भारतीय संस्कृति के उद्भट्ट प्रस्तोता के रूप में ख्याति प्राप्त पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डा. एपीजे अब्दुल कलाम के अंतिम शब्द थे-‘धरती को जीने लायक कैसे बनाएं?’
कलाम साहब के इस प्रश्न का उत्तर स्वयं उनका अपना जीवन है, मनुष्य स्वयं को उनके जैसा बना ले तो यह धरती जीने लायक अपने आप हो जाएगी। वेद का आदेश है कि ‘मनुर्भव:’ अर्थात मनुष्य बनो। मनुष्य बनने की अपनी एक लंबी साधना है और इस साधना को साकार रूप दिया डा. कलाम ने। वह इसी साधना की साक्षात प्रतिमूर्ति बनकर इस धरा पर विचरे, अपने जीवन का शुभारंभ उन्होंने इसी प्रश्न के उत्तर की खोज के लिए किया, कि धरती को जीने लायक कैसे बनायें? और जब संसार से गये तो मानो मौन भाषा में कह गये कि जैसे मैंने अपने जीवन को साधना की भट्टी में तपाया और उसे महानता की ऊंचाईयां दीं उसी रास्ते का अनुसरण करना और इस धरती को जीने लायक बना देना।
लोग डॉ. कलाम को सलाम कर रहे हैं। सबसे बड़ी श्रद्घांजलि उन्हें संयुक्त राष्ट्र ने दी है, जिसने घोषणा कर दी है कि उनकी जन्मदिवस छात्रदिवस के रूप में मनाया जाया करेगा। वह इसी सम्मान के पात्र थे। अब डा. कलाम मिसाइलमैन से ‘मिसाल’ मैन बन गये हैं, ‘विशाल’ मैन बन गये हैं। उनके मिसाल और विशाल व्यक्तित्व को यह विश्व कभी भुला नही पाएगा। डा. कलाम को कोटिश: प्रणाम। -देवेन्द्रसिंह आर्य