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धर्म-अध्यात्म

हे प्रभु ! आदरणीयों में आप उत्तम है

अब हम पुन: अपने मूल मंत्र अर्थात ओ३म् त्वं नो अग्ने….पर आते हैं। आगे यह वेद मंत्र कह रहा है कि विद्वानों और आदरणीयों में आप सर्वोत्तम हैं। इसलिए सर्वप्रथम पूजनीय भी आप ही हैं। आप गणेश हैं, प्रजा के स्वामी हैं, और न्यायकारी हैं , इसलिए मेरी श्रद्घा और सम्मान के सर्वप्रथम पात्र भी […]

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कामनाएं पूर्ण होवें यज्ञ से नर नार की

मनुष्य की कामनाएं अनंत हैं । अलग – अलग अवसरों पर इन कामनाओं के अलग-अलग स्वरूप हमारे सामने आते हैं । ऐसा नहीं है कि कामनाएं सदा ही बुरी होती हैं । कामनाएं अच्छी भी होती हैं । वैदिक संस्कृति की यह विशेषता है कि जो अच्छी कामनाएं हैं , शुभकामनाएं हैं , उनका तो […]

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क्या ईश्वर सृष्टि कर्त्ता है

प्रस्तुतकर्ता– भूपेश आर्यप्रश्न:- जब परमात्मा के शरीर ही नहीं,तो संसार कैसे बना सकता है,क्योंकि बिना शरीर के न तो क्रिया हो सकती है और न कार्य हो सकता है?उत्तर:- यह भी तुम्हारी भूल है।चेतन पदार्थ जहां पर भी उपस्थित होगा,वहां वह क्रिया कर सकेगा और क्रिया दे सकेगा।जहां पर उपस्थित नहीं होगा वहां पर शरीर […]

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ईश्वर और हम

ओ३म ======= हम एक मनुष्य हैं। मनुष्य कोई जड़ पदार्थ नहीं अपितु एक चेतन प्राणी होता है। चेतन प्राणी इस लिये है कि मनुष्य के शरीर में एक चेतन सत्ता जीव वा जीवात्मा का वास है। यह चेतन सत्ता शरीर से पूर्णतः पृथक होती है। चेतन व जड़ परस्पर एक दूसरी सत्ता में परिवर्तनीय नहीं […]

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संसार को बनाने और पालन करने वाली सत्ता ईश्वर ही उपासनीय है

ओ३म् ================= मनुष्य संसार में माता-पिता से एक शिशु के रूप में जन्म लेता है। वह पहली बार जब आंखे खोलता है तो शायद अपनी माता को अपनी आंखों के सम्मुख देखता है। माता के बाद वह अपने परिवार के अन्य सदस्यों यथा पिता व भाई-बहिनों सहित दादा व दादी आदि को देखता है। इसके […]

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मनुष्य वा जीवात्मा का जन्म मरण एवं मोक्ष

ओ३म् =========== संसार में तीन पदार्थ सत्य हैं। इसका अर्थ यह है कि संसार में तीन पदार्थों की सत्ता है। यह तीन पदार्थ अनादि, नित्य, अविनाशी तथा अमर हैं। यह पदार्थ सदा से इस जगत में हैं और अनन्त काल तक रहने वाले हैं। यह तीन पदार्थ हैं ईश्वर, जीवात्मा और प्रकृति। ईश्वर व जीवात्मा […]

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भगवान करते हैं अपने भक्तों पर कृपावृष्टि

यह भावना हृदय से निकलती है तो अपने समक्ष साक्षात खड़े ईश्वर को भी कृपादृष्टि और दयावृष्टि करने के लिए बाध्य कर देती है। भगवान अपने भक्त पर अपनी कृपा की वर्षा करते हैं – अर्थात उसके दोष निवारण करते हैं। इस भावना से यह स्विष्टकृताहुति यज्ञ में दी जाती है। दोष निवारण की जहां […]

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विश्व में शांति एवं कल्याण के लिए एक सत्य विचारधारा का प्रचार आवश्यक

ओ३म् =========== विश्व में अशान्ति, हिंसा, भेदभाव, अज्ञान, अविद्या, अन्धविश्वास, अनेकानेक अनावश्यक सामाजिक परम्पराओं आदि के कारणों पर विचार करें तो विश्व में अनेक परस्पर विरोधी विचारधाराओं वाले मतों और उनके अनुयायियों द्वारा अपनी सत्यासत्य मिश्रित विचारधारा को सबसे मनवानें के लिये किया जाने वाला प्रचार व अनुचित साधन ही विश्व में अशान्ति के प्रमुख […]

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घृणा प्रेम को खा जाती है

जहां घृणा होती है वहां भावनाओं में पाप छाने लगता है। घृणा प्रेम को खा जाती है, जिससे जीवन रस का स्रोत सूखने लगता है। और हमारे सबके बीच का बिछा हुआ प्रेम का तानाबाना भी छिन्न-भिन्न हो जाता है। तब व्यक्ति व्यक्ति के प्रति पाप और अत्याचार से भर जाता है। कई बार इस […]

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घृणा प्रेम को खा जाती है

जहां घृणा होती है वहां भावनाओं में पाप छाने लगता है। घृणा प्रेम को खा जाती है, जिससे जीवन रस का स्रोत सूखने लगता है। और हमारे सबके बीच का बिछा हुआ प्रेम का तानाबाना भी छिन्न-भिन्न हो जाता है। तब व्यक्ति व्यक्ति के प्रति पाप और अत्याचार से भर जाता है। कई बार इस […]

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