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धर्म-अध्यात्म

वेदों और वेद अनुकूल शिक्षाओं से ही जीवन में उन्नति संभव

ओ३म् =========== मनुष्य जो भी कर्म करता है उससे उसे लाभ व हानि दोनों में से एक अवश्य होता है। लाभ उन कर्मों से होता है जो उसके वास्तविक कर्तव्य होते हैं। मनुष्य का प्रथम कर्तव्य अपने स्वास्थ्य की रक्षा करना है। इसके लिये समय पर सोना व जागना, प्रातः ब्राह्म मुहुर्त में 4.00 बजे […]

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धर्म-अध्यात्म

वैदिक सिद्धांतों का पालन ही आदर्श मानव जीवन का पर्याय है

संसार में अनेक मत-मतान्तर प्रचलित हैं। जो मनुष्य जिस मत व सम्प्रदाय का अनुयायी होता है वह अपने मत, सम्प्रदाय व उसके आद्य आचार्य के जीवन की प्रेरणा से अपने जीवन को बनाता व उनके अनुसार व्यवहार करता है। महर्षि दयानन्द सभी मत व सम्प्रदायों के आचार्यों से सर्वथा भिन्न थे और उनकी शिक्षायें भी […]

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आज का चिंतन

स्वाध्याय एवं ईश्वर उपासना जीवन में आवश्यक एवं लाभकारी हैं

मनुष्य आत्मा एवं शरीर से संयुक्त होकर बना हुआ एक प्राणी हैं। आत्मा अति सूक्ष्म तत्व व सत्ता है। इसे शरीर से संयुक्त करना सर्वातिसूक्ष्म, सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अनादि, नित्य व अविनाशी ईश्वर का काम है। आत्मा स्वयं माता के गर्भ में जाकर जन्म नहीं ले सकती। आत्मा को माता के शरीर में भेजना, […]

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धर्म-अध्यात्म

धर्म सत्य गुणों के धारण और वेद अनुकूल आचरण को कहते हैं

मनुष्य की प्रमुख आवश्यकता सद्ज्ञान है जिससे युक्त होकर वह अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत कर सके और संसार व जीवन विषयक सभी शंकाओं व प्रश्नों के सत्य उत्तर वा समाधान प्राप्त कर सके। यह कार्य कैसे सम्भव हो? यदि सृष्टि के आरम्भ की स्थिति पर विचार करें तो परिस्थितियों के आधार पर यह स्वीकार करना […]

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भारतीय संस्कृति

वेद पथ पर चलकर ही हम दुख रहित मोक्ष के गंतव्य पर पहुंच सकते हैं

संसार में अनेक मार्ग हैं जिन पर चलकर मनुष्य इच्छित अनेक लक्ष्यों वा गन्तव्यों पर पहुंचते हैं। इसी प्रकार अनेक मत-मतान्तर हैं जिनका अनुसरण करने पर कर्मानुसार अच्छे व बुरे लक्ष्य प्राप्त हो सकते हैं। धर्म में ईश्वर का महत्व होता है। ईश्वर एक धार्मिक एवं पवित्र सत्ता है। वह सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, […]

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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

महर्षि दयानंद ने ईश्वर और मातृभूमि के किन ऋणों को चुकाया ?

महर्षि दयानन्द सृष्टि की आदि में प्रवृत्त वैदिक ऋषि परम्परा वाले एक ऋषि थे। उन्होंने विलुप्त वेदों का अत्यन्त पुरुषार्थपूर्वक ज्ञान अर्जित किया था। ईश्वर की उन पर कृपा हुई थी जिससे वह अपने अपूर्व प्रयत्नों से वेदज्ञान को प्राप्त करने में सफल हुए थे। वेदज्ञान प्राप्त करने पर उन्हें वेद से जुड़े अनेक रहस्यों […]

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धर्म-अध्यात्म

सत्यार्थ प्रकाश अविद्या दूर करने और विद्या वृद्धि करने वाला ग्रंथ है

सत्यार्थप्रकाश ऋषि दयानन्द द्वारा सन् 1874 में लिखा गया ग्रन्थ है। ऋषि दयानन्द ने सन् 1883 में इसको संशोधित किया जिसका प्रकाशन उनकी मृत्यु के पश्चात सन् 1884 में हुआ था। यही ग्रन्थ आजकल ऋषि की प्रतिनिधि संस्था आर्यसमाज द्वारा प्रचारित होता है। सत्यार्थप्रकाश का उद्देश्य इसके नाम में ही निहित है। असत्य को दूर […]

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शिक्षा/रोजगार

स्कूली शिक्षा विद्यार्थियों में नैतिक गुणों का विकास करने में अक्षम है

ओ३म् ============= किसी भी देश की उन्नति, सुरक्षा व सामर्थ्य उसकी युवा पीढ़ी के नैतिक व चारित्रिक गुणों पर निर्भर करती है। बच्चों व युवाओं में यह गुण अपने प्रारब्ध, अपने माता-पिता तथा परिवेश सहित अपने आचार्यों व विद्यालयों की शिक्षा से आते हैं। देश की आजादी के बाद धर्मनिरेक्षता और प्रधानमंत्री का एक विचारधारा […]

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समाज

संसार का ईश्वर के एक सत्य स्वरूप पर सहमत न होना कल्याणकारी नहीं

ओ३म्=========== हमारा यह संसार एक अपौरुषेय सत्ता द्वारा बनाया गया है। वही सत्ता इस संसार को बनाती है व चलाती भी है। संसार को बनाकर उसने ही अपनी योजना के अनुसार अनादि, अविनाशी, नित्य व जन्म-मरण धर्मा जीवात्माओं को इस संसार में भिन्न-भिन्न प्राणी योनियों में जन्म दिया है। जीवात्माओं का जन्म उनके पूर्वजन्मों के […]

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धर्म-अध्यात्म

आत्मा की उन्नति के बिना सामाजिक और देशोन्नती संभव नहीं

मनुष्य मननशील प्राणी को कहते हैं। मनन का अर्थ सत्यासत्य का विचार करना होता है। सत्यासत्य के विचार करने की सामथ्र्य मनुष्य को विद्या व ज्ञान की प्राप्ति से होती है। विद्या व ज्ञान प्राप्ति के लिये बाल्यावस्था में किसी आचार्य से किसी पाठशाला, गुरुकुल या विद्यालय में अध्ययन करना होता है। विद्या प्राप्ति के […]

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