अन्ना हज़ारे ने एक बार पुनः जंतर मंत्र पर बीते रविवार को अपना एक दिवसीय अनशन रखा है। इस बार अन्ना कुछ संभले है और उन्होनें अपनी टीम की पहली गलतियों में सुधार किया है। उन्हें ये अहसास हुआ है कि राजनीति को बिना राजनीतिजों के नहीं हाँका जा सकता और ना ही किसी कानून को बिना संसद के पारित किया जा सकता। हवा में झूलते पहले वाले अन्ना इस बार कुछ धरती पर आये हैं। इसीलिए उनके एक दिवसीय धरने में इस बार राजनीतिज्ञों की उपस्थिति रही है।
काँग्रेस की सरकार की गलत नीतियों और लोकपाल पर उसकी पूर्वीग्रही सोच को लेकर विपक्ष संसद में शोर मचाता रहा है जबकि अन्ना इसी बात को लेकर सड़क पर शोर मचा रहे थे। अन्ना की मजबूरी थी कि वह संसद में जाकर अपनी बात नहीं रख सकते थे और विपक्ष की मजबूरी थी कि वह एक सांझा मंच बनाकर सड़क पर नहीं आ सकता था। दोनों का कॉमन एजेण्डा था पर कॉमन मंच नहीं था। इस बार दोनों ने एक दूसरे की बात भी समझी है और एक कॉमन मंच पर आकर आवाज लगायी है। विपक्ष ने सड़क का प्रयोग संसद की सर्वोच्चता को बनाये रखने के लिए तथा अन्ना ने सड़क का प्रयोग जन संसद की बात को जन प्रतिनिधियों के माध्यम से देश में लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर संसद तक पहूंचाने के लिए किया है।
यही कारण है कि इस बार मनमोहन सिंह के जल्दबाज़ रणनीतिकार दिग्गी जैसे लोग सकते में रहे और उन्होंने”’ ऐसी किसी हरकत को अंजाम नहीं दिया जैसी उन्होनें पहले दिखायी थी। परिणाम स्वरूप इस एक दिवसीय अनशन से ही देश की संसद का ध्यान सड़क की ओर गया है। खासतोर पर काँग्रेस की * सरकार को जकीनी हकीकत की पता चली है कि देश की सरकाऔर जनता की आवाज में यदि एकता स्थापित नहीं की गयी तो तेरा कलका पढ़ने में देश की जनता देर नहीं करेगी। इसलिए सरकार ने अन्ना के एक दिन के अनशान में देश की राजनीति के शामिल होते ही घुटने टेकने के संकेत आरम्भ कर दिये हैं। डॉ॰ मनमोहन सिंह अब घुटने टेक पी॰एम॰ हैं। इससे पहले वह सोनिया दरबार में बैठे कुनिल और भारत में अमेरिका के भारतीय वायसराय थे। अब तक उन्हे जनता की ओर देखने और जनता के दुख दर्दों को समझने की फुर्सत ही नहीं थी, पर अब उन्हे लगा है कि देश में जनता भी रहित है और देश की असली ताकत भी इसी जनता में निहित है। यदि जनता के लोगों की आवाज की उपेक्षा की तो परिणाम दुखद होंगे। इसलिए उन्होनें अपना ध्यान सोनिया दरबार और अमेरिका * से हटाकर जंतर मन्तर पर केन्द्रित किया है। अब वह जंतर मन्तर से प्रभावित होकर काम करना चाहते हैं। इसलिए सरकार ने संकेत दिये है कि वह प्रधान मंत्री को लोकपाल के दायरे मे लायेगी और ग्रुप सी॰ व डी॰के कर्मचारियों को भी इसके दायरे में ले आयेंगे। हालांकि विपक्ष में अन्ना के मंच पर जाकर भी स्पष्ट कर दिया है कि वह अन्न की सभी मांगों से सहमत नहीं है, परन्तु जिस सीमा तक विपक्ष की नजरों में अन्ना की मांग उचित हैं वहाँ तक वह उनका समर्थन करता है कारण चाहे जो रहे , पर अन्ना के साथ विपक्ष ने अपनी एकजुटता दिखाकर प्रशासनीय कार्य किया है। इससे विपक्ष की एकजुटता का ही नहीं अपितु भारत में राजनीति के शुदिकरण की उसकी मनोभावना का भी पता चलता है कि वह इसे लेकर कितना सजीदा है और वह किसी भी कीमत पर सरकार को मनमानी नहीं करने देंगे। कुल मिलकर जनभवना का सम्मान करना लोकतन्त्र का पहला फर्ज है। अब सरकार को भी इसे समझना चाहिए।