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भारत में समाजवाद और आर्थिक-सामाजिक न्याय का सपना

मनीराम शर्माब्रिटिश सरकार ने भारत के देशी उद्योग धंधों को नष्ट कर दिया था। कच्चा माल ब्रिटेन जाता था और बदले में तैयार माल आता था। इस प्रकार देश का शासन विशुद्ध व्यापारिक ढंग से संचालित था। स्वतंत्रता के पश्चात देशवासियों को आशा बंधी थी कि रोजगार में वृद्धि से देश में खुशाहाली आएगी और […]

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किसने लिखा जन.जन की आरती ओम जय जगदीश हरे

अरविंद छाबड़ाओम जय जगदीश हरे। ये आरती उत्तर भारत में वर्षों से करोड़ों हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को स्वर देती रही हैए लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके रचयिता पर ब्रितानी सरकार के खिलाफ प्रचार करने के आरोप भी लगे थे। पंजाब के छोटे से शहर फि ल्लौर के रहने वाले श्रद्धा राम फि […]

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नव संवत्सर को अपनाएं-निज गौरव का मान जगाएं

विनोद बंसलभारत व्रत पर्व व त्यौहारों का देश है। यूं तो काल गणना का प्रत्येक पल कोई न कोई महत्व रखता है किन्तु कुछ तिथियों का भारतीय काल गणना (कलैंडर) में विशेष महत्व है। भारतीय नव वर्ष (विक्रमी संवत्) का पहला दिन (यानि वर्ष-प्रतिपदा) अपने आप में अनूठा है। इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। […]

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जब मानव मांस का शौकीन था ब्रिटिश राज घराना

लंदन। अपनी भव्य दावतों और स्वादिष्ट व्यंजनों के शौक के लिए मशहूर ब्रिटेन का शाही घराना कभी मानव मांस खाने का भी शौकीन रहा है। एक किताब में इस बात का खुलासा किया गया है। ममीज, कैनिबाल्स एंड वैम्पायर किताब में खुलासा किया गया है कि ब्रिटेन के शाही घराने के लोग सम्भवत 18वीं सदी […]

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रामसेतु मुद्दे को कब तक उलझाएगी केन्द्र सरकार

प्रवीण गुगनानी भारत जैसे विशाल राष्ट्र मैं विवाद और विषय आते जाते रहते है और इनका उलझना सुलझना भी एक सामान्य प्रक्रिया है किन्तु जिस प्रकार से पिछले वर्षों मैं संस्कृति से जुड़े विषयों पर सरकार का रुख प्रगतिवादी होने के नाम पर भारतीयता और हिन्दुत्व का विरोधी होता जा रहा है वह एक बड़ी […]

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शक्कर की मिठास में कड़वाहट

सतीश सिंहमिठास में कड़वाहट घोलने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। उत्पाद शुल्क फिलहाल तो नहीं बढ़ाया गया है, लेकिन महज इसकी चर्चा मात्र से बीते सप्ताह में इसके वायदा भाव में 2.5 प्रतिशत और हाजिर भाव में 1 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। तत्पश्चात उत्तर प्रदेश में शक्कर का भाव (मिल कीमत) तकरीबन […]

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आज के इस दौर में आम आदमी की बात कौन उठाएगा?

आशीष वशिष्ठदेश के आम आदमी की बात आखिरकर कौन करेगा ये यक्ष प्रश्न है। राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता या फिर मीडिया। आम आदमी किसी की प्राथमिकता नहीं है। अगर देश के किसी कोने से आम आदमी के लिए आवाज उठती है तो उसमें स्वार्थ की चासनी लिपटी होती है। नि:स्वार्थ भाव से कोई […]

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संविधान के विपरीत है वीआईपी और वीवीआईपी श्रेणी

बी.पी. गौतमविशिष्ट और अति विशिष्ट लोगों की सुरक्षा में लगे जवानों और उन पर किये जा रहे खर्च का मुद्दा उच्चतम न्यायलय तक पहुँच गया है। विशिष्ट और अति विशिष्ट लोगों को सुरक्षा देनी चाहिए या नहीं, इस पर बहस भी छिड़ गई है। कोई कह रहा है कि सुरक्षा देनी चाहिए, तो किसी का […]

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वैलेंटाइन डे विकृति

डा. मधु सूदन(1) वह उत्सव समाज में समन्वयता, सामंजस्य, सुसंवादिता, या भाईचारा बढाने वाला हो।(2) ऊंच-नीच या अलगता का भाव प्रोत्साहित करनेवाला ना हो।(3) समाज के अधिकाधिक सदस्यों का उत्थान करने वाला हो।(4) समाज के सभी स्तरों को स्पर्श करने की क्षमता रखता हो।(5) सांस्कृतिक परम्पराओं से जुडने की क्षमता रखता हो ।व्हॅलंटाईन डे, इनमें […]

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धाराशायी हो रहे मीडियाई सैनिक

विकास गुप्ताभारतीय मीडिया का समग्र ढांचा कहीं न कहीं पाश्चात्य मीडिया के अनुसरण पर आधारित है। इतिहास गवाह हैए मीडिया शब्द को वैश्विक स्तर के अनेक पत्रकारों ने खून.पसीने से सींचा है। प्रख्यात द टाईम्स ने एक सिद्धान्त बनाया था कि समाचार पत्र भण्डाफोड़ से जीवित रहते हैं। द टाईम्स को सरकार की आवाज कहा […]

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