जिदों के मुल्लाओं का वेतन सरकारी कोष से दिये जाने की घोषणा।
सन 1993 ई. में हज के लिए सरकारी सहायता की घोषणा।
भाजपा ने अपने शासनकाल में दिखावे के रूप में इस व्यवस्था में कुछ परिवर्तन करते हुए व्यवस्था दी कि जो व्यक्ति एक बार हज कर आया है या कर दाता की श्रेणी में आता है उसे हज करने हेतु सरकारी सहायता नहीं दी जाएगी।
किंतु कांग्रेस ने पुन: इस व्यवस्था को परिवर्तित कर दिया है। उसने हाजियों की संख्या 72 हजार से बढ़ाकर 82 हजार कर दी है।  आंध्र प्रदेश की सरकार ने मुस्लिमों को पांच प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने की घोषणा कर दी है। रामविलास पासवान बिहार के अंदर सत्ता में आने पर इसे दस प्रतिशत करना चाहते हैं।
अब संप्रग सरकार एक ‘अल्पसंख्यक शिक्षा आयोग’ बनाने जा रही है जो अल्पसंख्यकों की शिक्षण संस्थाओं को मान्यता दिलाने का कार्य करेगा। हरियाणा में मेवात को एक अलग जिला बना दिया गया है। प्राय: जिसका जिलाधिकारी तथा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मुस्लिम ही होगा। मुस्लिमों के अत्याचारों से दु:खी होकर वहां से हिंदू जनता पलायन कर रही है। किंतु किसी भी धर्मनिरपेक्ष नेता का ध्यान उस ओर नहीं है।
भारत की सशस्त्र सेनाओं में मुस्लिमों की पच्चीस प्रतिशत भर्ती करने की मांग की जा रही है, अर्थात जनसंख्या मुस्लिमों की तेरह प्रतिशत और सेना में स्थान 25 प्रतिशत? 
तुष्टिकरण का खतरनाक खेल
कल पाकिस्तान  से जब युद्घ होगा तो इस्लाम का ‘दारूल हरब’ और ‘दारूल इस्लाम’ का मौलिक सिद्घांत हमारे मुस्लिम सैनिकों के सिर चढक़र बोलेगा। तब क्या होगा? स्वतंत्रता को सच्चा खतरा तो इस प्रकार की आत्मघाती सोच और इन धूत्र्ततापूर्ण नीतियों से है। जिनकी ओर हमारा ध्यान आकृष्ट नहीं किया जाता। हमारे माननीय नेतागण दूसरी ओर हमारा ध्यान ले जाते हैं और ‘स्वतंत्रता खतरे में है’ का राग अलापकर हमें भ्रमित करते हैं। वास्तव में स्वतंत्रता तो काश्मीर में दम तोड़े पड़ी है, जहां से लाखों कश्मीरी पंडित पलायन कर देश में इधर-उधर शरणार्थी के रूप में जीवन यापन कर रहे हैं। 
जो लोग कश्मीर के मूल निवासी हैं-वही आज अपने ही देश में शरणार्थी हो गये हैं और एक विदेशी मजहब को मानने वाले लोग कश्मीर के स्वामी बन गये हैं। शोषण अपने अति घृणित  स्वरूप में देखा जा सकता है, पर उधर कोई भी नही देखने दे रहा।
कुछ समय पूर्व ही समाचार पत्रों की सुर्खियों में एक समाचार आया था कि जम्मू कश्मीर राज्य की मुस्लिम पुलिस ने एक ग्राम के सात हिंदुओं का खून नसें काटकर पहले तो पिया और बाद में उन्हें भूनकर खा लिया।
इनका दोष केवल यह था कि ये उग्रवादियों को पकड़वाने में भारतीय सुरक्षा बलों की सहायता कर रहे थे। कल को यदि यही स्थिति भारतीय सशस्त्र सेनाओं के नौजवानों के साथ हुई तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। यहां तो साम्प्रदायिक शिक्षा दिलाने की पूरी व्यवस्था करने के उपरांत भी व्यक्ति से देशभक्त होने की अतार्किक अपेक्षा की जाती है। स्वतंत्रता के जहाज में बड़े-बड़े छेद किये जा रहे हैं और इन घातक छेदों के प्रति राष्ट्र से मौन साधने और उन्हें अनदेखा करने की अपेक्षा की जा रही है।
यह कार्य राष्ट्रहितों के विरूद्घ है-जो हमारी मिली हुई राजनीतिक स्वतंत्रता को भी लील रहा है। ऐसे में एक ही प्रश्न है कि कौन करेगा आज इस स्वतंत्रता की रक्षा? यह प्रश्न खड़ा हो गया है हर देशभक्त के मन मस्तिष्क में। मुस्लिम सल्तनत और बादशाहत के काल में भारत में हिन्दू-मुस्लिम जनता के लिए अलग-अलग विधान था। स्वतंत्रता के पश्चात भी ऐसी ही व्यवस्था चली आ रही है-जिसे हमारे कर्णधार अपनी-अपनी भेदभाव पूर्ण नीतियों से और भी सुदृढ़ करते चले जा रहे हैं।
आज भी हिन्दुओं से कुछ कर लेकर मुस्लिमों के हज, मदरसों आदि पर व्यय कर दिया जाता है। इसे आप कह सकते हैं ‘जजिया’ का वर्तमान रूप। कितना बड़ा षडय़ंत्र है? क्या होगा इसका परिणाम?
(लेखक की पुस्तक ‘वर्तमान भारत में भयानक राजनीतिक षडय़ंत्र : दोषी कौन?’ से)
पुस्तक प्राप्ति का स्थान-अमर स्वामी प्रकाशन 1058 विवेकानंद नगर गाजियाबाद मो. 9910336715

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