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आज का चिंतन

परमात्मा किसको संरक्षित करता है? प्रेम और भक्ति साधना का जीवन कब फलदायक होता है?

त्वमाविथसुश्रवसंतवोतिभिस्तव त्रामभिरिन्द्रतूर्वयाणाम्।
त्वमस्मैकुत्समतिथिग्वमायुंमहेराज्ञे यूनेअरन्धनायः।।
ऋग्वेदमन्त्र 1.53.10

(त्वम्) आप (आविथ) रक्षा करते हो (सुश्रवसम्) उत्तम स्रोता (दिव्यता का), सुने जाने के लिए उत्तम (अपने ज्ञान और अनुभूति के लिए) (तव ऊतिभिः) आपके द्वारा संरक्षण साधनों के साथ (तव त्रामभिः) आपके द्वारा पालन पोषण के साधनों के साथ (इन्द्र) परमात्मा (तूर्वयाणाम्) सभी बुराईयों और दुर्गुणों पर आक्रमण करते हुए (त्वम्) आप (अस्मै) यह (कुत्सम्) बुराईयों और दुर्गुणों का नाशक (अतिथिग्वम) अतिथियों का स्वागत करने वाले (आयुंम्) सक्रिय व्यक्ति (महे) महान् (राज्ञे) राजा, नियंत्रण करने वाला शासक (यूने) युवा अवस्था (अरन्धनायः) पूर्ण व्यक्तित्व, वज्र वाली ताकत।

व्याख्या:-
परमात्मा किसको संरक्षित करता है?

हे इन्द्र, भगवान! आप अपने सुरक्षा और पोषण के साधनों से उन लोगों की रक्षा करते हो जिनमें निम्न लक्षण होते हैं:-
1. सुश्रवसम् – उत्तम स्रोता (दिव्यता का), सुने जाने के लिए उत्तम (अपने ज्ञान और अनुभूति के लिए),
2. तूर्वयाणाम् – सभी बुराईयों और दुर्गुणों पर आक्रमण करते हुए।
आप महान् राजा को शक्तिशाली गर्जने वाली ताकत तथा पूर्ण व्यक्तित्व प्रदान करते हो, जो बुराईयों और दुरगुणों का नाशक होता है और जो अपनी युवा अवस्था से ही अतिथियों का स्वागत करने में सक्रिय होता है।

जीवन में सार्थकता: –
प्रेम और भक्ति साधना का जीवन कब फलदायक होता है?

यदि हम अधिकांश महान् लोगों जैसे आदि गुरु शंकराचार्य, महर्षि दयानन्द सरस्वती, महर्षि रमन, श्री अरविन्दो आदि के जीवन का उनकी आयु के आधार पर सूक्ष्म अध्ययन करें तो सबका अनुपात यह निकलता है कि इन सभी आत्माओं ने अपनी युवा अवस्था में एक पूर्ण व्यक्तित्व बनकर शक्तिशाली गर्जती हुई ताकत प्राप्त कर ली थी। इसका अभिप्राय यह है कि परमात्मा के प्रति प्रेम और भक्ति साधना तथा उसकी अनुभूति पूर्व जन्मों के समर्पित प्रयासों से ही सफल होती है। अन्ततः युवा अवस्था में ही अनुभूति चमकने लगती है।


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