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इतिहास के पन्नों से

3 जनवरी 1705 बलिदानी श्री मोती राम मेहरा जी

औरंगजेब के किलेदार वजीर खान ने परिवार सहित कोल्हू में पीसा था, इनकी वीरता और बलिदान का उल्लेख बंदा बैरागी पंडित श्री लक्षमण दास भारद्वाज ने किया था।

शहीद श्री मोती राम मेहरा के पूर्वज जगन्नाथ पुरी उड़ीसा के रहने वाले थे, समय के साथ पंजाब आये और सरहिन्द में नौकरी कर ली।

मोती राम जी के पिता बलिदानी श्री हरि राम जी कैदखाने की रसोई घर के इंचार्ज थे। दिसम्बर 1704 के अंतिम सप्ताह गुरु गोविन्द सिंह के चारों साहबजादे बलिदान हुये थे।

वह 27 दिसंबर 1704 की तिथि थी जब दो दिन की यातनाएं देकर गुरुजी को दो छोटे साहबजादों को जिन्दा दीवार में चुनवाया गया था और गुरुजी माता गुजरी को अमानवीय यातनायें दी गयीं, वे भी बलिदान हुईं ।

मोतीराम का अपराध यह था कि दिसम्बर की बेहद कपकपा देने वाली रात पर जब दो दिन के भूखे साहबजादों को ठंडे बुर्ज पर बैठा दिया था तब बाबा मोतीराम मेहरा ने साहबजादों और दादी को किसी तरह दूध पहुँचा दिया था।

साहबजादों और माता गुजरी के बलिदान के दो दिन बाद सरहिन्द के किलेदार वजीर खान को यह पता चला कि मोतीराम ने रात में साहबजादों को दूध पहुँचाया था। किलेदार के हुकुम से फौज पूरे परिवार को उठा लाई ।

माता, पत्नी छै वर्ष की बेटी और मोतीराम को जबकि पिता और दर्जनों लोगों को वहीं मार डाला गया।

वजीर खान ने पूछा तो बाबा मोतीराम ने अपना अपराध न केवल स्वीकार किया अपितु गर्व भी व्यक्त किया। इससे क्रुध होकर वजीर खान ने इस पूरे परिवार को जिन्दा कोल्हू में पीसने का हुक्म दिया । वह तीन जनवरी 1705 की तिथि थी जब इस परिवार को जिन्दा कोल्हू में पीसा गया ।

हालाँकि इस घटना की तिथियों को लेकर अलग-अलग विद्वानों की की राय में मामूली अंतर आता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि बाबा मोतीराम मेहरा और उनके परिवार को 30 दिसम्बर 1704 को पकड़ा गया और एक जनवरी 1705 को कोल्हू में पीसा गया।

जबकि कुछ का मानना है कि 30 दिसंबर को वजीर खान को खबर लगी, 31 दिसम्बर को परिवार सहित पकड़ कर लाया गया । 1 जनवरी को पेशी हुई और तीन जनवरी 1705 को कोल्हू में परिवार सहित पीसा गया
Dr. प्रवीणभाई तोगड़िया

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