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बिखरे मोती

मत रम मन संसार में, सपनेवत् संसार

बिखरे मोती-भाग 175 गतांक से आगे…. सहज नहीं कूटस्थ व्रत, दुर्लभ पूरा होय। शक्ति शान्ति सुकून तो, फिर पीछे-पीछे होय ।। 1101 ।। व्याख्या :- भगवान कृष्ण ने गीता के छठे अध्याय के आठवें श्लोक में इसकी व्याख्या करते हुए कहा है-‘कूटवत तिष्ठतीति कूटस्थ:‘ अर्थात जो कूट (अहरन) की तरह स्थित रहता है, उसको कूटस्थ […]

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