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बिखरे मोती

इंद्रियों की शक्तियों का स्रोत क्या है! और कौन इन शक्तियों को पिण्ड में समेट लेता है?

” दोहा” तत्वार्थ- हमारे धर्म – शास्त्रों में ऋषियों ने बताया है कि ब्रहमाण्ड़ में जो देवता : सूर्य, चन्द्र, जल, अग्नि माने गए है इनका संमवर्ग वायु है अर्थात् वायु इनकी शक्ति को समेट भी लेता है और इनका रक्षण भी करता है। जैसे – वायु के प्रकोप से तेज अंदड़ अथवा बादल छाने […]

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बिखरे मोती

जो ब्रह्म में रमण करते हैं,उनके संदर्भ में –

‘शेर’ उन आंखों की अजीब गहराई में , समन्दर डूब जाना चाहता है। जो रूहानी रहा में, तेरा ही रूप होना चाहता है॥2418॥ ‘ सत्यप्रकाश कानपुर’ शान्ति के संदर्भ में:- शान्ति सुख की नींव है, मत खोवे नादान। बिना नीव कैसे बने, आलीशान मकान॥2019॥ षट सम्पत्ति के संदर्भ में – शान्ति से ही विकास है, […]

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बिखरे मोती

मनुष्य की कृति ही उसकी स्मृति बनती है:-

मिट्टी सबको खा गई, रावण बचे ना राम। पीछे दो ही रह गये, अच्छे बुरे दो काम॥2407॥ ब्रह्म की उपस्थिति के संदर्भ में ” शेर ” तेरी खुशबू से तेरे होने का, अहसास होता है। जैसे पौ फटने पर, सूर्य का आभास होता है॥2408॥ परमपिता परमात्मा के स्वरूप के संदर्भ में- शरणागति होकर मिले, जीव […]

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बिखरे मोती

छल-कपट अथवा चालाकी के संदर्भ में

– चालाकी करना नहीं, मन को हो एहसास। गहरी मीठी मित्रता, में पड़ जाय खटास॥2393॥ साई का सानिध्य हो, आर्जवता के बीच। लोक और परलोक में, बुरी कपट की कीच॥2394॥ ऋजुता हृदय में नहीं, हरि को रहयो पुकार। करुणा निधि कैसे मिले, निज प्रतिबिम्ब निहार॥2395॥ मानव तन दिव्या नौका है जो ईश्वर तक पहुंचाती है:- […]

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बिखरे मोती

बिखरे मोती : परमपिता परमात्मा से प्रार्थना:-

” शेर ” ऐ ख़ुदा ! तहेदिल से, तुझे आद़ाब करता हूँ । तेरे नायाब रूतबे को, ज़हन में ध्यान रखता हूँ, गिर न जाऊँ तेरी नजरो में कहीं, इस बात का हमेशा ख़याल रखता हूँ । ये सितारो की महफिल सजी है, ये महफिल है सितारो की, नयारो की बहारो की, मुनव्वर कम न […]

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बिखरे मोती

संसार में जब तक आप उपयोगी हैं तभी तक आप आदरणीय हैं

संसार में जब तक आप उपयोगी हैं तभी तक आप आदरणीय हैं:- स्वार्थ का संसार है, बिन स्वार्थ नहीं नेह। इसीलिए लगें, धन,माया और देह॥2345॥ नोट- यहां माया से अभिप्राय है सांसारिक रिश्ते। संसार उपनाम क्यों रखता है:- आचरण के अनुरूप ही, जग रखता उपनाम। किसी को कहता संत-महात्मा, कोई हो बदनाम॥2346॥ क्या है ? […]

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बिखरे मोती

कांटो की बनी सेज पर, खिलता सदा गुलाब।

बिखरे मोती विषमताओं को पार कर के ही मनुष्य विलक्षण और यशस्वी बनता है:- कांटो की बनी सेज पर, खिलता सदा गुलाब। खूबसूरती खुशबू में , अद्भुत है नायाब।।2333॥ प्रभु – इच्छा ही सर्वोपरि है:- प्रभु- इच्छा प्रबल बड़ी, पूरी हो तत्काल। एक उसके संकेत से, नर होता निहाल॥2334॥ मन कहाँ रहता है :- राग […]

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आज का चिंतन बिखरे मोती

बिखरे मोती : ‘विशेष’- प्रभु से क्या मांगें भक्ति अथवा मुक्ति ?

‘विशेष’- प्रभु से क्या मांगें भक्ति अथवा मुक्ति ? ब्रह्म-भाव में हम जीयें, करें ब्रह्म-रस पान। जीवन-धन तेरा नाम है, दो भक्ति का दान॥2775॥ तत्त्वार्थ:- हे ब्रह्मन् ! हे प्राण-प्रदाता ओ३म् !! हे धराधन्य!!! हे अनन्त और निरन्तर कृपा बरसाने वाले पर्जन्य ! आप हम पर इतनी कृपा अवश्य करें, कि आपसे निरन्तर सायुज्यता बनी […]

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बिखरे मोती

बिखरे मोती : इस संसार में आनन्द कहाँ ?

राग-द्वेष की कीच जग, मत ढूँढों आनंन्द । रमण करो हरि-नाम में, पावै परमानन्द ॥2327॥ ये कैसे लोग हैं? आन्तरिक सौन्दर्य को खोकर, बाहरी सजावट में लगे हैं:- बाहरी सजावट में लगे, ये संसारी लोग । अन्तःकरण पावित्र कर, कटेंगें सारे रोग॥2328॥ मन की प्रतिकृति कौन है – आचरण वैसा ही बने, जैसे मन में […]

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बिखरे मोती

परम पिता परमात्मा को पाना है, तो उसे खोजो मत,उसमें खो जाओ :-

परम पिता परमात्मा को पाना है, तो उसे खोजो मत,उसमें खो जाओ :- चराचर में हरि रम रहा, चिन्तन कर तू रोज। खो-जा उसके ध्यान में, मत कर उसकी खोज॥2320॥ वह कौन है? जिसे ‘वेद’ वे रसो वै सः कहा:- माया- जीव का अधिपति, जग में है भगवान। रसों का रस वह ब्रह्म है, लगा […]

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