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इतिहास के पन्नों से

विदुषी भारतीय ज्योतिषज्ञ महिला खना ’

ओ३म्

विदुषी भारतीय ज्योतिषज्ञ महिला खना

मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

  गणित में लीलावती एवं ज्योतिष में खना का नाम बहुत प्रसिद्ध है। विदुषी खना लंका द्वीप के एक ज्योतिषी की कन्या थी। सातवीं या आठवीं सदी की बात है। उज्जयिनी में महाराज विक्रम का राज्य था। उसके दरबार में बड़ेबड़े कलाकार, कवि, पण्डित, ज्योतिष आदि विद्यमान थे। वराह ज्योतिषियों का अगुआ था। उसकी गणना नवरत्नों में होती थी। इतिहासज्ञ वराहमिहिर के नाम से परिचित है। मिहिर वराह का लड़का था। समय आने पर लंका के उक्त ज्योतिषी की कन्या खना से उस मिहिर का विवाह हो गया, जो ज्योतिष में पारंगता थी। कभीकभी घर के भीतर बैठी खना ससुर वराह को बड़ी से बड़ी भूल का ज्ञान करा देती थी। नगर वाले नहीं जानते थे कि मिहिर की पत्नी इतनी विदुषी है। मिहर का पिता वराह खना की विद्वता पर मन ही मन कुढ़़ता था। उसे यह बात कभी अच्छी नहीं लगती थी कि वह समय पर मेरी गणना में भूल निकाला करे। खना को ऐसीऐसी गणनाएं आती थींजिनका वराह या मिहर को थोड़ी मात्रा में भी ज्ञान नहीं था। 

 

एक दिन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य जी ने तारागणों के सम्बन्ध में वराह से कठिन प्रश्न किया। उसने महाराज से उत्तर देने के लिए मौका मांगा। सन्ध्यासमय घर लौट कर वह प्रश्न हल करने लगा, परन्तु किसी प्रकार से मीमांसा हुई। रात में भोजन करते समय बात की बात में खना ने उसे समझा दिया। वराह यह सोचकर प्रसन्न हुआ कि पुत्रवधू की विद्या से राजसभा में मेरा मान बना रहेगा। 

 

दूसरे दिन राजा ने हल की विधि पूछी। वराह को कहना ही पड़ा कि प्रश्न का हल उसकी पुत्रवधु खना ने किया है। राजा तथा सभासदस्य चकित हो उठे। राजा ने कहा, ‘उसे आदर के साथ सभा में लाइये, हम उससे और प्रश्न करेंगे।’ वराह को यह बात अच्छी लगी। इसे अपना अपमान जानकर पितापुत्र दोनों ने खना की जीभ काट ली, जिसके कारण वह राज दरबार में उपस्थित हो सकी। 

 

खना की यशोकीर्ति आज भी अपने बनाये सिद्धान्तों के कारण जीवित है। 

 

हमने विदुषी ज्योतिषज्ञ महिला खना का यह विवरण ‘‘विदुषी नारियां” पुस्तक से लिया है। इस पुस्तक के लेखक हैं श्री वेद प्रकाशसुमन’, सम्पादकतपोभूमि मासिक’। इस पुस्तक का प्रकाशन 38 वर्ष पूर्व सन् 1986 में हुआ था। इस पुस्तक में 9 भारतीय प्रसिद्ध प्राचीन महिलाओं के जीवन चरितों पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक की कुल पृष्ठ संख्या 34 है। पुस्तक में गार्गी, मैत्रेयी, महारानी मदालसा, विदुषी सुलभा, लोपामुद्रा, गणितज्ञ लीलावती आदि के चरित्र दिए गए हैं। पुस्तक पठनीय है। पुस्तक के लेखक एवं प्रकाशकसत्य प्रकाशन, मथुरा का धन्यवाद है। हम आशा करते हैं कि पाठक विदुषी खाना के इस चरित्र वृतान्त को पढ़कर ज्ञान वृद्धि सहित सन्तोष का अनुभव करेंगे। ओ३म् शम्।

मनमोहन कुमार आर्य

पताः 196 चुक्खूवाला-2

देहरादून-248001

फोनः09412985121

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