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भारतीय संस्कृति

उठो , जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक संघर्ष करते रहो

आज समय नहीं सोने का है , आज समय नहीं खोने का है, युग के प्रहरी जाग कि मंजिल तेरी पास है। शूल सुसज्जित डोली पर विजय की चढ़ी बारात है। उपनिषद कहते हैं- चरैवेति, चरैवेति अर्थात् चलते रहो। चलते रहने का नाम जीवन है। हर स्थिति और परिस्थिति में आगे ही आगे बढ़ते चलने […]

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भारतीय संस्कृति

दान , सच्चरित्रता और स्वाभिमान

किसी वस्तु का बिना मोल लिए किसी को दिया जाना दान कहा जाता है । दान देने में स्नेह , प्रेम , आत्मीयता , लगाव , मानवता आदि ऐसे दिव्य गुण समाविष्ट होते हैं जो कभी इच्छा से तो कभी कभी अनिच्छा से भी किसी को कुछ देने के लिए हमें प्रेरित करते हैं । […]

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भारतीय संस्कृति

मनुष्य जीवन का वास्तविक ध्येय और अज्ञान रूपी अंधकार

भौतिक भवन अथवा काया की हवेली के विनष्ट,ध्वस्त अथवा ढहने के साथ ही मनुष्य की सारी उपलब्धियां सारी योजनाएं , सारी इच्छाएं एवं वास्तविक ध्येय समाप्त हो जाते हैं। जिन योजनाओं को दृष्टिगत रखकर मनुष्य अपनी कामना, महत्वाकांक्षाओं व अपेक्षाओं की नींव रखता है ,मोह जाल को बुनता है ,अपने वास्तविक ध्येय से विमुख होकर […]

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भारतीय संस्कृति

धैर्य व सहनशीलता की साधना और प्राचीन भारत की शिक्षा प्रणाली

शुद्धि से ही सिद्धि संभव है। शुद्धिसिद्धि की सीढ़ी है। शुद्धि सिद्धि का साधन है। शुद्धि के बिना सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती। शुद्धि सिद्धि वालों को प्राप्त होती है। शुद्धि से सिद्धि भई सिद्धि जीवन ध्येय । जगत में ऐसे लोग ही पा जाते हैं ज्ञेय ।। इस प्रकार शुद्धि की जीवन में बहुत […]

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भारतीय संस्कृति

मेरा मन शिवसंकल्प वाला हो

एक मनुष्य के जीवन में शुभ संकल्पों का होना अति आवश्यक है ।क्योंकि शुभ संकल्प ही मनुष्य के कल्याण का हेतु है। शुभ का तात्पर्य अच्छे और संकल्प का तात्पर्य विचार से होता है , अर्थात अच्छे विचार होना मनुष्य के जीवन में आवश्यक हैं । यजुर्वेद के 34 वें अध्याय में निम्न प्रकार मंत्र […]

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भारतीय संस्कृति

विद्या और मानव समाज

परमेश्वर ने मनुष्य को जीवन को श्रेष्ठ कर्म करते हुए मुक्ति को प्राप्त करने का सुअवसर देने के लिये साधनरूप में देह को प्राप्त कराया है। मनुष्य विवेक प्राप्त कर मैं कौन हूं ? मेरा लक्ष्य क्या है ? आदि प्रश्नों के समाधान प्राप्त करता है। परमात्मा ने मनुष्य को सद्कर्मों से स्वयं आनन्द भोगने […]

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भारतीय संस्कृति

श्रेय , प्रेय , धर्म और संस्कृति

भावों के पंच गुण सर्वमान्य हैं ।पहला सरलता ,दूसरा समरसता, तीसरा मधुरता, चौथा कोमलता, पांचवां विशुद्धता। जो साधक होते हैं वह बिना ध्वनि के संगीत सुनना पसंद करते हैं ।जिसका तात्पर्य होता है कि वे ऐसा संगीत सुनना पसंद करते हैं जिसमें कोई स्वर न हो अर्थात वे अनहद का संगीत सुनते हैं। ऐसे भक्तों […]

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भारतीय संस्कृति

अभ्यास और वैराग्य से होती मन की जीत

विरक्ति एवम् त्याग -क्या है ? विरक्ति एवं त्याग दोनों का संबंध मनुष्य से होता है , लेकिन इनमें भी त्याग का संबंध स्थूल जगत और स्थूल शरीर से होता है । जबकि विरक्ति का अर्थ काम, क्रोध ,लोभ, मोह ,राग, द्वेष आदि से दूर हो जाना है। व्यक्ति में मन , वचन और कर्म […]

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भारतीय संस्कृति

वेद, उपनिषद और गीता

भारतीय संस्कृति का ही नहीं बल्कि विश्व संस्कृति के मूल स्रोत भी वेद है । वेदों के दिए संस्कारों और उन्हीं की व्यवस्था के आधार पर सारे संसार की व्यवस्था चलती रही है । आज भी वैदिक ज्ञान ही संपूर्ण मानवता का मार्गदर्शन कर रहा है और यदि संसार में कहीं मानवता जीवित है तो […]

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भारतीय संस्कृति

सह अस्तित्व , सफलता और मानव समाज

“मैं हूं” – ऐसा भाव ही मेरा अस्तित्व है । मेरी निजता पर किसी प्रकार का आक्रमण न हो , मेरी निजता हर स्थिति में सुरक्षित रहे , सम्मानित रहे , यही मेरे अस्तित्व की रक्षा है । मैं जिस उद्देश्य को लेकर इस संसार में आया हूं मैं उस उद्देश्य को प्राप्त करने में […]

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