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संपादकीय

मध्य प्रदेश में ‘कमल’ खिलेगा या फिर आएंगे कमलनाथ ?

इस समय मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ ,राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम जैसे पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रचार बड़े जोरों पर चल रहा है। आज हम मध्य प्रदेश को लेकर चर्चा करेंगे। मध्य प्रदेश में कुल 230 सीटों पर चुनाव हो रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव यहां पर 2018 में हुए थे । जब कांग्रेस 114 सीटें लेकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। उस समय भाजपा 56 सीटों का नुकसान उठाकर कांग्रेस से केवल 5 सीटें पीछे अर्थात 109 पर सिमट गई थी। भाजपा के शिवराज सिंह चौहान को अपनी यह पराजय पची नहीं और चुनाव के 15 माह बाद ही उन्होंने कमलनाथ की सरकार गिराकर मध्य प्रदेश से कमलनाथ को हटाकर फिर से ‘कमल’ खिला दिया। पिछले चुनाव में ऐसी कुल 44 सीटें थीं, जिन पर हार जीत का अंतर 5000 से कम मतों का रहा था। उस समय भाजपा ने इन 44 सीटों में से 24 सीटों को जीता था जबकि कांग्रेस ने इनमें से 20 सीटों को जीतने में सफलता प्राप्त की थी।
वर्तमान चुनाव में कमलनाथ पुरी तरह इन विधानसभा चुनावों को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस के राहुल गांधी का यहां पर कोई जादू नहीं है। वह केवल इस बात पर ही भरोसा किए बैठे हैं कि कमलनाथ के प्रति लोगों में सहानुभूति बनेगी और लोग उन्हें मतदान के दिन अपना मत देकर जाएंगे। राहुल गांधी के इस दिवास्वप्न को किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं माना जा सकता।
कांग्रेस नेतृत्व की मान्यता है कि सहानुभूति की इसी लहर के आधार पर यहां पर कांग्रेस की सरकार बनेगी। इसमें दो राय नहीं हैं कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ का प्रभाव है, पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने से उनकी शक्ति कम हुई है। भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर के साथ दो प्रतिशत मतदाताओं की ताकत है। जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया 4% मतों को प्रभावित करते हैं। जो इस समय भाजपा के शिवराज सिंह चौहान के साथ खड़े हैं। एक विशेष सर्वे से जानकारी मिली है कि 27 प्रतिशत लोग मध्य प्रदेश में ऐसे हैं जो शिवराज सिंह चौहान के कार्य से पूरी तरह संतुष्ट हैं। जबकि 34% लोग कुल मिलाकर संतुष्ट हैं। इस प्रकार मध्य प्रदेश के 61% मतदाता शिवराज सिंह चौहान के कार्य से संतुष्ट हैं । उनकी यह ताकत भाजपा के कमल को यहां बहुत अधिक लाभ पहुंचा रही है।
हम सभी जानते हैं कि 2003 से यहां पर शिवराज सिंह चौहान एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री के रूप में शासन करते रहे है। लोगों को उनकी सादगी पसंद आती है । इसके अतिरिक्त वह सामान्यतः जो कहते हैं उसे करके दिखाने का प्रयास करते हैं। इन सबसे बढ़कर केंद्र में भाजपा की सरकार का होना और प्रधानमंत्री श्री मोदी का जादू अभी तक यथावत बने रहना भी मध्य प्रदेश के मतदाताओं के लिए बीजेपी की ओर बढ़ने का एक कारण हो सकता है।
इन सब बातों का अर्थ यह नहीं कि कांग्रेस की ताकत यहां पर नगण्य है। कांग्रेस के बारे में हमें समझना चाहिए कि उसके लिए देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश चाहे कमजोरी का कारण बन रहा हो, पर मध्य प्रदेश जैसे राज्य में अभी भी उसकी अच्छी ताकत है। कमलनाथ के साथ भी बड़ी संख्या में लोग खड़े हैं। इस सब के उपरांत यह बात भी सही है कि कमलनाथ का कांग्रेसी होना ही उनकी अपनी कमजोरी है और कांग्रेस के लिए कमलनाथ का साथ होना उसकी ताकत है। कमलनाथ के अतिरिक्त दिग्विजय सिंह भी कांग्रेस के कैसे नेता हैं जो 10 वर्ष तक इस प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। इस बार वह भी कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए जी तोड़ प्रयास कर रहे हैं। यद्यपि दिग्विजय सिंह का कांग्रेस में होना कांग्रेस के लिए एक दुर्भाग्य का विषय है। बस, यही कारण है कि कांग्रेस के राहुल गांधी, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह तीनों मिलकर भी इस समय ऐसी स्पष्ट रणनीति बनाने में असफल दिखाई दे रहे हैं जो भाजपा के शिवराज सिंह चौहान के सत्ता की ओर बढ़ते रथ को रोक सके।
इन सब बातों से ही भाजपा को ऊर्जा मिल रही है। हमें मध्य प्रदेश के चुनाव के संदर्भ में यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि भाजपा के आलाकमान की इच्छा इस समय मध्य प्रदेश जैसे राज्य को हर हाल में जीतने की ही है। क्योंकि मध्य प्रदेश जैसे राज्य को जीतने से 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ना निश्चित है। भाजपा की पूरी रणनीति यही है कि जैसे भी हो मध्य प्रदेश को जीता जाए। भाजपा के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि उसके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ऊपर किसी प्रकार का कोई दाग नहीं है वह साफ सुथरी छवि बनाए रखने में सफल हुए हैं। लोग उनकी बात पर भरोसा करते हैं और वह इस समय भी लोगों के बीच जाकर जो कुछ बोल रहे हैं लोग उस पर भरोसा करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
इसके अतिरिक्त भाजपा के लिए एक अच्छी बात यह है कि यहां पर कांग्रेस के अलावा अन्य कोई ऐसा राजनीतिक दल नहीं है जो तीसरे विकल्प के रूप में लोगों के सामने हो। अन्य सभी राजनीतिक पार्टियां यहां पर कोई खास राजनीतिक हैसियत नहीं रखती। ‘इंडिया’ गठबंधन में यहां स्पष्ट दरार दिखाई दी है। जब समाजवादी पार्टी इस गठबंधन का एक महत्वपूर्ण घटक होते हुए भी स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ रही है । वह जितना भी नुकसान करेगी कांग्रेस का ही करेगी। इससे दो बातें साफ हो रही हैं एक तो यह कि भाजपा इस लाभ को पाकर सत्ता की ओर बढ़ती हुई दिखाई दे रही है । दूसरे यह भी कि ‘इंडिया’ गठबंधन यदि 2024 में लोकसभा चुनाव के समय ही दिखाई दिया तो उसका अर्थ यही होगा कि यह गठबंधन सत्ता स्वार्थ के लिए किया गया ‘ठगबंधन’ है। इसके चाल , चरित्र और चेहरे से स्पष्ट हो रहा है कि यह जिस धुंधलके में आज छुपा हुआ है वही धुंधलका इसके चेहरे पर चुनाव के बाद भी जारी रहेगा और यह कुछ समय पश्चात ही पानी के बुलबुले की तरह खत्म हो जाएगा।
लोग इस प्रकार के ठगबंधनों पर इस समय भरोसा करते हुए दिखाई नहीं दे रहे।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भाजपा को मजबूती देते हुए इस वर्ष जनवरी के महीने में यहां पर ‘लाडली बहन योजना’ लागू की थी। इस योजना के तहत महिलाओं को हर महीने ₹1500 भेजे जा रहे हैं। अनेक ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने आज तक इस प्रकार की किसी योजना का सीधा लाभ नहीं उठाया था और अब जब उन्हें ₹1500 हर महीने अपने आप मिलते दिखाई दे रहे हैं तो वह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ खड़े होने में अपने आप को सुरक्षित अनुभव कर रही है। उनके सामने राजस्थान का उदाहरण भी है। जहां कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिए 2018 में अनेक लोक- लुभावने वायदे किए थे। पर उन्हें वह पूरा नहीं कर पाई है। इसलिए कांग्रेस की ओर से मध्य प्रदेश में लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए चाहे कितनी ही घोषणाएं की जा रही हैं पर उन पर लोग कम भरोसा करते दिखाई दे रहे हैं। अंत में हम यही कहना चाहेंगे कि चुनाव में अभी समय है और मतदाताओं के मूड को लेकर हम कोई भी भविष्वाणी नहीं कर सकते।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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