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बिखरे मोती

अब तनिक विचार करें पुण्य की महत्ता पर

महाभारत के दो प्रसंग बड़े ही प्रेरणादायक और अनुकरणीय हैं। पहला प्रसंग जब पाण्डुओं ने राजसूय यज्ञ किया था तब उसमें अग्र पूजा भगवान कृष्ण ने की। इस पर शिशुपाल उत्तेजित हो गया। शिशुपाल ने भगवान कृष्ण के लिए अपशब्दों का भी प्रयोग किया। भगवान कृष्ण ने उसे सौ गाली तक तो क्षमा किया किंतु […]

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पुण्य कितना बड़ा रक्षक है?

मनुष्य के दुष्कर्म (पाप) जब उसे विदीर्ण करते हैं अर्थात उसके सामने आते हैं तो वे मनुष्य पर ऐसे प्रहार करते हैं जैसे भूखे भेडिय़े अपने शिकार पर टूटते हैं और उसे नोंच नोंचकर खाने लगते हैं। ऐसे वक्त में अपने भी साथ छोड़ देते हैं। सब हेय भाव से देखते हैं। जीवन नरक बन […]

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आत्मकेन्द्रित होने का वास्तविक अर्थ क्या है

प्राय: देखा गया है कि लोग आत्म केन्द्रित होने का अर्थ-अपने तक सीमित रहना मानते हैं, जिसे अंग्रेजी में रिजर्व नेचर कहते हैं। यह तो स्वार्थपरता है, अर्थ का अनर्थ है। आत्मकेन्द्रित होने से वास्तविक अभिप्राय है-अपने आत्मस्वरूप में केन्द्रित होना, अनंत आनंद में जीना, संतोष, सरसता और शांति में जीना, इसके  लिए ध्यान में […]

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यूनान के महान, दार्शनिक प्लेटों का एक प्रेरक प्रसंग

यूनान के महान दार्शनिक प्लेटो का जन्म एथेंस में 427 ई.पू. में हुआ था। प्लेटो का जन्म एक प्रसिद्घ तथा अमीर घराने में हुआ था। बीस वर्ष की आयु में वे महान दार्शनिक सुकरात के संपर्क में आए और सुकरात की विलक्षण प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्होंने अपने व्यक्तित्व को सुकरात के व्यक्तित्व में लीन […]

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गुरू एक दिव्य शक्ति है :-

जल हमेशा नीचे की तरफ बहता है किंतु जब वह अग्नि तत्व के संपर्क में आता है तो वही जल वाष्प बनकर आकाश की ऊंचाईयों को छूने लगता है और बादल बनकर प्यासी धरती की प्यास बुझाता है। चारों तरफ हरियाली लाता है। पावस ऋतु और सुख समृद्घि का कारक बनता है। ठीक इसी प्रकार […]

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गौतम महात्मा,बुद्घ का संदेश

गौतम महात्मा बुद्घ ने अपने प्रिय शिष्य सारीपुत्र से कहा था- सारीपुत्र तुम्हारा रोम-रोम गुरूमय हो गया है। सारा जीवन क्रियामय हो गया है। तुम सत्य के इतने समीप पहुंच चुके हो जैसे कोई मरूस्थल को खोदते-खोदते जल स्रोत तक पहुंच जाय। काश तुम्हारा अनुकरण संसार के अन्य लोग भी करें किन्तु सबसे बडा आश्चर्य […]

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बुरी आदतों से निजात कैसे मिले?

बुरी आदत चाहे शराब पीने अथवा अन्य मादक पदार्थों की हो, धूम्रपान की हो, चोरी करने, ठगी करने, झूठ व कटु बोलने, असंगत बकवास करने, चुगली निंदा करने, मांसाहार, व्याभिचार करने, घात लगाना अथवा षडयंत्र रचने, कुसंग में रहने, फिजूल खर्ची व बढ़बोलेपन की हो, शेखी बघारने अथवा अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनने, ईष्र्या द्वेष […]

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आत्मन: प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत

आज का सभ्य संसार तनाव, दुराव और अलगाव का शिकार होकर दु:ख तकलीफों व कष्टï क्लेशों की समस्याओं से जूझ रहा है। यह अत्यंत ही दु:ख की बात है कि हम संसार में जो चाहते हैं उस आदर्श व्यवस्था को स्थापित करने के प्रति व्यक्तिगत रूप से अपनी ओर से प्रयास नहीं करते। हम अच्छा […]

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हे प्रभु! मुझे सत्य, यश और श्री दो

विजेंद्र आर्य का संरक्षक का संरक्षण अपने प्यारे प्रभु के दरबार में बैठते ही-यजमान यज्ञ से पूर्व आचमन करता है। बोलता है :-ओउम!अमृतोपस्तरणमसि, स्वाहा।इसका अभिप्राय होता है कि हे जगजननी जगदीश्वर मैं तेरी गोद में आ बैठा हूं। मानो मां की गोद में एक बच्चा आ बैठा हो। बच्चे ने अमृतमयी मां की गोद में […]

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बिखरे मोती

सर्वरक्षक ओउम् का स्वरूप

संसार के रचयिता जगदीश्वर के इस सर्वोत्तम नाम में तीन अनादि सत्ता समायी हुई हैं, जिनका विस्तार से धारा प्रवाह शैली में विवेचन किया जा रहा है। जो कि निम्नलिखित है-तीन अनादि सत्ता- ईश्वर, जीव, प्रकृति।उनके प्रतिनिधि अक्षर- अ, उ, म्।अ अमृत है, म् प्रकृति है। उ अमर म् के पास रहता रहेगा तो यह […]

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