ओ३म् ============ मनुष्य के अनेक कर्तव्य होते हैं। जो मनुष्य अपने सभी आवश्यक कर्तव्यों का पालन करता है वह समाज में प्रतिष्ठित एवं प्रशंसित होता है। जो नहीं करता वह निन्दा का पात्र बनता है। मनुष्य का प्रथम कर्तव्य स्वयं को तथा परमात्मा को जानना होता है। हम स्वयं को व परमात्मा को कैसे जान […]
श्रेणी: धर्म-अध्यात्म
ओ३म् ============ मनुष्य दुःख से घबराता है तथा सुख की प्राप्ति के लिये ही कर्मों में प्रवृत्त होता है। वह जो भी कर्म करता है उसके पीछे उसकी सुख प्राप्ति की इच्छा व भावना निहित होती है। मनुष्यों को दुःख प्राप्त न हो तथा अपनी क्षमता के अनुरूप सुख प्राप्त हो, इसके लिये उसे क्या […]
प्रस्तुति : आचार्य ज्ञान प्रकाश वैदिक ***** “यज्ञ नमश्च। यज्ञ और नमस्कार” – यज्ञ में या यज्ञसमाप्ति पर नमस्कार की क्रिया करनी चाहिए। यज्ञ के साथ नमस्कार क्रिया का सम्बन्ध उक्त वेदवाक्य प्रकट कर रहा है। प्रायः ऐसी विचारधारा लोगों में व्याप्त हो गई है कि यदि यज्ञ में हाथ जोड़कर नमस्कार की क्रिया की […]
ओ३म् ‘धर्म का सत्यस्वरूप एवं मनुष्य के लिये धर्म पालन का महत्व’ =========== संसार में धर्म एवं इसके लिये मत शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। यदि प्रश्न किया जाये कि संसार में कितने धर्म हैं तो इसका एक ही उत्तर मिलता है कि संसार में धर्म एक ही है तथा मत-मतान्तर अनेक हैं। […]
ओ३म् ============ हम मनुष्य के रुप में जन्में हैं। हमें यह जन्म हमारी इच्छा से नहीं मिला। इसका निर्धारण सृष्टि के रचयिता परमात्मा ने किया। परमात्मा ने अपनी सृष्टि व व्यवस्था के अनुसार हमारे माता-पिता के द्वारा हमें जन्म दिया है। हमारे माता-पिता व उनके सभी पूर्वजों सहित सभी प्राणियों को भी परमात्मा ही जन्म […]
ओ३म् =========== मनुष्य व सभी प्राणी इस मृत्यु लोक में जन्म लेते हैं। शैशवावस्था से बाल, किशोर, युवा, सम्पूर्ति तथा वृद्धावस्था को प्राप्त होकर वह मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। आज का युग विज्ञान का युग है। विज्ञान ने अनेक विषयों पर अनेक गम्भीर प्रश्नों का समाधान किया है। जीवन के सम्बन्ध में विज्ञान […]
ओ३म् =========== मनुष्य जो भी कर्म करता है उससे उसे लाभ व हानि दोनों में से एक अवश्य होता है। लाभ उन कर्मों से होता है जो उसके वास्तविक कर्तव्य होते हैं। मनुष्य का प्रथम कर्तव्य अपने स्वास्थ्य की रक्षा करना है। इसके लिये समय पर सोना व जागना, प्रातः ब्राह्म मुहुर्त में 4.00 बजे […]
संसार में अनेक मत-मतान्तर प्रचलित हैं। जो मनुष्य जिस मत व सम्प्रदाय का अनुयायी होता है वह अपने मत, सम्प्रदाय व उसके आद्य आचार्य के जीवन की प्रेरणा से अपने जीवन को बनाता व उनके अनुसार व्यवहार करता है। महर्षि दयानन्द सभी मत व सम्प्रदायों के आचार्यों से सर्वथा भिन्न थे और उनकी शिक्षायें भी […]
मनुष्य की प्रमुख आवश्यकता सद्ज्ञान है जिससे युक्त होकर वह अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत कर सके और संसार व जीवन विषयक सभी शंकाओं व प्रश्नों के सत्य उत्तर वा समाधान प्राप्त कर सके। यह कार्य कैसे सम्भव हो? यदि सृष्टि के आरम्भ की स्थिति पर विचार करें तो परिस्थितियों के आधार पर यह स्वीकार करना […]
सत्यार्थप्रकाश ऋषि दयानन्द द्वारा सन् 1874 में लिखा गया ग्रन्थ है। ऋषि दयानन्द ने सन् 1883 में इसको संशोधित किया जिसका प्रकाशन उनकी मृत्यु के पश्चात सन् 1884 में हुआ था। यही ग्रन्थ आजकल ऋषि की प्रतिनिधि संस्था आर्यसमाज द्वारा प्रचारित होता है। सत्यार्थप्रकाश का उद्देश्य इसके नाम में ही निहित है। असत्य को दूर […]