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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

गांधीवाद की परिकल्पना -4

राक्षसों का दमन अनिवार्य गांधीजी ने राजनीति के सुधार की बात तो की किंतु राक्षसों के दमन का कोई भी उपदेश अपने प्रिय शिष्य जवाहर को नहीं दिया। इसलिए गांधीजी का दृष्टिकोण और गांधीवाद दोनों ही भारत में उनकी मृत्यु के कुछ दशकों में ही पिट व मिट गये। जबकि ऋषि वशिष्ठ का श्रीराम को […]

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गांधीवाद की परिकल्पना – 3

कमीशन की राजनीति कमीशन के नाम पर जिन बड़ी महत्वाकांक्षी योजनाओं और उद्योग नीति का श्रीगणेश यहां पर किया गया उसकी परिणति यह हुई है कि कमीशन आधारित राजनीति का शिकंजा पूरे देश पर कसा जा चुका है। इसे राजनीतिक पार्टियां चंदे का नाम देती हैं। वास्तव में यह चंदा राजनीतिज्ञों की खरीद फरोख्त का […]

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गांधीवाद की परिकल्पना

‘भारत नेहरू-गांधी का देश हो गया है।’ तथा इसकी विचारधारा गांधीवादी हो गयी है। ये विशेषण है जो हमारे कर्णधारों ने विशेषत: स्वतंत्र भारत में उछाले हैं। वास्तव में सच ये है कि इन विशेषणों के माध्यम से देश को बहुत छला गया है। वाद क्या होता है? हमें कभी ये भी विचार करना चाहिए […]

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ऐतिहासिक भवनों एवं किलों की उपेक्षा-2

इस धर्मनिरपेक्षता की रक्षार्थ यदि इन्हें हमारी वीर राजपूत जाति की क्षत्राणियों के हजारों बलिदानों को भुलाना पड़े, उनके जौहर को विस्मृति के गड्ढे में डालना पड़े और उन्हें अधम कहना पड़े तो ये लोग ऐसा भी कर सकते हैं। यह अलाउद्दीन के उस प्रयास को जो उसने महारानी पदमिनी को बलात् अपने कब्जे में […]

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भारत में अल्पसंख्यकों की समस्या, भाग-2

ऐसी परिस्थितियों में अल्पसंख्यक लोगों की विशेष समस्या बनकर उभरी कि इनके जीवन को सुरक्षा प्रदान करने के लिए क्या उपाय किया जाए? सामान्यत: देखा गया है कि बाहरी देश नस्ल और संप्रदाय के लोगों को किसी दूसरे देश के निवासी अधिक सम्मान नहीं देते हैं। युगांडा जैसे कई अफ्रीकी देशों से एशियाई मूल के […]

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भारत में अल्पसंख्यकों की समस्या, भाग-2

ऐसी परिस्थितियों में अल्पसंख्यक लोगों की विशेष समस्या बनकर उभरी कि इनके जीवन को सुरक्षा प्रदान करने के लिए क्या उपाय किया जाए? सामान्यत: देखा गया है कि बाहरी देश नस्ल और संप्रदाय के लोगों को किसी दूसरे देश के निवासी अधिक सम्मान नहीं देते हैं। युगांडा जैसे कई अफ्रीकी देशों से एशियाई मूल के […]

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सर्वधर्म-समभाव का भ्रम-2

सर्वधर्म-समभाव का भ्रम -1 स्वतंत्रता के पश्चात से भारत में दस अच्छी बातों को 90 बुरी बातों पर विजयी बनाने के लिए प्रोत्साहित करने का बेतुका राग अलापा जा रहा है। इसके लिए ही ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘सर्वधर्म समभाव’ जैसे नारे यहां गढ़े गये हैं। होना तो यह चाहिए था कि इन 90 बुरी बातों को […]

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जर, जोरू और जमीन, भाग-5

ये षडय़ंत्रकारी मिथक भी अब टूटना चाहिए कि भूमि को लेकर विश्व लड़ता आया है। इसके स्थान पर भारतीय संस्कृति की यह क्षात्र-परम्परा अब पुन: प्रतिष्ठित हो कि दूसरों की भूमि को लेकर हड़पना, उन पर अपना वर्चस्व स्थापित करना दुष्टता है, जिसके विरोध में हम सदा युद्घ करते आये हैं और करते रहेंगे। संक्षेप […]

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जर, जोरू और जमीन, भाग-4

यह धारणा भी इण्डो अरब संस्कृति के कथित उपासकों की इस काल्पनिक संस्कृति की परिचायक है। यदि वास्तव में यह मान लिया जाए कि संसार में जितने भी युद्घ हुए हैं वे सभी अपने-अपने वर्चस्व की स्थापना के लिए हुए हैं और ऐसा तो होता ही आया है और होता भी रहेगा, तो परिणाम क्या […]

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जर, जोरू और जमीन, भाग-3

इस्लाम की व्यवस्था देखिये इस्लाम में स्पष्ट व्यवस्था है-”ऐसी औरतें जिनका खाविन्द (पति) जिंदा है, उनको लेना हराम है, मगर जो कैद होकर तुम्हारे साथ लगी हों उनके लिए तुम्हें खुदा का हुक्म है और उनके सिवाय भी अन्य दूसरी सब औरतें हलाल हैं, जिनको तुम माल अस्वाब देकर कैद से लाना चाहो, न कि […]

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