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धर्म-अध्यात्म

ईश्वर प्राप्ति का एकमात्र उपाय पतंजलि प्रणीत यम नियम

प्रस्तुति : आचार्य ज्ञान प्रकाश वैदिक प्रियांशु सेठ मूर्तिपूजा अर्वाचीन है, वेदादि शास्त्रों के विरुद्ध और अवैदिक है फिर हम अपने ईश्वर को कैसे प्राप्त करें? हमारी उपासना-विधि क्या हो? उपासना का अर्थ है समीपस्थ होना अथवा आत्मा का परमात्मा से मेल होना। महर्षि पतञ्जलि द्वारा वर्णित अष्टाङ्गयोग के आठ अङ्गब्रह्मरूपी सर्वोच्च सानु-शिखर पर चढ़ने […]

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एक सच्चिदानंदस्वरूप , निराकार , सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान ईश्वर ही सबके लिए उपासनीय है

ओ३म् ========== हम इस सृष्टि में रहते हैं। हमारा जन्म यद्यपि माता-पिता से हुआ है परन्तु हमारे शरीर को बनाने वाला तथा इसका पोषण करने वाला परमात्मा है। वह परमात्मा कहां है, कैसा है, उसकी शक्ति कितनी है, उसका ज्ञान कितना है, उसका आकार कैसा है तथा उसकी उत्पत्ति कब व कैसे हुई, यह ऐसे […]

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समस्त दुखों से निवृत्ति का एकमात्र साधन योग

  प्रियांशु सेठ (विश्व योग दिवस पर विशेष रूप से प्रकाशित) आज की विकट सामाजिक परिस्थिति में वैदिक धर्म संस्कृति, सभ्यता, रीति-नीति, परम्पराएं आदि लुप्तप्राय: हो गयी हैं। इसके विपरीत केवल भोगवादी और अर्थवादी परम्पराओं का अत्यधिक प्रचार-प्रसार हो रहा है। ब्रह्म विद्या दुर्लभ होने का यह एक प्रमुख कारण है। स्थायी सुख-शान्ति की प्राप्ति […]

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संसार में अनादि पदार्थ कौन कौन से व कितने हैं

ओ३म् ========= हम संसार में सूर्य, चन्द्र, पृथिवी आदि अनेक लोकान्तर तथा पृथिवी पर अनेक पदार्थों को देखते हैं। हमें यह जो भौतिक दिखाई देता है वह सृष्टिकर्ता ईश्वर की अपौरुषेय रचना है। वर्तमान में भी कुछ पदार्थ मौलिक तत्वों की परस्पर रासायनिक क्रियाओं वा विकारों से भी बनते हैं। हमारे शास्त्र भौतिक जगत में […]

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हमारा सबसे पहला गुरु कौन ?

हम स्कूल गए। पढे। जिस अध्यापक ने हमे पढ़ाया वह भी कभी विद्यार्थी था। उसका अध्यापक भी कभी विद्यार्थी रहा था। प्रश्न उठता है जब दुनिया बनी तब सबसे पहला अध्यापक कौन था? इसका उत्तर योग दर्शन मे महर्षि पतंजलि देते हैं– क्लेश-कर्म-विपाक-आशयैः परामृष्टः पुरुषविशेषो ईश्वरः ।।24।। क्लेश-कर्म-विपाक और आशयों से रहित पुरुष विशेष ईश्वर […]

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शास्त्रार्थ के मनोरंजक क्षण : ईश्वर ने वेदज्ञान बिना बोले कैसे दिया ?

ओ३म् [ सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार ] बहुत पुरानी बात लिखने बैठा हूँ। होगी ७५ (वर्तमान में लगभग १००) साल पहले की बात।तब शास्त्रार्थों का युग था। मैं गुरुकुल में पढ़ता था। परिवार के किसी संकट में घर बुलाया गया था। घर लुधियाना के एक गाँव में था। दशहरे के दिन थे। मैं गाँव से लुधियाना शहर […]

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पापों में वृद्धि का कारण ईश्वर द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता का जीवों के द्वारा दुरुपयोग किया जाना

ओ३म् =========== संसार में मनुष्य पाप व पुण्य दोनों करते हैं। पुण्य कर्म सच्चे धार्मिक ज्ञानी व विवेकवान लोग अधिक करते हैं तथा पाप कर्म छद्म धार्मिक, अज्ञानी, व्यस्नी, स्वार्थी, मूर्ख व ईश्वर के सत्यस्वरूप से अनभिज्ञ लोग अधिक करते हैं। इसका एक कारण यह है कि अज्ञानी लोगों को कोई भी बहका फुसला सकता […]

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हमारी आत्मा के जन्म और मृत्यु का चक्र इसी प्रकार अनंत काल तक जारी रहेगा

ओ३म् =========== विज्ञान एवं दर्शन का नियम है कि अभाव से भाव पदार्थ उत्पन्न नहीं होता और भाव पदार्थों का अभाव नहीं होता। इसी आधार पर ईश्वर, जीवात्मा और इस सृष्टि का उपादान कारण त्रिगुणात्मक प्रकृति भाव पदार्थ सिद्ध होते हैं जो सदा से हैं तथा जिनका अभाव कभी नहीं होगा। यदि इस जगत् में […]

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पाप कर्मों का त्याग तथा वेद धर्म आचरण ही जन्म जन्मांतर में सुख व समृद्धि का आधार है

ओ३म् ============ मनुष्य को यह जन्म उसके पूर्वजन्मों के पाप-पुण्यरूपी कर्मों के आधार पर मिला है। वह इस जन्म में जो पाप व पुण्य कर्म करेगा, उससे उसका भावी जन्म निर्धारित होगा। जिस प्रकार फल पकने के बाद वृक्ष से अलग होता है, इसी प्रकार हम भी ज्ञान प्राप्ति और शुभ कर्मों को करके ही […]

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ईश्वर निराकार और सर्व व्यापक है

ओ३म् ========= हम अपने शरीर व संसार को देखते हैं तो विवेक बुद्धि से यह निश्चय होता है कि यह अपौरुषेय रचनायें हैं जिन्हें ईश्वर नाम की एक सत्ता ने बनाया है। वह ईश्वर आकारवान या साकार तथा एकदेशी वा स्थान विशेष में रहने वाला कदापि नहीं हो सकता। ईश्वर सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान सिद्ध होता […]

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