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आज का चिंतन

वेदों में भगवान की भक्ति

यहाँ पर प्रश्न उत्पन्न होता है कि हम परमात्मा की भक्ति क्यों करें? ईश्वरभक्ति की हमें क्या आवश्यकता है? हम जड पदार्थों अथवा अल्प मनुष्यों की भक्ति क्यों न करें? ईश्वर की भक्ति से हमें क्या लाभ हो सकता है? यह प्रश्न वास्तव में बड़ा गम्भीर तथा विचारणीय है। शास्त्र कहते हैं, कि जो जिसकी […]

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मूल कर्त्तव्य और वेद का राष्ट्र संगठन

वेद मानवजाति के लिए सृष्टि के आदि में ईश्वरप्रदत्त ‘संविधान’ हैं। अतः ऐसा नहीं हो सकता कि हमारा आज का मानव कृत संविधान तो नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों का निरूपण करे और वेद इस विषय पर चुप रहे। वेदों में मानव और मानव समाज के आचार विचार और लोक व्यवहार से सम्बन्धित ऋचाऐं अनेक हैं। […]

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नववर्ष के उपलक्ष्य में इतना आत्मचिन्तन अवश्य करें :-

काश! आदमी का आविर्भाव और अवसान सूर्य जैसा हो – लाली के संग रवी उगै, करे स्वर्णिम प्रभात। अस्तांचल को जब चले, तब भी लाली साथ ॥2806॥ तत्वार्थ :- भाव यह है कि कितना अच्छा हो मनुष्य का जीवन भी सूर्य जैसा हो समस्त ब्रह्माण्ड का केन्द्र बिन्दु ब्रह्म हैं ठीक इसी प्रकार सौरमण्डल का […]

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आज का चिंतन हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

ओ३म् “पिछले पांच हजार वर्षों में दयानन्द के समान ऋषि नहीं हुआ”

========= महाभारत का युद्ध पांच हजार वर्ष से कुछ वर्ष पहले हुआ था। महाभारत युद्ध के बाद भारत ज्ञान-विज्ञान सहित देश की अखण्डता व स्थिरता की दृष्टि से पतन को प्राप्त होता रहा। महाभारत काल के कुछ ही समय बाद ऋषि जैमिनी पर आकर देश से ऋषि परम्परा समाप्त हो गई थी। ऋषि परम्परा का […]

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ओ३म् “ईश्वर और वेद का परस्पर सम्बन्ध और वेदज्ञान की महत्ता”

======== ईश्वर और वेद शब्दों का प्रयोग तो आर्यसमाज के विद्वानों व सदस्यों को करते व देखते हैं परन्तु इतर सभी मनुष्यों को चार वेदों और ईश्वर का परस्पर क्या संबंध है, इसका यथोचित ज्ञान नहीं है। इस ज्ञान के न होने से हम वेदों की महत्ता को यथार्थरूप में नहीं जान पाते। वेद अन्य […]

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ओ३म् “ईश्वर और वेद का परस्पर सम्बन्ध और वेदज्ञान की महत्ता”

======== ईश्वर और वेद शब्दों का प्रयोग तो आर्यसमाज के विद्वानों व सदस्यों को करते व देखते हैं परन्तु इतर सभी मनुष्यों को चार वेदों और ईश्वर का परस्पर क्या संबंध है, इसका यथोचित ज्ञान नहीं है। इस ज्ञान के न होने से हम वेदों की महत्ता को यथार्थरूप में नहीं जान पाते। वेद अन्य […]

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व्यक्ति गुण और अवगुण दोनों का सम्मिश्रण होता है

“प्रत्येक व्यक्ति में कुछ गुण भी होते हैं और कुछ दोष भी। गुण सदा सुखदायक होते हैं, और दोष सदा दुखदायक होते हैं।” “गुण बड़े हों, या छोटे, वे तो सदा सुख ही देते हैं। परंतु दोष बड़े हों या छोटे, वे सदा दुख ही देते हैं।” “दोषों की संख्या के साथ साथ उनकी मात्रा […]

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ओ३म् “प्रसिद्ध भजनोपदेशक पं. ओम्प्रकाश वर्मा जी का सम्पूर्ण ऋग्वेद कण्ठस्थ किए हुए एक सनातनी विद्वान विषयक महत्वपूर्ण संस्मरण”

=============== पं. ओम्प्रकाश वर्मा जी आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध भजनोपदेशक थे। विगत वर्ष उनका देहावसान हुआ है। उनकी धर्मपत्नी एवं परिवार के सदस्य हरयाणा के यमुनानगर में निवास करते हैं। वर्मा जी ने यमुनानगर के प्रसिद्ध विद्वान पं. इन्द्रजित् देव जी को अपने जीवन के कुछ महत्वपूर्ण संस्मरण सुनाये व लिखाये थे। उन संस्मरणों को लेखबद्ध […]

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ओ३म् “वैदिक धर्म के कुछ मुख्य सिद्धान्त जिनका प्रचार आर्यसमाज करता है”

========== वैदिक धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म व मत है। वैदिक धर्म का प्रचलन वेदों से हुआ है। वेद सृष्टि के आरम्भ में अन्य सांसारिक पदार्थों की ही तरह ईश्वर से उत्पन्न हुए। परमात्मा सत्य, चित्त व आनन्द स्वरूप है। ईश्वर के इस स्वरूप को सच्चिदानन्दस्वरूप कहा जाता है। चेतन पदार्थ ज्ञान व क्रिया […]

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गुरुमुखी व्यक्ति और मनमुख व्यक्ति का अन्तर क्या है?

गुरुमुखी व्यक्ति – इन्हें आन्तरिक अध्यात्मिक ज्ञान होता है ये संसार में सगुण रूप से गुरु को परमात्मा के रुप में मानकर अहंकार मुक्त होते हैं तथा खुद सेवक बनकर संसार के सही कल्याण के लिए ही जीते हैं और खुद को सेवक मानकर जीवन जीते हैं। जैसे – सन्त कबीर साहेब जी , सन्त […]

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