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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

रजिया के शासन काल में भी जलती रही स्वतंत्रता की ज्योति

रजिया भारतवर्ष के तुर्क गुलाम वंश की नही अपितु पूरी सल्तनत काल में हुई एकमात्र मुस्लिम महिला सुल्तान है। कुछ लोगों ने हिंदू धर्म की अपेक्षा इस्लाम को अधिक प्रगतिशील माना है। परंतु इस कथित ‘प्रगतिशील धर्म’ ने अपनी इस महिला सुल्तान को अपना पूर्ण सहयोग और समर्थन प्रदान नही किया। फलस्वरूप ये मुस्लिम महिला […]

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अल्तमश के काल में धधकती रही सर्वत्र क्रांति की ज्वाला

क्या कहते हैं विदेशी विद्वान हमारे विषय मेंभारतीयों के विषय में प्रो. मैक्समूलर ने लिखा है:-‘‘मुस्लिम शासन के अत्याचार और वीभत्सता के वर्णन पढक़र मैं यही कह सकता हूं कि मुझे आश्चर्य है कि इतना सब होने पर भी हिंदुओं के चरित्र में उनके स्वाभाविक सदगुण एवं सच्चाई बनी रही।’’यहां मैक्समूलर ने मुस्लिम अत्याचारों की […]

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स्वतंत्रता के महायोद्घा:उदयसिंह, भरतपाल, वाग्भट, जैत्रसिंह एवं वीर नारायण

पिछले पृष्ठों पर हमने शाहिद रहीम साहब का उद्घरण प्रस्तुत किया था, जिसमें उन्होंने भारत के आर्यावत्र्तीय स्वरूप का उल्लेख किया है। अपने अतीत के गौरवमयी पृष्ठों के आख्यान के लिए उनका वह उद्घरण बड़ा ही अर्थपूर्ण और तर्कपूर्ण है। उनके इस तथ्य की पुष्टिके लिए मनुस्मृति (1.2.22.29) का यह श्लोक भी ध्यातव्य है- आ […]

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अल्तमश को गद्दी पर बैठते ही मिली चुनौती

प्रसिद्घ इतिहासकार एच. जी. वैल्स ने कहा है कि-‘‘शिक्षा समाज के हित का एक सामूहिक कार्य है, केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नही है। मानव इतिहास शिक्षा और विनाश के बीच होने वाली दौड़ है।’’इस इतिहासकार का यह कथन विचार करने योग्य है कि मानव इतिहास शिक्षा और विनाश के बीच होने वाली दौड़ है। भारत […]

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ऐबक नही कर पाया था एक दिन भी निष्कंटक राज्य

संसार में दो प्रकार का ज्ञान मिलता है-एक है नैसर्गिक ज्ञान और दूसरा है नैमित्तिक ज्ञान। नैसर्गिक (निसर्ग अर्थात प्रकृति इसी शब्द से अंग्रेजी का ‘नेचर’ शब्द बना है) ज्ञानान्तर्गत आहार, निद्रा, भय और मैथुन आते हैं, जबकि नैमित्तिक ज्ञानान्तर्गत संसार के प्राणियों के संसर्ग और संपर्क में आने से मिलने वाला ज्ञान सम्मिलित है। […]

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दास वंश के दासों ने कर दिया हमारी स्वतंत्रता को घायल

दिल्ली ने भारत के उत्थान-पतन के कई पृष्ठों को खुलते और बंद होते देखा है। कई राजवंशों ने यहां लंबे समय तक शासन किया, पर समय वह भी आया कि जब उनका इतिहास सिमट गया और उनके सिमटते इतिहास केे काल में ही किसी दूसरे राजवंश ने दिल्ली की धरती पर आकर अपने वैभवपूर्ण उत्थान […]

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कुतुबुद्दीन ऐबक, जयचंद और बनारस के वो बलिदान

जब पृथ्वीराज चौहान का तेजोमयी पुण्य प्रताप मां भारती के लिए अपना बलिदान देकर मां के श्री चरणों में विलीन हो गया, और जब ‘जयचंदी-छलप्रपंचों’ के कारण कई दुर्बलताओं ने मां केे आंगन में विदेशी आक्रांता को भीतर तक घुसने का अवसर उपलब्ध करा दिया तो मौहम्मद गौरी की मृत्यु के पश्चात उसके द्वारा भारत […]

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गुर्जर प्रतीहारों ने रखा था 300 वर्ष तक देश सुरक्षित

सम्मान, संपत्ति, सत्ता और शक्ति के लिए विश्व के पिछले दो हजार वर्ष के युद्घ हुए हैं। इन युद्घों को लड़ते-लड़ते एक धारणा रूढ़ हो गयी, या स्थापित कर दी गयी कि जर, जोरू और जमीन के लिए तो सभी लड़ते हैं। जबकि ऐसा कहना समस्या का समाधान नही है, अपितु समस्या को और भी […]

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मथुरा नरेश कुलचंद का वो अप्रितम बलिदान

बात सन 986-987 की है। भारत पर उस समय आक्रमण करने की एक श्रंखला को महमूद गजनवी अभी आरंभ कर नही पाया था। तब प्रतीहार वंश भारत में पतनोन्मुख हो चला था, यद्यपि यह वंश भारत के लिए बहुत ही गौरव प्रदान कराने वाला रहा था। ऐसा गौरव जिसे देखकर इतिहासकारों की मान्यता बनी कि […]

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जब गुजरात की भूमि ने कुतुबुद्दीन ऐबक को चटाई थी धूल

गुजरात का प्राचीन काल से ही भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह प्रांत वीर गुर्जर जाति का निवास स्थान रहा है। गुर्जर जाति ने इस प्रांत से देश विदेश के बहुत बड़े भूभाग पर शासन किया और मां भारती के यश और शौर्य की गाथा का डिण्डिम घोष किया।

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