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बिखरे मोती

मत रम मन संसार में, सपनेवत् संसार

बिखरे मोती-भाग 175 गतांक से आगे…. सहज नहीं कूटस्थ व्रत, दुर्लभ पूरा होय। शक्ति शान्ति सुकून तो, फिर पीछे-पीछे होय ।। 1101 ।। व्याख्या :- भगवान कृष्ण ने गीता के छठे अध्याय के आठवें श्लोक में इसकी व्याख्या करते हुए कहा है-‘कूटवत तिष्ठतीति कूटस्थ:‘ अर्थात जो कूट (अहरन) की तरह स्थित रहता है, उसको कूटस्थ […]

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अन्य कविता

सपने

सपनों की दुनिया भी अजीब, सपने, सपने ही होते हैं।वास्तविकता से अलग हें, दुनिया की सैर कराते हैं।। जहां बंधन से, निर्बाध बने, हम स्वच्छंद विचरण करते हैं।जो बातें यहां असंभव हैं, सपने में सच हो जाती हैं।। कुछ सपने सच भी होते हैं, ऐसा विश्लेषक कहते हैं।नींद खुली, सब छूट गया, ये सपने रूला […]

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