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इतिहास के पन्नों से हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

विवेक की वाणी : भारत का वैभव

विवेकानंद की पुण्यतिथि पर

  • संजय पंकज

सचमुच का आनंद है,अपना विश्व विवेक!
भारत का गौरव हुआ,वह तो एक अनेक!!
सदा उतरता ध्यान में, उसके रहा महान!
रोम रोम में वह बसा,परिचित सकल जहान!!
उसकी प्रज्ञा- साधना,उसका रूप- अनूप!
वह आलोकित सूर्य था, वही सुवासित धूप!!
× × × ×
महान राष्ट्रवादी योद्धा संन्यासी विवेकानंद धर्मभूमि भारत के भास्वर स्वर हैं, जो विश्वाकाश में अमर आलोक प्रसरित करके विश्वविभूति हो गए।उनकी चिंतन-किरणें आज भी मनुष्य को यथार्थ का बोध कराती हैं।उनके होने को अर्थ गौरव प्रदान करती हैं।जीवन का लक्ष्य और उसका सौंदर्य क्या है?- विवेकानंद के विचार-प्रवाह में बहते हुए समझा जा सकता है।मनुष्य अपनी असीम,अनंत क्षमताओं को नहीं जानता है और नहीं जानता है संकल्प की शक्ति को।वह भटक रहा है अंधकार के घने जंगल में। वह अपने को अभिशप्त मानकर व्यवस्था और लाचारी का जीवन जी रहा है।उसकी विवशताओं और लाचारियों से मुक्ति देने का सामर्थ्य स्वामीजी के विचारों में है। मनुष्य की अंधकार-यात्रा उसकी मूर्च्छना है।उसका अंधकार अज्ञानता का है,मोह का है,डर का है।वह बाहरी जगत को देखता है और भौतिक संसाधनों से स्वयं को सुखी करना चाहता है। मनुष्य भोग के दलदल में फंसकर अपना बहुमूल्य जीवन नष्ट करता है।पंचमकारों में तो संसार के सारे प्राणी फंसे रहते हैं।जन्म से लेकर मृत्यु तक वे भी जीवनयापन करते हैं और उसके लिए नितांत स्वार्थी होकर लड़ते झगड़ते भी हैं।उनका कोई भविष्य नहीं होता है।आनेवाले समय की उन्हें कोई चिंता नहीं होती;केवल अपना और कुछ हदतक अपने परिवार की फिक्र होती है उन्हें।मनुष्य अगर तमाम प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है तो वह उसकी अपनी क्षमता की पहचान,उस पर विश्वास और उसका विवेकपूर्ण बहुजन हिताय के लिए समर्पण।कारण और भी अनेक हैं।स्वामी विवेकानंद ने भाग्याश्रित तथा प्रमादग्रस्त मनुष्य की शक्तियों को अपनी वाणी के तेज से जागृत किया,उसे अपने अंतर्जगत के आलोक का साक्षात्कार कराया और आध्यात्मिकता के दिव्यानंद का स्वाद चखाया।मन से ऊपर हृदय के पास उसे बिठाया और आत्मा से उद्बोधित होने का मंत्र दिया। मनुष्य को समग्रता में जीवन जीने की विवेकानंद ने कला सिखाई और उसे अपने देवत्व से परिचित कराया।दिशाभ्रमित समाज को सही मार्ग दिखाते हुए स्वामी जी ने नई ऊर्जा का संचार किया और उसकी गतिशीलता को सही लक्ष्य की ओर उन्मुख किया।
विवेकानंद ने शिकागो के विश्व धर्म संसद में बताया औरजताया कि वाणी की निर्मलता का संस्पर्श कितना आत्मीय और कल्याणप्रद होता है‌। उस धर्मसंसद के लिए नितांत अजनबी और अनजान थे विवेकानंद‌।एक गेरुआ वस्त्रधारी भारतीय युवासंन्यासी पूरी सभा का जब सिंहावलोकन करता हुआ अपनी भूमिका में उतरा तो संबोधन और वाणी की आत्मीयता से सब को मुग्ध कर दिया।यह व्यक्तित्व के पवित्र आचरण और चरित्र की उज्जवलता का प्रभाव था‌।एक अडिग,अटल और दृढ़ व्यक्तित्व गरिमा,आत्मविश्वास और गौरव से दीप्त हो पूरी सभा में अपनी निष्ठा और संकल्प के आलोक में प्रसरित हो रहा था।विवेकानंद असाधारण,अनुपम और विलक्षण थे।उनकी असाधारणता उनके आत्मविश्वास में,अनुपमता त्याग में और विलक्षणता संकल्पदृढ़ता में निहित है।महज उन्चालीस वर्षों का जीवन और उसमें ही उन्होंने वह किया जो एक आदमी हजार वर्षों में भी नहीं कर सकता है।वह मनसा-वाचा-कर्मणा परमशुद्ध, संकल्पसंपन्न और दृढ़चरित्रनिष्ठ थे।वेदांत के गूढ़ ज्ञान का व्यवहारिक और वैज्ञानिक निदर्शन करते-कराते हुए स्वामी जी दर्शन के उत्कर्ष पर पहुंच गए थे।उनका संवेदनात्मक विस्तार हुआ और वे गहरी रागात्मिका से भर गए।कृष्ण के पुरुषार्थ,राम की मर्यादा और बुद्ध की करुणा के पुंजीभूत विग्रह विवेकानंद शिवमय शिवस्वरूप थे।रामकृष्ण परमहंस ने उनके मूल स्वरूप को पहचान लिया था।उन्होंने उनकी शक्ति को उजागर किया और उसे जगजाहिर कर मानवता के उद्धार में लगाया।
कन्याकुमारी के समुद्र में स्थित चट्टान पर ध्यान में बैठकर उस दृढ़ संकल्प युवा संन्यासी ने आखिर क्या अनुभूत किया होगा, क्या आत्मसात किया होगा और क्या प्रत्यक्ष किया होगा कि वहां से निकलते ही वह आक्षितिज फैलता चला गया।स्वामी विवेकानंद मर्त्यमानव के लिए विचार संजीवनी का ऐसा अक्षयकोष लेकर आए थे जो कभी रीत नहीं सकता।वे युगांतर और युगांतरकारी पुरुष थे। उनकी वाणी का तेज हतभागी और अधम जाति में प्राण का संचार करने में सक्षम है। खुले आसमान के नीचे गर्जना करते समुद्र के बीच गहन रात्रि में युवासाधक ने जंजीर जकड़ी भारतमाता की करुण पुकार सुनी होगी!अज्ञानता के अंधकार में डूबे मानवता का कातर चेहरा देखा होगा! व्यवस्था और लाचारी से फटी आंखें देखी होंगी!जातियों,संप्रदायों,धर्मों के नाम पर लड़ते-झगड़ते कटते-मरते व्यक्ति समूहों को देखा होगा! पूरे संसार का आधार बनी धरतीमाता की दुर्दशा देखी होगी!और देखा होगा ईश्वर का आलोक!तभी तो एक सर्वथा रूपांतरित देवोपम व्यक्तित्व संसार के सामने आया था। विवेकानंद में दृढ़ता आई। उनका संकल्प अटूट हुआ और उन्होंने अपनी सारी शक्तियों का विश्व- कल्याण में भरपूर सदुपयोग किया।
विवेकानंद का शौर्य साहस और तेज अतुलनीय था। विवेक,बुद्धि और ज्ञान अनुपम था। उन्हें किसी और का क्या मृत्यु तक का भय नहीं था! वह चिरअभय चिर आनंद थे। वे मृत्युपर्यंत जीवन का आनंदराग गाते रहे और उसके भावयथार्थ से संसार को परिचित कराते रहे‌। उनका अवतरण ही रूढ़िबद्ध जनसंवेदन की मुक्ति के लिए हुआ था। भारतीयता के गौरव,मानवीय सभ्यता की पराकाष्ठा, शील-संस्कृति के शिखर,वेदांत के ज्ञानसूर्य, विश्वबंधु, आलोकपुरुष स्वामी विवेकानंद ने अपनी मातृभूमि भारत की संचेतना को अपने सिर पर धारण कर अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के विश्वास को सहज संस्कारबद्ध कर पूरब और पश्चिम के बीच विराट मनुष्योचित आध्यात्मिक सेतु का निर्माण किया।उनका राष्ट्रीय भाव अखंड था। भारत केवल भूखंड भर नहीं है – इसका वैभव,इसका ज्ञान और आध्यात्मिक उत्कर्ष है। भारत एक संस्कार और संस्कृति है। यह भाव संसार के किसी भी देश और किसी जातिसमूह में अगर विद्यमान है तो सही अर्थ में वहां भारत है‌। राष्ट्रसपूत स्वामी विवेकानंद गर्व से कहते थे – ‘भारत राष्ट्र समस्त राष्ट्रों में अत्यधिक सदाचारी और धार्मिक राष्ट्र है।’ उनकी दृष्टि में धार्मिकता जीवन पद्धति भर नहीं;आत्मोन्नयन और संवेदना की सघन लय है जो एक दूसरे को प्रेम और शिष्टता के साथ जोड़ती है।वे कहते थे – ‘त्याग का आदर्श भारत के आदर्शों में अब भी सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च है। हमने कभी दूसरी जाति पर विजय प्राप्त की आकांक्षा नहीं की यही हमारा महान गौरव है। भारतीयता सदा जादू-सा असर करती है।’
विवेकानंद एक महान साधक ही नहीं विराट मनुष्य थे। उनका विश्वास था कि सभी प्राणी ब्रह्म है और हर एक व्यक्ति अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार ईश्वर का एक-एक रूप है।उन्होंने अपने हृदय के द्वारा ही संसार के मर्म को छुआ और उसे अपना बनाया। उन्होंने संसार को ऐसा झंकृत किया कि भारत का वह युवा विवेक पूरे विश्व का आलोक आनंद हो गया। स्वामी जी संपूर्ण जगत के थे। आज भी हैं। उन्होंने कहा भी – ‘न किसी जाति विशेष के प्रति मेरा तीव्र अनुराग है और न घोर विद्वेष ही है। मैं जैसे भारत का हूं वैसे ही समग्र जगत का भी हूं। जो लोग यथार्थकर्मी हैं और अपने हृदय में विश्वबंधुत्व का भाव रखते हैं वे प्रणम्य हैं।’ स्वामी विवेकानंद एक ऐसे प्रेरक और आकर्षक व्यक्तित्व हैं जो हमें निर्भीकता के साथ सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं‌। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की किसी से तुलना नहीं की जा सकती है। विश्वबंधुत्व का जो संवेदनात्मक द्वार उन्होंने अपने विचारसंवेदन और वाणीतेज तथा कर्मसमर्पित जीवन से खोला वही मानव मात्र के लिए मुक्तिद्वार है। उस युवा साधक का पराक्रम विश्व को आज भी जागृत कर रहा है। भारत को तो उसकी नितांत आवश्यकता है। इस देश के दिशाभ्रम को उसी का विचार-आलोक दूर कर सकता है। युवाओं के लिए विवेकानंद से बढ़कर दूसरा कोई मोटीवेटर नहीं हो सकता है। विवेकानंद अमर विचार-प्रवाह का नाम है। वह अग्निचेतना विस्तृत विराट पुरुष कभी मर नहीं सकता। विवेकानंद आज भी अपनी ऊर्जा के साथ जीवित हैं और रहेंगे। उस युवा तेज का इन पंक्तियों के साथ अभिनंदन –
ले बांध मुट्ठियों में आंधी तो सांस हवा की बंध जाए/
दे खोल बंधे अपने कर तो तूफान गगन पर चढ़ जाए/
ले अंगड़ाई तो एक बार सदियों की गांठे ढीली हों/
जिसकी वाणी का तेज देख भय से छलनाएं पीली हों/
जिसकी बिजली से एक बार निस्तेज जरा भी कौंध उठे/
उस तेजस्वी नर की ऐसी उद्दीप्त जवानी की जय हो/
पदचिह्नों पर सिंह दहाड़ चले ऐसे अभियानी की जय हो।

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