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संपादकीय

गुजरात चुनाव करेंगे देश की दिशा तय

गुजरात विधानसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा कर दी गई है जिसके अनुसार पहले चरण में 1 दिसंबर को 89 सीटों पर मतदान होगा ,जबकि 5 दिसंबर को दूसरे चरण में 93 सीटों पर मतदान होगा। इसके पश्चात 8 दिसंबर को मतगणना के पश्चात किस दल की नई सरकार बनेगी ? यह स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। यहां पर यह बात भी उल्लेखनीय है कि सत्ता में आने या बने रहने के लिए 92 सीटों की आवश्यकता है क्योंकि प्रदेश विधानसभा की कुल 182 सीटें हैं।
यहां पर यह बात भी उल्लेखनीय है कि प्रदेश में पिछले 24 वर्ष से भाजपा की सरकार कार्य कर रही है। भाजपा के लिए एक बार फिर सत्ता में लौटना बहुत आवश्यक है, क्योंकि प्रधानमंत्री श्री मोदी का गुजरात गृह प्रदेश है। यदी प्रदेश की जनता प्रधानमंत्री के साथ खड़ी होगी तो उन्हें प्रदेश से बाहर देश के अन्य क्षेत्रों में जाकर वोट मांगने में सुविधा होगी। इस प्रकार गुजरात के आगामी चुनाव प्रदेश के अतिरिक्त देश की भावी राजनीति की दिशा तय करेंगे। भाजपा का यहां सत्ता से हटना आगामी लोकसभा चुनाव को भी प्रभावित करेगा। प्रदेश के मतदाता इस बात को भली प्रकार जानते हैं कि प्रधानमंत्री श्री मोदी का गृह प्रदेश होने के कारण आगामी चुनावों का क्या महत्व है? ऐसा लगता नहीं कि प्रदेश में मोदी विरोधी कोई फैक्टर काम कर रहा है।
गुजरात में पिछली बार 2017 में पहले चरण का चुनाव नौ दिसंबर 2017 और दूसरे चरण का चुनाव 14 दिसंबर को हुआ। नतीजे 18 दिसंबर को आए थे। पहले चरण में 89 और दूसरे चरण में 93 सीटों पर वोटिंग हुई थी। उससे पहले 19 वर्ष से भाजपा वहां पर सत्ता में बनी हुई थी। 2017 में भी भाजपा को अगले 5 वर्ष के लिए जनादेश मिला। इस प्रकार भाजपा अब तक पिछले 24 वर्ष से सत्ता में बनी हुई है। इस बार के चुनाव में कांग्रेस के साथ-साथ आम आदमी पार्टी ने भी भाजपा को सत्ता से उखाड़ने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी है। लोकतंत्र में किसी भी सत्तासीन पार्टी को उखाड़ फेंक कर अपने आपको सत्ता का प्रबल दावेदार बनाना किसी भी राजनीतिक दल का मौलिक और लोकतांत्रिक अधिकार होता है। इसके उपरांत भी यह बात अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है कि किसी राजनीतिक दल के लिए सत्ता में आने या न आने के लिए उसकी नीतियां, सोच ,विचारधारा आदि बहुत प्रभावकारी होते हैं। उखाड़ फेंकने का संकल्प ही पर्याप्त नहीं है अपितु उसका विकल्प बनने की अपनी योग्यता का प्रमाण देना भी अनिवार्य है।
कॉन्ग्रेस को लोगों ने उसकी सोच और विचारधारा के आधार पर ही पिछले 24 वर्ष से सत्ता के निकट नहीं फटकने दिया है। जबकि आम आदमी पार्टी अपनी सोच और विचारधारा से गुजरात के मतदाताओं को कितना प्रभावित कर सकती है ? यह इस चुनाव में देखना होगा। यद्यपि आप को सत्ता से रोकने के लिए दो बातें बहुत अधिक प्रभाव दिखा सकती हैं ,एक तो यह कि गुजरात के मतदाता आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार की कार्यशैली और रेवड़ी बांटने की नीति से कितना सहमत होते हैं ? दूसरे पंजाब में उसने किस प्रकार का प्रदर्शन किया है, उसे कितने लोग सही संदर्भ में समझ सकते हैं ? इसके उपरांत भी यह भी सच है कि गुजरात में आम आदमी पार्टी इस समय शोर अच्छा मचा रही है। इस शोर को वोट में बदलने से वह कितना दूर खड़ी है या इसमें कितनी सफलता उसे मिल सकती है ? यह तो चुनाव परिणाम के दिन ही पता चल पाएगा ।
कॉन्ग्रेस इस समय अपने संक्रमण काल से गुजर रही है। उसे राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में खड़गे मिल तो गए हैं परंतु वह वोट खींचने वाले नेताओं में से नहीं है। उन्हें अभी भी रिमोट कंट्रोल से सोनिया गांधी ही चलाएंगे। उनकी अवस्था भी इस समय बहुत अधिक काम करने की नहीं है। कहीं तक उनका उम्रदराज होना ही कांग्रेस का अध्यक्ष बनने की उनकी बड़ी योग्यता रही है। वहां अभी भी एक परिवार के हाथ में ही सत्ता है। लोगों को यह भली प्रकार पता है कि कांग्रेस के अध्यक्ष की शक्तियां कितनी हैं? कहने का अभिप्राय है कि गुजरात के इन चुनावों में कांग्रेस को वोट देने का अर्थ किसी एक परिवार को ही वोट देना होगा और उस परिवार की विश्वसनीयता गुजरात के मतदाताओं में कितनी है? यह भी इस चुनाव से स्पष्ट हो जाएगा।
2017 के साथ रहे कई बड़े चेहरे इस बार कांग्रेस पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं। इसमें हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकुर जैसे नाम सम्मिलित हैं। हार्दिक पटेल ने हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। अल्पेश 2017 में कांग्रेस विधायक बने थे। उन्होंने विधायकी छोड़कर भाजपा का दामन थामा था। हालांकि, बाद में हुए उपचुनाव में उन्हें हार मिली थी।
जहां तक गुजरात के इन चुनावों में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की बात है तो भाजपा के वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे हैं। उनके नेतृत्व में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन करने में सफलता प्राप्त की है और यदि इस समय तक के एग्जिट पोल पर विश्वास किया जाए तो उनके नेतृत्व में भाजपा सत्ता में फिर से लौट रही है। भाजपा के लोगों का मानना है कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के इस गृह प्रदेश में पार्टी को मजबूती से खड़ा करके मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने में सफलता प्राप्त की है। गुजरात के वर्तमान मुख्यमंत्री ने मतदाताओं को प्रधानमंत्री की प्रदेश में कमी नहीं अखरने दी है। किसी भी प्रधानमंत्री के गृह प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए यह बात बहुत आशा भरी हो सकती है कि उसने कम से कम प्रधानमंत्री मोदी जैसे प्रधानमंत्री को राज्य के लोगों के साथ हर पल खड़ा रहने की अनुभूति कराते हुए अपने आपको एक विनम्र विकास पुरुष के रूप में स्थापित किया है। इसका लाभ भाजपा को मिलना निश्चित है।
भाजपा को इन चुनावों में यदि सफलता मिलती है तो वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल को दोबारा मुख्यमंत्री बनाया जाना तय है। गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष जगदीश भाई कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं। यद्यपि कांग्रेस ने अभी तक किसी भी नाम की घोषणा नहीं की है और ना ही यह स्पष्ट किया है कि वह किस व्यक्ति के नेतृत्व में चुनाव लड़ने जा रही है? जगदीश भाई के अलावा कांग्रेस सांसद शक्ति सिंह गोहिल, जिग्नेश मेवानी व कुछ अन्य नेता भी इस दौड़ में हैं।
गोपाल इटालिया: आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया भी सीएम पद की रेस में हैं। अगर आम आदमी पार्टी को जीत मिलती है तो गोपाल इटालिया पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं। गोपाल इटालिया इन दिनों काफी विवादों में हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अपशब्द का प्रयोग किया था। इसके बाद उन्हें हिरासत में भी ले लिया गया था।
इन चुनावों में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव के सबसे बड़े चेहरे हैं। वह भाजपा के स्टार प्रचारक ही नहीं है बल्कि गुजरात के लोगों पर उन्होंने देर तक अपने जादुई प्रभाव से शासन भी किया है। एक बार सत्ता में आने के पश्चात भाजपा को इतनी देर तक गुजरात में सत्ता में स्थापित किये रखने में उनका सबसे बड़ा योगदान है। गुजरात के लोग अभी भी उनसे असीम प्रेम करते हैं। गुजरात में वह चुनावी रैली कर रहे हैं और उनकी रैलियों में जिस प्रकार बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हो रहे हैं उससे लगता है कि गुजरात में उनका सिक्का अभी भी चल रहा है। लोग उनकी बातों पर विश्वास करते हैं और उन्हें अपना नेता मानते हैं। पीएम मोदी के बाद गुजरात चुनाव में भाजपा के लिए दूसरा सबसे बड़ा चेहरा गृहमंत्री अमित शाह का है। अमित शाह गुजरात के गांधीनगर से सांसद हैं। गुजरात के ही रहने वाले हैं और राष्ट्रीय राजनीति में आने से पहले इनकी पूरी राजनीति गुजरात पर ही केन्द्रित रही है।
अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी की ओर से एक प्रमुख चेहरा है तो प्रियंका गांधी कांग्रेस की ओर से एक बड़े चेहरे के रूप में यहां पर काम कर रही हैं। अरविंद केजरीवाल पंजाब विधानसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने और वहां पर अपनी सरकार बनाने के बाद काफी उत्साहित दिखाई देते हैं । उन्हें लग रहा है कि उनकी नौटंकी गुजरात में भी अपना काम करने जा रही है। परंतु वह गुजरात के मतदाताओं को अपनी विचारधारा के आधार पर अपने साथ जोड़ने में कितना सफल हो सकते हैं यह समय ही बताएगा ? उन्हें गुजरात की सत्ता में आने के लिए मोदी मोदी फैक्टर मोदी व्यक्तित्व की त्रिवेणी से निकलना होगा। इस त्रिवेणी सेव है पार निकल जाते हैं या इसी में डूब जाएंगे यह सब 8 दिसंबर को ही स्पष्ट हो पाएगा। यद्यपि गुजरात के मतदाताओं के मूड को भागते हुए c-voter का जिस प्रकार एग्जिट पोल आया है उससे वहां पर भाजपा की सरकार बनती हुई दिखाई दे रही है। आम आदमी पार्टी वहां पर दूसरी पार्टी के रूप में तो नहीं पर तीसरी या चौथी पार्टी के रूप में अवश्य स्थापित होती दिख रही है। वर्तमान में आम आदमी पार्टी के लिए इतना हो जाना भी पर्याप्त है।
यदि कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी जब राजनीति में नहीं थीं तो उनसे बहुत बड़ी बड़ी उम्मीदें देश के लोग लगा रहे थे। पर जब राजनीति में आकर वह अपने भाई जैसी ही गलतियां करने लगीं तो लोगों का उनकी ओर आकर्षण कम हो गया। कभी राजीव गांधी के लिए कहा जाया करता था कि चेहरे की सुंदरता को देखकर ही उन्हें वोट मिल जाती हैं। पर अब भारत 30 – 35 वर्ष पहले के दौर से बहुत आगे निकल चुका है। अब राजनीति में अभिनेता और चेहरे की सुंदरता काम नहीं करते हैं। अब तो काम ही काम करता है। अभिनेता राजनीति से विदा हो चुके हैं और अब नेता के नेतृत्व के गुण उसका व्यक्तिगत चरित्र , उसकी देश के प्रति योगदान की भावना, उसका इतिहास आदि सब बहुत महत्वपूर्ण हो गए हैं। ऐसे में प्रियंका गांधी केवल और केवल अपनी पारिवारिक विरासत के आधार पर यदि चुनाव में उतर रही हैं तो किसी विरासत के आधार पर सत्ता देना अब देश के नागरिकों को गवारा नहीं है। अब लोग नौकरी, बेरोजगारी आदि को भी पीछे रखकर देश की सुरक्षा, सामाजिक शांति और सद्भाव की गारंटी को प्राथमिकता दे रहे हैं। जो सरकार उन्हें सबसे पहले इन तीनों चीजों को उपलब्ध कराती है या कराएगी, उसे ही वे अपने लिए उचित मान रहे हैं।
गुजरात विधानसभा के इन चुनावों में केंद्र सरकार द्वारा कृषि कानून वापस लेने के बाद भी विपक्ष किसानों के मुद्दे पर सरकार को घेरता रहा है। गुजरात में भी ये बड़ा मुद्दा बन रहा है। विपक्ष का आरोप है कि भाजपा सरकार उद्योगपतियों का कर्ज माफ कर रही है, लेकिन किसानों का नहीं। इसी को लेकर विपक्ष लगातार सरकार को घेरने में जुटा है। इसके पश्चात दूसरा मुद्दा बेरोजगारी का है । बेरोजगारी के मुद्दे की भी विपक्ष चुनाव प्रचार के दौरान लगातार उठाएगा। युवाओं में रोजगार के कम अवसर की वजह असंतोष की बातें भी गुजरात में लगातार होती रही हैं। भर्ती परीक्षाओं में देरी का भी मुद्दा भी चुनाव के दौरान हावी रह सकता है। जबकि तीसरा मुद्दा महंगाई का है। इस समय राष्ट्रीय स्तर पर महंगाई का मुद्दा हावी रहा है। इसका असर गुजराज चुनाव में भी देखने को मिलेगा। अभी से विपक्षी दलों के नेता महंगाई पर सरकार को घेरने में जुटे हैं। पेट्रोल-डीजल की कीमतों, सब्जियों और खाद्य पदार्थों की महंगाई को लेकर भी सरकार निशाने पर है।
जहां भाजपा को उपरोक्त तीनों मुद्दों पर विपक्ष घेरने की तैयारी कर रहा है वहीं भाजपा ने अपने पक्ष में चुनावी माहौल को बनाए रखने के लिए विकास, राष्ट्र सुरक्षा, आम लोगों की सुविधा, गरीबों-किसानों को मजबूत बनाने के मुद्दे पर चुनाव मैदान पर उतरने का फैसला लिया है। भाजपा हर जगह अपने विकास कार्यों की गिनती करा रही है। एम्स, आईआईटी जैसे राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों को बनाने की बात कह रही है। हाईवे, पुल, अंडर ब्रिज, टनल, मेट्रो जैसे अन्य कार्यों को बताकर लोगों से भाजपा के पक्ष में वोट करने की अपील की जा रही है।
हमारा मानना है कि इन चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपना व्यक्तित्व, बिलकिस बानो मामले के दोषियों की सजा में छूट का मामला, सत्ता विरोधी लहर ,मोरबी पुल हादसा, बेरोजगारी, दूरदराज के क्षेत्रों में बुनियादी शिक्षा स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, किसानों की समस्याएं , खराब सड़कें भूमि अधिग्रहण बिजली की ऊंची कीमतें आदि मुद्दे चुनाव को प्रभावित करेंगे। इन अनेक मुद्दों पर लोगों का मत विभाजन होना भी निश्चित है। लोकतंत्र में मत विभाजन होना अनिवार्य होता है। इतना ही नहीं मत विभाजन औचित्यपूर्ण भी होता है। क्योंकि यदि किसी एक पार्टी को ही लोग थोक के भाव वोट दें तो इससे लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है। किसी भी पार्टी को प्रचंड बहुमत देना उसे तानाशाही प्रवृत्ति का बनाता है। यही कारण है कि लोकतंत्र में सत्ता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए लोगों को राजनीतिक दलों के नेता अपनी-अपनी पार्टियों की नीतियों से अवगत कराते हैं । उन्हें किस प्रकार अधिक से अधिक सुख सुविधाएं देकर सरकारी योजनाओं को भी परिपूर्ण किया जाएगा ? इस बात का भी खाका खींचते हैं। भारत के संदर्भ में यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि कई नेताओं ने और राजनीतिक दलों ने केवल सत्ता प्राप्ति के लिए जनता को अपनी नीतियों से अवगत कराते हुए उन्हें अपनी ओर से दी जाने वाली सुख सुविधाओं के नाम पर केवल सपने बेचे और जब सत्ता में आ गए तो वे सारे सपने चूर चूर हो गए।
इस पर अब देश का सर्वोच्च न्यायालय बहुत सक्रिय हो गया है। जिसके चलते इस समय देश के राजनीतिक दल फूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं। ऐसे में चुनाव प्रचार बहुत ही महत्वपूर्ण और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों तक सिमट कर रह जाने की अपेक्षा की जाती है। यदि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर सारी चुनावी सभाओं को केंद्रित करते हुए चुनाव प्रचार किया गया और साथ ही साथ प्रदेश के विकास का खाका भी खींचा गया तो यह स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। यद्यपि देश के राजनीतिक दलों से इतने ऊंचे आदर्शों पर काम करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। इस सब के उपरांत भी हम यह मानते हैं कि जिस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी का गुजरात से अपना गहरा संबंध है और उन्हें वहां पराजित करने के लिए जिस प्रकार सभी विरोधी राजनीतिक दल अपना अपना दम दिखा रहे हैं उसके दृष्टिगत गुजरात विधानसभा के चुनाव भारत की राजनीति की दिशा तय करने वाले होंगे। यदि भाजपा यहां पर इस बार पराजित हो जाती है तो उसका प्रभाव अगले लोकसभा चुनावों पर निश्चित रूप से पड़ेगा और यदि कांग्रेस सत्ता में आ जाती है तो यह कांग्रेस के लिए 2024 में केंद्र सरकार केंद्र में वापसी की ओर बढ़ने का एक निश्चय प्रमाण होगा पूर्णविराम जबकि यदि आम आदमी पार्टी ने यहां अपना सरकार गठन करके दिखा दे तो वह भी देश की राजनीति को बदलने वाला निर्णय होगा। यद्यपि ऐसा कुछ भी चमत्कार होने वाला लगता नहीं जिससे आम आदमी पार्टी और कांग्रेस वहां इतिहास रचने जा रहे हैं। इसके उपरांत भी हमारी पूर्ण सहानुभूति उनके साथ है।

डॉक्टर राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत

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