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संपादकीय

गुजरात विधानसभा चुनाव : अब क्या करना चाहिए पीएम को?

वैसे तो हमारे देश में ऐसा कई बार हुआ है कि जब केंद्र में किसी पार्टी विशेष की सरकार होती है तो प्रदेश के लोग किसी दूसरी पार्टी को अपने यहां सरकार बनाने का जनादेश दे देते हैं। ऐसा हमने उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से देखा है, जब यहां पर सपा या बसपा की सरकारें रहीं और केंद्र में किसी दूसरी पार्टी की सरकार रही। पर जब लोकसभा के चुनाव आए तो लोगों ने प्रदेश की सरकार का ध्यान न करके केंद्र के लिए दूसरा जनादेश दिया।
इस सब के उपरांत भी देश में जब भी किसी प्रदेश की विधानसभा के चुनाव होते हैं तो वह एक प्रकार से लोगों की मानसिकता और देश की केंद्र सरकार के प्रति सोच को प्रकट करने वाले भी होते हैं। जब देश में कांग्रेस की तूती बोल रही थी तो ऐसे कई प्रदेश थे जिनमें लंबे समय तक कांग्रेस की सरकारें बनी रहीं। वास्तव में प्रदेशों में आने वाली वे कांग्रेसी सरकारें इस बात का प्रमाण होती थीं कि लोग केंद्र की सरकार के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करते हैं। ऐसा ही अब भी हमें मानना चाहिए जब भाजपा की तूती बोल रही है। इस दृष्टिकोण से गुजरात विधानसभा के चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं। हिमाचल प्रदेश में जो कुछ हुआ है वह स्थानीय स्तर पर सरकार के प्रति लोगों के गुस्से का परिणाम है। इसके उपरांत भी मात्र 1% से सत्ता बीजेपी के हाथ से जाना यह भी प्रकट करता है कि नाराजगी के बावजूद लोगों ने भाजपा को वोट दिया है। इसका अर्थ यही है कि लोग वहां भी अभी प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व के विरुद्ध बड़ी बगावत पर आना नहीं चाहते।
जबसे गुजरात राज्य अस्तित्व में आया है तब से अब तक की सबसे बड़ी जीत यहां के मतदाताओं ने भाजपा को दी है और 182 विधायकों की गुजरात विधानसभा में 156 भाजपा को देकर इतिहास रच दिया है। हम यह प्रारंभ से ही मानकर चल रहे थे कि गुजरात के लोग कभी यह नहीं चाहेंगे कि उनके कारण प्रधानमंत्री मोदी को नीचा देखना पड़े। वास्तव में गुजरात में बीजेपी की हार प्रधानमंत्री मोदी की हार होती और इसका प्रभाव आगामी लोकसभा चुनावों पर पड़ना निश्चित था। यही कारण था कि प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात के लोगों से चुनाव प्रचार के प्रारंभ में यह आवाहन किया कि वह भूपेंद्र पटेल को रिकॉर्ड मतों से जिताकर उन्हें नई ताकत प्रदान करें।
ऐसा कहकर प्रधानमंत्री ने गुजरात के लोगों में भावनात्मक एकता स्थापित की और गुजरात के लोगों पर उनकी अपील पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। परिणाम स्वरूप लोगों ने वही कर दिखाया जो प्रधानमंत्री ने उनसे अपेक्षा की थी। इससे प्रधानमंत्री मोदी का व्यक्तित्व और भी अधिक मजबूत होकर उभरा है और गुजरात के माध्यम से बाहरी संसार के देशों में भी यह संदेश चला गया है कि प्रधानमंत्री मोदी का जादू अभी बरकरार है।
इस बार गुजरात विधानसभा चुनावों के परिणामों ने अपना ही कीर्तिमान ध्वस्त कर दिया है। बीजेपी 156, कांग्रेस 17 ,आप 5 और अन्य 4 पर विजयी होने में सफल हुए हैं। गुजरात के अलग हिमाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस सत्ता में लौटी है। उसने 68 सीटों वाली विधानसभा में 40 सीटें लेकर शानदार सफलता प्राप्त की है। जबकि एमसीडी के चुनावों में दिल्ली में ‘आप’ ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए ढाई सौ सीटों वाली एमसीडी में 134 सीटें झटक कर भाजपा को सत्ता से दूर कर दिया है।
इस ऐतिहासिक जीत का सबसे सुखद पहलू यह है कि गुजरात के लोगों ने आम आदमी पार्टी को मुंह नहीं लगाया। सत्ता के लिए रेवड़ी बांटने की आम आदमी पार्टी की नीति को लोगों ने नकारा है। यह सचमुच एक सुखद संदेश है और आशा की जानी चाहिए कि देश के अन्य प्रदेशों के लोग भी रेवड़ी बांटने वाली आम आदमी पार्टी को ऐसा ही सबक सिखाएंगे। कॉन्ग्रेस की ओर से चुनाव में प्रारंभ से ही शिथिलता और निष्क्रियता बरती गई। उसी का परिणाम रहा कि यह पार्टी गुजरात में लगभग हाशिए पर चली गई थी। कांग्रेस की निष्क्रियता और सफलता बड़ी तेजी से आम आदमी पार्टी को पनपने का अवसर उपलब्ध करा रही है। जाने या अनजाने में कांग्रेस अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हुए अपने आप सत्ता के गलियारों से बहुत दूर जा पड़ी है। वास्तव में चुनाव प्रचार से गांधी परिवार का दूर रहना कांग्रेस के लिए महंगा पड़ा। राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया ने चुनाव प्रचार के लिए अपनी पार्टी के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को ही मैदान में उतारा। खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष हो सकते हैं पर वह एक स्टार प्रचारक नहीं हैं। इसके अतिरिक्त उनमें कोई चुंबकीय गुण भी नहीं है। उनका भाषण बड़ा नीरस होता है। लोग उनके प्रति आकर्षित ना हो सकते थे और ना हुए।
फलस्वरूप कांग्रेस बुरी तरह हार गई।
लोकतंत्र में जनता आज जिनको नकार रही है कल उन्हीं को हार पहना कर सत्ता की ओर लेकर चल देती है। लोकतंत्र में हार जीत चलती रहती है। पर यदि किसी प्रदेश की जनता किसी एक पार्टी को निरंतर 27 वर्ष तक सत्ता की ओर फटकने नहीं दिया और किसी एक ही पार्टी को निरंतर सत्ता देती रही तो फिर सोचना पड़ेगा कि इतने दिनों तक निरंतर हारने वाले दल में कहीं ना कहीं तो कमी है और इतनी देर तक निरंतर जीतने वाले दल में कहीं ना कहीं कोई न कोई तो विशिष्टता है, गुण है, खूबी है।
भारतीय जनता पार्टी विरोधी लोगों का यह आरोप निरंतर चलता रहा है कि भाजपा ईवीएम में गड़बड़ी करा कर सत्ता प्राप्त करती है। पर अब ऐसा आरोप भी नहीं लगाया जा सकता क्योंकि दिल्ली एमसीडी चुनाव में यदि आम आदमी पार्टी परचम लहराने में सफल रही है तो हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस इसी भूमिका में दिखाई दी है। फलस्वरूप यही कहा जाएगा कि चुनाव पूर्णता निष्पक्ष और पारदर्शी रहे हैं।
कांग्रेस को इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि उसके लिए आम आदमी पार्टी तेजी से एक विकल्प के रूप में उभरती आ रही है। उसकी विचारधारा, नीति और राजनीति सबको आम आदमी पार्टी समाप्त कर सकती है। इस प्रकार उसे भविष्य के लिए भाजपा से अधिक खतरा आम आदमी पार्टी से मानकर चलना चाहिए। लोग भाजपा से दु:खी होकर अपने लिए एक विकल्प के रूप में यदि आम आदमी पार्टी की ओर आकर्षित होते चले गए तो कांग्रेस का क्या अस्तित्व होगा ? इस पर पार्टी को गहराई से मंथन करना चाहिए।
गुजरात के लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी का सम्मान रखने के लिए भी भाजपा का साथ दिया है। वह नहीं चाहते थे कि गुजरात से प्रधानमंत्री मोदी की पराजय का सिलसिला आरंभ हो और वह उन्हें देश के प्रधानमंत्री के पद से भी हटने के लिए विवश कर दें। गुजरात की प्रचंड जीत के पीछे जहां मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल का कार्य उत्तरदायी है, वहीं हमारे द्वारा उठाए गए इस बिंदु को भी दिमाग में रखने की आवश्यकता है। भाजपा के लोगों को भी इस बात पर चिंतन मंथन करना चाहिए कि यदि प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा उनके चुनाव प्रचार से हटा दिया जाए तो उनकी औकात क्या है ? वैसे भी भाजपा वाले कांग्रेस के ‘परिवार’ को कोसते रहते हैं, हमारा मानना है कि परिवार में तो फिर भी 2 या 4 लोग होते हैं, पर भाजपा तो केवल एक व्यक्ति पर केंद्रित होकर रह गई है।
मोदी के नेतृत्व के बगैर 2017 में पहली बार बीजेपी लड़ी और पार्टी को लगभग पचास प्रतिशत (49.05 %) वोट आने के उपरांत भी मात्र 99 सीटें ही आईं अर्थात् बहुमत से मात्र 8 ज्यादा, जबकि कांग्रेस को 77 सीटें (41.44% वोट शेयर) मिल गई थीं।
अब जबकि प्रधानमंत्री मोदी गुजरात विधानसभा चुनावों में पार्टी को प्रचंड जीत दिलाने में सफल हो गए हैं तो उन्हें अब कुछ और चिर प्रतीक्षित मुद्दों पर काम करने की आवश्यकता है। जिसके लिए देश की जनता उनसे विशेष अपेक्षा रखती है। निश्चित रूप से इन कार्यों में देश की बढ़ती जनसंख्या के लिए कठोर कानून की आवश्यकता के साथ-साथ समान नागरिक संहिता को लागू करना भी आवश्यक है। देश की मुस्लिम सांप्रदायिकता देश के लिए घातक रही है और पिछली शताब्दी में उसने देश को तोड़ने का काम किया है। अब हम इस नई शताब्दी के पहले 25 वर्ष पूर्ण होने से पूर्व मुस्लिम आबादी को बढ़ने से रोकने में सफल हो जाते हैं तो यह बहुत बड़ा काम होगा। प्रधानमंत्री श्री मोदी को गुजरात चुनावों के उत्साहजनक परिणाम के पश्चात अब देश की बढ़ती जनसंख्या के संदर्भ में इस्लामिक सांप्रदायिकता पर स्थाई प्रतिबंध लगाने के लिए कठोर कानून कानून लाना चाहिए। देश की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा उनके इस प्रकार के निर्णय का स्वागत करेगा। यदि वह अब ऐसा करने में चूक करते हैं तो निश्चय ही लोकसभा के 2024 के चुनावों में इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है जो भाजपा के विरुद्ध होगा। उन जैसे मजबूत निर्णय लेने वाले प्रधानमंत्री से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह जन अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए शीघ्र ही इस दिशा में कार्य करेंगे।
यह तब और भी अधिक आवश्यक हो जाता है जब देश के मुस्लिम जन समुदाय में यह भावना तेजी से बढ़ती जा रही है कि मोदी के बाद हिंदुत्व की राजनीति समाप्त हो जाएगी या हिंदू नेता कब तक ऐसी नीतियों पर काम करेंगे ? आखिर एक दिन जनसंख्या के बल पर वह भारत को समाप्त करने में सफल हो जाएंगे। जनसंख्या वृद्धि कई मुस्लिमों के लिए आज भी ‘अपना राज’ लाने का एक कारगर हथियार है। माना कि लोकतंत्र में सिरों की गिनती का खेल बड़ा महत्वपूर्ण होता है सिरों की गिनती के इस खेल को किसी एक वर्ग को मिटाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यदि सिरों की गिनती के खेल के आधार पर हिंदू भी कहीं ऐसा करता है तो हम उसके भी समर्थक नहीं है।
तब यह आवश्यक है कि देश की जनसंख्या के आंकड़ों को किसी भी दृष्टिकोण से गड़बड़ाने की अनुमति किसी भी समुदाय को नहीं दी जानी चाहिए । देश की आर्थिक समृद्धि के लिए तो जनसंख्या नियंत्रण आवश्यक है ही साथ ही यह देश के आंतरिक हालात और देश की सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी आवश्यक है।
हमें आशा करनी चाहिए कि प्रधानमंत्री श्री मोदी गुजरात चुनावों के परिणाम से उत्साहित होकर शेष देश की जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के दृष्टिकोण से उपरोक्त दोनों बिंदुओं पर ठोस कार्य करके इतिहास रचेंगे। उन्हें यह काम आगामी लोकसभा चुनावों से पहले करना चाहिए। गुजरात ने आज यदि अपने ही कीर्तिमान को तोड़ा है तो हम समझते हैं कि यदि प्रधानमंत्री उपरोक्त जनापेक्षा पर खरा उतरते हैं तो एक दिन देश की जनता भी उनके प्रति विश्वास को और गहरा करते हुए अपने ही कीर्तिमान को तोड़कर दिखा देगी। हमें यह मानना चाहिए कि प्रधानमंत्री श्री मोदी अब गुजरात चुनावों के परिणामों के पश्चात जनसंख्या नियंत्रण और समान नागरिक संहिता लागू करने की ओर ही बढ़ेंगे।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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