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बिखरे मोती

बिखरे मोती-भाग 42

दिल में कोई बस गया, तो दूर रहत भी पासगतांक से आगे….संक्षेप में कहा जाए तो आदिकाल से आज तक संसार का जितना भी बहुमुखी विकास हुआ है यह उन अन्वेषकों, विचारकों, वैज्ञानिकों, समाज सुधारकों और तत्ववेत्ताओं की ही महान देन है जिनके हृदय और मस्तिष्क में मानवता के लिए, प्राणीमात्र के कल्याण के लिए […]

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बिखरे मोती

बिखरे मोती-भाग 41

सौंदर्य अंदर बसै, मूरख ढूंढ़े जग मांहिगतांक से आगे….अन्न जल और मीठे वचन,रत्न धरा पर तीन।अन्य पदारथ विश्व में,लगते हैं कान्तिहीन ।। 552 ।। मित्र भार्या सम्पदा,मिल जायें कई बार।लेकिन मुश्किल से मिले,मानव तन एक बार ।। 553 ।। आंखों में जिसके शर्म हो,वाणी में होय मिठास।मन में होय उदारता,जीत लेय विश्वास ।। 554 ।।उदारता […]

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बिखरे मोती-भाग 40

वर्तमान अनुकूल कर, अपने हित में मोड़ गतांक से आगे….सहस्र गायों के बीच में,बछड़ा मां ढिंग जाए।जैसा जिसका कर्म है,उसी के पीछे आय ।। 540 ।। आयु एक मुहूर्त की,पुण्य तै करे निहाल।पापी की क्या जिंदगी,बेशक जीये सौ साल ।। 541 ।। मुहूर्त अर्थात-48 मिनट का जीवन मिले। बीते पर मत शोक कर,भविष्य की चिंता […]

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बिखरे मोती-भाग 39

पिता ज्ञान मां सत्य है, बहन दया, भाई धर्मगतांक से आगे….तीरथ का फल देर में,साधु का मिलै तुरंत।मन निर्मल हो जात है,सुधरे आदि अंत ।। 532 ।। पिता ज्ञान मां सत्य है,बहन दया, भाई धर्म।शांति पत्नी पुत्र क्षमा,जान गया वह मर्म ।। 533 ।। जिस प्रकार कोई भी व्यक्ति अपने बंधु बांधव अथवा परिवार से […]

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बिखरे मोती-भाग 38

जन्म से पहले अन्न को, भेज देय भगवानगतांक से आगे….नीम को सींचे ईख से,तो भी मिठास न पाय।कितना ही समझा दुष्ट को,सज्जनता नही आय ।। 522 ।।भाव यह है कि किसी के मूल स्वभाव को बदलना अत्यंत कठिन है।ऊपर से कोमल रहे,अंदर से हो क्रूर।ऐसे बगुला भगत से,रहो दूर ही दूर ।। 523 ।। दुर्जन […]

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बिखरे मोती-भाग 37

अंत:करण में मल भरा, और वासना है प्रधानगतांक से आगे….उस व्यक्ति पर प्रभु की विशेष कृपा है। क्योंकि उपरोक्त ऐसे गुण हैं जो अभ्यास से नही अपितु मनुष्य के जन्म लेते ही उसके स्वभाव में आ जाते हैं। हथौड़ी पाहन तोड़ दे,बेशक होय महान।एक तेज के कारनै,व्यक्ति हो बलवान ।। 518।। भाव यह है कि […]

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बिखरे मोती

बिखरे मोती-भाग 36

रैन काट पक्षी उड़े, सूना रह जाए नीडभिखारी शत्रु लोभी का,मूरख का गुणगान।चोरों का शत्रु चंद्रमा,कुल्टा का पति जान ।। 508।। बुद्घिहीन को ज्ञान दे,वृथा ज्ञान को खोय।बांस बसे चंदन निकट,खुशबू न वैसी होय।। 509।। बुद्घिहीन को व्यर्थ है,चारों वेदों का सार।जैसे अंधे को आइना,लगता है बेकार ।। 510।। गुदा न कभी मुख हो सके,चाहे […]

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बिखरे मोती

बिखरे मोती-भाग 35

मूरख अदना आदमी, दबे पै ही रस देयश्लाघा हो विद्वान की,आदर करते धनवान।सभा बीच वागीश की,विरल होय पहचान ।। 496।। मुक्ति की इच्छा यदि,त्याग दे सारे ऐब।निर्मल रख इस चित्त को,मतकर कभी फरेब ।। 497।। मीत के राज प्रकट करै,वह नीचों का नीच।दम घुटकै मर जाएगा,सांप ज्यों बांबी बीच ।। 498।। सोना बिन सुगंध के,गन्ना […]

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बिखरे मोती

बिखरे मोती-भाग 3४

धर्म व्यर्थ है दया बिन, यही शास्त्र का सारजिस प्रकार कुत्ता अपनों को अर्थात कुत्ते को देखकर द्वेष करता है, गुर्राता है, गैरों को देखकर दुम हिलाता है। ठीक इसी प्रकार की प्रवृत्ति दुष्ट की होती है। इस प्रकार के व्यक्ति ईश भजन से दूर किंतु मादक पदार्थों के नशे में चूर रहते हैं, और […]

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बिखरे मोती

बिखरे मोती-भाग 33

सेना राजा की शक्ति है, ब्राह्मण वेद-विचारबाल वृद्घ गुरू कन्या को,नही लगाओ पैर।कुपित होय परमात्मा,मांगे मिलै न खैर।। 480।। दूसरों को खुश देखकै,सज्जन मोद मनाय।देख दूसरों को दुखी,दुर्जन खुश हो जाय ।। 481।। समय परिस्थिति देखकै,शत्रु से कर व्यवहार।कभी विनय कभी वीरता,वक्त का कर इंतजार ।। 482।। स्त्रियों का बल रूप है,यौवन मधुर व्यवहार।सेना राजा […]

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