214 झूठ कपट को छोड़कर, कर ली ऊंची सोच। अंतः सुख जो हो गया, मिला उसी को मोक्ष।। मिला उसी को मोक्ष, सब आना-जाना छूटा। पाया ब्रह्मानंद उसी ने, मधुरस जिसने लूटा।। झूठी दुनिया छोड़ी जिसने करी नाम की लूट। मिले शरण उसी को, छोड़ दिया जिसने झूठ।। 215 काया, मन, बुद्धि सभी, हों योगी […]
श्रेणी: कविता
211 सब भूतों में एकरस , रमा हुआ भगवान। अविनाशी उसको कहें, अर्जुन से भगवान।। अर्जुन से भगवान , मिलती मुक्ति उसको। निर्गुण है परमात्मा,ना छूता विकार उसको।। नहीं बांटता भगवान, छूत और अछूतों में। विराजमान है भीतर, जग के सारे भूतों में।। 212 जिससे सब उत्पन्न हों, और धारते प्राण। उसी में सबकी लय […]
208 खोज अपने आप की, सबसे बड़ी है खोज। जिन खोजो है आपुनो ,बन गई ऊंची सोच।। बन गई ऊंची सोच ,किया विषयों से किनारा। भीतर हुआ प्रकाश ,छोड़ दिया जगत पसारा।। खोजी खोजें खोज में, और ऊंची रखते सोच। सोच मिलती शोध से,और पूरी होती खोज।। 209 मन कपट की धार है, वाणी भरी […]
205 शिव का कर ले ध्यान तू ,करे वही कल्याण। भवसागर से पार हो, जीवन का हो त्राण।। जीवन का हो त्राण , मिलेगी मुक्ति तुझको। मुनि मनीषी जप रहे, ध्यान लगाकर उसको।। हाथ का मनका छोड़, पकड़ मन का मनका। बेड़ा पार तेरा होगा , ध्यान करेगा शिव का।। 206 पढ़ लिखकर नौकर हुए, […]
187 सत्व ,रज और तम से बना, चित्त उसी का नाम। जब तामस इसमें बढ़े, करता उल्टे काम।। करता उल्टे काम, अधर्म और अनीति लावै । उल्टी देता सीख मनुज को, अज्ञान बढ़ावै।। विषयों में जा फंसता मानव, छा जाता है तम। बताए प्रकृति के तीन गुण, सत्व ,रज और तम।। 188 वासना के भूत […]
184 संसार नदिया बह रही, आशा जिसका नाम। जल मनोरथ से भरी, कलकल कहे प्रभु नाम।। कलकल कहे प्रभु नाम, उठती तरंग तिरसना। राग द्वेष के मगर घूमते, मार रही है रसना।। तर्क वितर्क के पक्षी जल में, करते खुले विहार। अज्ञान रूपी भंवर देखकर, व्याकुल है संसार।। 185 जग नदिया के घाट पर, भई […]
181 फटी पुरानी गूदड़ी , और चिंता जिससे दूर। भिक्षा ले भोजन करे, आनंद करे भरपूर।। आनंद करे भरपूर , नाम ईश्वर का भजता। नींद लेय बड़ी मस्ती से, मस्त सदा ही रहता। राग द्वेष से मुक्त , कटे जिसकी जिंदगानी।। वह गूदड़ी बड़ी कीमती, बेशक फटी पुरानी।। 182 उदय – अस्त हो सूर्य, उमर […]
178 अनुकूल पति के जो चले, वही है उत्तम नार । आज्ञा उसकी मानकर, करत सभी ब्यौहार।। करत सभी ब्यौहार , कभी ना उल्टी चलती। करे सहज स्वीकार , यदि हो जाए गलती।। रखती मीठी वाणी, आचरण करे ना प्रतिकूल।। मति और गति सब ,रखती स्वामी के अनुकूल।। 179 जिसके मन में लोभ है, दुर्गुण […]
175 श्रेष्ठ पुरुष की संगति , सबसे ऊंचा लाभ। मूरख के संग जो रहे, जाय दुखों के धाम।। जाय दुखों के धाम , कभी ना चैन से सोता। मूर्ख संगत से बड़ा , कोई नहीं दुख होता।। श्रेष्ठ पुरुष के संग से, सुधरे जीवन की गति। प्रारब्ध के योग से , हो श्रेष्ठ पुरुष की […]
172 छाल के कपड़े पहन के, मुनि बहुत संतुष्ट। हीरे सोने लाद कर , राजा हुआ संतुष्ट।। राजा हुआ संतुष्ट, दोनों का संतोष बराबर। दरिद्र वही होता मानव, तृष्णा करे उजागर।। तृष्णा के वशीभूत हो, दरिद्र का बिगड़े हाल। वह संतोषी धनवान है, पहने वृक्ष की छाल।। 173 मीत ! यह संभव नहीं, सज्जन बदले […]