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इतिहास के पन्नों से

*महाभारत की प्रमुख पात्र द्रौपदी की वास्तविक कथा* :

डॉ डी के गर्ग
इस विषय से सम्बंधित पांच भाग है , कृपया जरूर पड़े ,विचार करे और कथाकारों की गप्प कथा से दूर रहे
भाग-१

द्रोपदी महाभारत की एक आदर्श पात्र है। लेकिन द्रोपदी जैसी विदुषी नारी के साथ हमने बहुत अन्याय किया है। सुनी सुनाई बातों के आधार पर हमने उस पर कई ऐसे लांछन लगाये हैं जिससे वह अत्यंत पथभ्रष्ट और धर्म भ्रष्ट नारी सिद्घ होती है। एक ओर धर्मराज युधिष्ठर जैसा परमज्ञानी उसका पति है, जिसके गुणगान करने में हमने कमी नही छोड़ी। लेकिन द्रोपदी पर अतार्किक आरोप लगाने में भी हम पीछे नही रहे।
लेकिन आर्य नागरिको के अथक प्रयास का ही परिणाम है कि मूल महाभारत के अध्ययन बाद सबके सामने द्रोपदी के पाँच पति के दुष्प्रचार का सप्रमाण खण्डन किया जा रहा है।अब ध्यानपूर्वक पढ़ें-

१ द्रौपदी का एक ही पति था- युधिष्ठिर
२ द्रौपदी ने कभी दुर्योधन को अंधे के बीटा अँधा नहीं कहा
३ द्रौपदी का चरण हरण का वर्णन

क्या द्रौपदी के पांच पति थे ? उत्तर है — द्रौपदी का एक ही पति था- युधिष्ठिर
जर्मन के संस्कृत जानकार मैक्स मूलर को जब विलियम हंटर की कमेटी के कहने पर वैदिक धर्म के आर्य ग्रंथों को बिगाड़ने का जिम्मा सौंपा गया तो उसमे मनु स्मृति, रामायण, वेद के साथ साथ महाभारत के चरित्रों को बिगाड़ कर दिखाने का भी काम किया गया।
द्रोपदी के पवित्र चरित्र को बिगाड़ने वाले विधर्मी, पापी वो तथाकथित ब्राह्मण, पुजारी, पुरोहित भी हैं जिन्होंने महाभारत ग्रंथ का अध्ययन किये बिना अंग्रेजो के हर दुष्प्रचार और षड्यंत्रकारी चाल, धोखे को स्वीकार कर लिया और धर्म को चोट पहुंचाई।
द्रोपदी पर एक आरोप है कि उसके पांच पति थे। यह आरोप महाभारत की साक्षी के आधार पर नही बल्कि सुनी सुनाई कहानियों के आधार पर लगा दिया है। बड़ा दुःख होता है जब कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति भी इस आरोप को अपने लेख में या भाषण में दोहराता है।
प्रक्षिप्त व बाद में बनी असत्य कथा: पांचाल-नरेश द्रुपद ने अपनी पुत्री द्रौपदी के विवाह के लिए स्वयंवर रचा. उस स्वयंवर में ब्राह्मण-वेशधारी पांच पांडव भी सम्मिलित हुए अनेक छोटे-बड़े देशों के राजा, ब्राह्मण, देवता, आदि सभी अपने-अपने स्थान पर सभासीन थे। एक ओर धनुष-बाण पड़ा था और दूसरी ओर आकाश में कृत्रिम यंत्र में लिपटा हुआ। उसका संभाव्य लक्ष्य इस लक्ष्य को जो कुलीन एवं वीर व्यक्ति विद्ध कर दे, वही द्रौपदी का अभिमत पति होगा। परंतु इस लक्ष्य को कोई भी राजा विद्ध न कर सका. कर्ण उठा, तो द्रौपदी ने ‘‘नाहं वरयामि सूतं’’ कहकर उसकी बेज्जती तक कर डाली थी। तब मृगचर्मधारी अर्जुन अपने आसन से उठे और तेजस्वी अर्जुन ने लक्ष्य का वेध कर दिया और द्रौपदी ने उसके पराक्रम के प्रसन्न होकर उसके गले में जयमाला डाल दी।
द्रौपदी को लेकर जब अर्जुन कुंती के पास पहुंचे और कहने लगे कि मां, हम भिक्षा ले आये हैं, तो कुंती ने कहा- ‘पांचों भाई बांट खाओं.’ पर जब बाहर निकलकर उसने द्रौपदी को देखा, तो वह अपने पर पश्चत्ताप करने लगी. बस यहीं से द्रौपदी के पांच पति वाली कथा का स्रोत प्रारम्भ होता है। यह प्रक्षिप्त व बाद में बनी कही-कहाई कहानी तो है परन्तु सत्य नहीं है।
इतिहासकारो और कथाकारों ने यह द्रौपदी के लिए उचित नहीं था. द्रौपदी जैसी विदुषी नारी के साथ बहुत अन्याय किया है।प्रक्षिप्त व सुनी सुनाई बातों के आधार पर हमने उस पर कई ऐसे लांछन लगाये हैं, जिससे वह अत्यंत पथभ्रष्ट और धर्म भ्रष्ट नारी सिद्घ होती है। एक ओर धर्मराज युधिष्ठिर जैसा परमज्ञानी उसका पति है, जिसके गुणगान करने में हमने कमी नही छोड़ी. दुसरी ओर द्रौपदी पर अतार्किक आरोप लगाने में भी हम पीछे नही रहै। यह एक गम्भीर आरोप है कि उसके पांच पति थे।
सच कथा क्या है ? –द्रौपदी वीर्यशुल्का थी ,मतलब जो भी स्वयंवर की शर्त पूरी करेगा वो द्रौपदी को जीत लेगा। इसलिए कर्ण के साथ भी उसकी शादी हो जाती अगर कर्ण शर्त पूरी कर देता पर वो हार गया था। जिस समय द्रौपदी का स्वयंवर हो रहा था उस समय पांडव अपना वनवास काट रहे थे। ये लोग एक कुम्हार के घर में रह रहे थे और भिक्षाटन के माध्यम से अपना जीवन यापन करते थे। तभी द्रौपदी के स्वयंवर की सूचना उन्हें मिली, स्वयंवर की शर्त को अर्जुन ने पूर्ण किया. शर्त पूरी होने पर द्रौपदी को उसके पिता द्रुपद ने पांडवों को भारी मन से सौंप दिया. राजा द्रुपद की इच्छा थी कि उनकी पुत्री का विवाह किसी पांडुपुत्र के साथ हो, क्योंकि उनकी राजा पांडु से गहरी मित्रता रही थी।राजा द्रुपद पंडितों के भेष में छुपे हुए पांडवों को पहचान नही पाए. इसलिए उन्हें यह चिंता सता रही थी कि उनकी उनकी बेटी का विवाह उनकी इच्छा के अनुरूप नही हो पाया।
धृष्टद्युम्न (पांचालराज द्रुपद का तेजस्वी पुत्र )ने उन सबका वीरोचित संवाद सुना थाः- राजा द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न पांडवों के पीछे-पीछे उनका सही ठिकाना जानने और उन्हें सही प्रकार से समझने के लिए भेष बदलकर आ रहे थे। उन्होंने पांडवों की चर्चा सुनी उनका शिष्टाचार देखा. पांडवों के द्वारा दिव्यास्त्रों, रथों, हाथियों, तलवारों, गदाओं और फरसों के विषय में उनका वीरोचित संवाद सुना. जिससे उनका संशय दूर हो गया और वह समझ गये कि ये पांचों लोग पांडव ही हैं। इसलिए वह खुशी-खुशी अपने पिता के पास दौड़ लिये. उन्होंने अपने पिता से जाकर कहा, ‘‘पिताश्री! जिस प्रकार वे युद्घ का वर्णन करते थे उससे यह मान लेने में तनिक भी संदेह रह जाता कि वह लोग क्षत्रिय शिरोमणि हैं। हमने सुना है कि वे कुंती कुमार लाक्षागृह की अग्नि में जलने से बच गये थे। अतः हमारे मन में जो पांडवों से संबंध करने की अभिलाषा थी, निश्चय ही वह सफल हुई जान पड़ती है’’।
राजकुमार से इस सूचना को पाकर राजा को बहुत प्रसन्नता हुई। तब उन्होंने अपने पुरोहित को पांडवों के पास भेजा कि उनसे यह जानकारी ली जाए कि क्या वह महात्मा पांडु के पुत्र हैं?
तब पुरोहित ने जाकर पांडवों से कहाः—‘वरदान पाने के योग्य वीर पुरूषो! ‘‘ वर देने में समर्थ पांचाल देश के राजा दु्रपद आप लोगों का परिचय जाननाा चाहते हैं। इस वीर पुरूष को लक्ष्यभेद करते देखकर उनके हर्ष की सीमा न रही। राजा द्रुपद की इच्छा थी कि मैं अपनी इस पुत्री का विवाह पांडु कुमार से करूं। उनका कहना है कि यदि मेरा ये मनोरथ पूरा हो जाए तो मैं समझूंगा कि यह मेरे शुभकर्मों का फल प्राप्त हुआ है।
तब पुरोहित से धर्मराज युधिष्ठर ने कहा-पांचाल राज द्रुपद ने यह कन्या अपनी इच्छा से नही दी है, उन्होंने लक्ष्यभेद की शर्त रखकर अपनी पुत्री देने का निश्चय किया था। उस वीर पुरूष ने उसी शर्त को पूर्ण करके यह कन्या प्राप्त की है, परंतु हे ब्राहमण! राजा दु्रपद की जो इच्छा थी वह भी पूर्ण होगी, (युधिष्ठर कह रहे हैं कि द्रोपदी का विवाह उसके पिता की इच्छानुसार पांडु पुत्र से ही होगा) इस राज कन्या को मैं (यानि स्वयं अपने लिए, अर्जुन के लिए नहीं ) सर्वथा ग्रहण करने योग्य एवं उत्तम मानता हूं३पांचाल राज को अपनी पुत्री के लिए पश्चात्ताप करना उचित नही है।तभी पांचाल राज के पास से एक व्यक्ति आता है, और कहता है-राजभवन में आप लोगों के लिए भोजन तैयार है। तब उन पांडवों को वीरोचित और राजोचित सम्मान देते हुए राजा द्रुपद के राज भवन में ले जाया जाता है।
महाभारत में आता है कि सिंह के समान पराक्रम सूचक चाल ढाल वाले पांडवों को राजभवन में पधारे हुए देखकर राजा द्रुपद, उनके सभी मंत्री, पुत्र, इष्टमित्र आदि सबके सब अति प्रसन्न हुए। पांडव सब भोग विलास की सामग्रियों को छोड़कर पहले वहां गये जहां युद्घ की सामग्रियां रखी गयीं थीं। जिसे देखकर राजा द्रुपद और भी अधिक प्रसन्न हुए, अब उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि ये राजकुमार पांडु पुत्र ही हैं।
तब युधिष्ठर ने पांचाल राज से कहा –राजन! आप प्रसन्न हों क्योंकि आपके मन में जो कामना थी वह पूर्ण हो गयी है। हम क्षत्रिय हैं और महात्मा पांडु के पुत्र हैं। मुझे कुंती का ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठर समझिए तथा ये दोनों भीम और अर्जुन हैं। उधर वे दोनों नकुल और सहदेव हैं।
महाभारतकार का कहना है कि युधिष्ठर के मुंह से ऐसा कथन सुनकर महाराज दु्रपद की आंखों में हर्ष के आंसू छलक पड़े। शत्रु संतापक दु्रपद ने बड़े यत्न से अपने हर्ष के आवेग को रोका, फिर युधिष्ठर को उनके कथन के अनुरूप ही उत्तर दिया। सारी कुशलक्षेम और वारणाव्रत नगर की लाक्षागृह की घटना आदि पर विस्तार से चर्चा की। तब उन्होंने उन्हें अपने भाईयों सहित अपने राजभवन में ही ठहराने का प्रबंध किया। तब पांडव वही रहने लगे। उसके बाद महाराज दु्रपद ने अगले दिन अपने पुत्रों के साथ जाकर युधिष्ठर से कहा-
‘कुरूकुल को आनंदित करने वाले ये महाबाहु अर्जुन आज के पुण्यमय दिवस में मेरी पुत्री का विधि पूर्वक पानी ग्रहण करें तथा अपने कुलोचित मंगलाचार का पालन करना आरंभ कर दें।
तब धर्मात्मा राजा युधिष्ठर ने उनसे कहा-’राजन ! जयेष्ठ पुत्र होने के नाते द्रौपदी के साथ विवाह मेरा होना चाहिए ।
द्रुपद बोले–’हे वीर! तब आप ही विधि पूर्वक मेरी पुत्री का पाणिग्रहण करें। अथवा आप अपने भाईयों में से जिसके साथ चाहें उसी के साथ मेरी पुत्री का विवाह करने की आज्ञा दें।
युधिष्ठिर व कृष्णा विवाह संपन्नः– द्रुपद के ऐसा कहने पर पुरोहित धौम्य ने वेदी पर प्रज्वलित अग्नि की स्थापना करके उसमें मंत्रों की आहुति दी और युधिष्ठिर व कृष्णा (द्रौपदी) का विवाह संस्कार संपन्न कराया. इस मांगलिक कार्यक्रम के संपन्न होने पर द्रौपदी ने सर्वप्रथम अपनी सास कुंती से आशीर्वाद लिया, तब माता कुंती ने कहा, “ पुत्री! जैसे इंद्राणी इंद्र में, स्वाहा अग्नि में, भक्ति भाव एवं प्रेम रखती थीं उसी प्रकार तुम भी अपने पति में अनुरक्त रहो.’’ इससे सिद्घ है कि द्रौपदी का विवाह अर्जुन से नहीं बल्कि युधिष्ठिर से हुआ. इस सारी घटना का उल्लेख आदि पर्व में दिया गया है। उस साक्षी पर विश्वास करते हुए हमें इस दुष्प्रचार से बचना चाहिए कि द्रौपदी के पांच पति थे।

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