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धर्म-अध्यात्म

वह परमपुरुष हमारे निकट से भी निकट है

प्रार्थना और प्रभु! हमारे अंदर जो प्रभु विराजमान हैं, उनको हम उर में बोलेंगे तो वे हमारा काम कर देंगे! जो हम चाहते हैं उससे पहले वे हमारा वह कार्य करना करवाना चाहते हैं! उनकी बिना इच्छा के हम इच्छा भी नहीं कर पाते! प्रार्थना, स्वाध्याय, रीति रिवाजों व अपनी अभी की मान्यताओं से परे […]

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धर्म-अध्यात्म

भारतीय संस्कृति का खजाना : आचार्य यम और नचिकेता का संवाद

🔥 ओ३म् 🔥 यमाचार्य नचिकेता संवाद [ आध्यात्मिक ज्ञान-खजाना ] नचिकेता यमाचार्य से अध्यात्मविद्या की शिक्षा लेने गया। यमाचार्य ने ब्रह्मविद्या की महत्ता को सुरक्षित रखने के लिए और नचिकेता की इस विद्या के प्रति पात्रता जाँचने के लिए उसे कई प्रकार के प्रलोभन दिये। यमाचार्य ने नचिकेता को कहा― शतायुषः पुत्रपौत्रान् वृणीष्व बहून् पशून् […]

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धर्म-अध्यात्म

जिसने सारी कामनाओं को जीत लिया, एक काम ना तो उसकी भी शेष है…

  भारत प्राचीन काल से ही एकेश्वरवाद को मानने वाला देश रहा है। इसके ऋषियों का चिंतन बड़ा उत्कृष्ट रहा है। वैदिक चिंतन से ओतप्रोत हमारे ऋषियों ने एक ईश्वर में आस्था और विश्वास रखते हुए अपने अनेकों ग्रंथों की रचना की। उन्हीं में से हमारे उपनिषद भी सम्मिलित हैं । भारत की इस एकेश्वरवाद […]

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धर्म-अध्यात्म

मनुष्य के जन्म और मृत्यु पर विचार

“मनुष्य के जन्म व मृत्यु पर विचार” यह समस्त जड़ चेतन रूपी संसार सादि व सान्त अर्थात् उत्पत्ति धर्मा और प्रलय को प्राप्त होने वाला है। सभी जड़ पदार्थ सत, रज व तम गुणों वाली मूल प्रकृति के विकार हैं। मनुष्य व प्राणियों के शरीरों पर विचार करें तो हम पाते हैं कि इसमें हमारे […]

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धर्म-अध्यात्म

ईश्वर का त्रिकालदर्शी स्वरूप हमें सदकर्मों की प्रेरणा करता है

ओ३म् ========= हम और ईश्वर दो अलग अलग सत्तायें हैं। दोनों की सामर्थ्य भी अलग अलग हैं। मनुष्य अल्प शक्तिवाला है तो ईश्वर सर्वशक्तिमान है। मनुष्य अल्पज्ञ वा अल्पज्ञान वाला है तो ईश्वर सर्वज्ञ वा सभी प्रकार का पूर्ण ज्ञान रखने वाली सत्ता है। दोनों की सत्ता में कुछ समानतायें हैं और कुछ असमानतायें हैं। […]

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आओ कुछ जाने धर्म-अध्यात्म

ईश्वर जीव और प्रकृति संबंधी आर्य समाज के सिद्धांत

ईश्वर, जीवात्मा व प्रकृति विषयक आर्यसमाज के सिद्धान्त ईश्वर- १) ईश्वर एक है व उसका मुख्य नाम ‘ओ३म्’ है। अपने विभिन्न गुण-कर्म-स्वभाव के कारण वह अनेक नामों से जाना जाता है। २) ईश्वर ‘निराकार’ है अर्थात् उसकी कोई मूर्त्ति नहीं है और न बन सकती है। न ही उसका कोई लिङ्ग या निशान है। ३) […]

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इतिहास के पन्नों से धर्म-अध्यात्म

महर्षि दयानंद का यज्ञ के विषय में वैज्ञानिक दृष्टिकोण

महर्षि दयानन्द का यज्ञ विषयक् वैज्ञानिक पक्ष लेखक- पं० वीरसेन वेदश्रमी प्रस्तोता- डॉ विवेक आर्य, प्रियांशु सेठ यज्ञ में मन्त्रोच्चारण कर्म के साथ आवश्यक है- महर्षि स्वामी दयानन्द जी ने यज्ञ की एक अत्यन्त लघु पद्धति या विधि हमें प्रदान की जो १० मिनट में पूर्ण हो जावे। उसमें मन्त्र के साथ कर्म और आहुति […]

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धर्म-अध्यात्म

सृष्टि में मनुष्य और अन्य प्राणियों का जन्म क्यों होता आ रहा है ?

ओ३म् ========= हम संसार में जन्में हैं। हमें मनुष्य कहा जाता है। मनुष्य शब्द का अर्थ मनन व चिन्तन करने वाला प्राणी है। संसार में अनेक प्राणी हैं परन्तु मनन करने वाला प्राणी केवल मनुष्य ही है। मनुष्य का जन्म-माता व पिता से होता है। यह दोनों मनुष्य के जन्म में मुख्य कारण वा हेतु […]

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धर्म-अध्यात्म

वेद और पाप निवारण

  वेदों में पाप निवारण के विषय में ईश्वर से सबसे अधिक प्रार्थना निष्पापता अर्थात कभी पाप न करने की गई हैं। पाप निवारण की प्रार्थना का अर्थ यह नहीं हैं समझना चाहिए की किये हुए पाप नष्ट हो जाते हैं, अपितु इसका तात्पर्य यह हैं की मनुष्य पाप कर्म से सदा दूर ही रहे। […]

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धर्म-अध्यात्म

अघमर्षण मंत्रों की भावना के अनुरूप आचरण से पापों से रक्षा संभव

ओ३म् मनुष्य जीवन का उद्देश्य पूर्वजन्मों के कर्मों का भोग एवं शुभकर्मों को करके धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति करना है। यह ज्ञान केवल वेदों वा महर्षि दयानन्द के वैदिक विचारों के अध्ययन से ही ज्ञात व प्राप्त होता है। अन्य मतों वा तथाकथित धर्मों में इस विषय का न तो ज्ञान है […]

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