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दादाभाई नौरोजी की राष्ट्रभक्ति और ब्रिटिश सरकार

अनन्या मिश्रा

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखने वाले दादा भाई नौरोजी को भारतीय राजनीति का पितामह कहा जाता है। आज ही के दिन यानी की 4 सितंबर को दादा भाई नौरोजी का जन्म हुआ था। उनके अंदर देश प्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी थी। दादा भाई नौरोजी ने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया था।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखने वाले दादा भाई नौरोजी को भारतीय राजनीति का पितामह कहा जाता है। उन्हें देश का ग्रैंड ओल्ड मैन, भारतीय अर्थशास्त्र के जनक और आर्थिक राष्ट्रवाद के जनक भी कहा जाता है। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 4 सितंबर को दादा भाई नौरोजी का जन्म हुआ था। दादा भाई नौरोजी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में अहम भूमिका निभाई और वह तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। उनके अंदर देश प्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी थी। दादा भाई नौरोजी ने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर दादा भाई नौरोजी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…

मुंबई के एक गरीब पारसी पुरोहित परिवार में 4 सितंबर 1825 को दादा भाई नौरोजी का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम नौरोजो पलांजी डोरडी था। महज 4 साल की उम्र में दादा भाई नौरोजी के सिर से पिता का साया उठ गया। जिसके बाद उनका पालन पोषण उनकी माता मनेखबाई ने किया। मनेखबाई ने आर्थिक निर्धनता होने के बाद भी दादा भाई नौरोजी को उच्च शिक्षा दिलवाई। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा नेटिव एजुकेशन सोसायटी स्कूल से पूरी की और आगे की शिक्षा मुंबई के एल्फिंस्टन कॉलेज से पूरी की थी। नौरोजी बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में काफी अच्छे थे।

पारसी पुरोहित परिवार से ताल्लुक ऱखने वाले दादा भाई नौरोजी ने 1 अगस्त साल 1851 को रहनुमाई मज्दायास्त्री सभा का भी गठन किया था। इस सभा का मुख्य उद्देश्य पारसी धर्म के लोगों को एक साथ इकट्ठा करना था। साल 1853 में उन्होंने फोर्थनाइट पब्लिकेशन के तहत रास्ट गोफ्तार भी बनाया था। बता दें कि वह गणित और अंग्रेजी के अच्छे छात्र थे। गणित में अपनी मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद दादा भाई नौरोजी साल 1855 में मुंबई के एल्फिंस्टन कॉलेज में गणित और भौतिक शास्त्र के प्रोफेसर बन गए। उस दौरान किसी स्कूल में प्रोफेसर बनने वाले वह पहले भारतीय थे।

एलफिस्टन कॉलेज में प्रोफेसर पद पर दादा भाई नौरोजी ने 6 साल तक अपनी सेवाएं दी। इस दौरान उन्होंने समाज के लिए भी कई काम किए और लोगों को शिक्षा के महत्व के बारे में बताया। दादा भाई नौरोजी ने निशुल्क पाठशालाओं की व्यवस्था की। ताकि आर्थिक रूप से कमजोर लोग आसानी से पढ़ाई कर सकें। साल 1853 में दादा भाई नौरोजी ने बंबई एसोसिएशन की स्थापना की और साल 1856 में उन्होंने प्रोफेसर पर से इस्तीफा दे दिया। फिर साल 1855 में वह ‘कामा एंड को’ कंपनी में नौकरी करने लगे। लेकिन कुछ समय बात उन्होंने यह नौकरी भी छोड़ दी।

साल 1859 में दादा भाई नौरोजी ने खुद की कपास ट्रेडिंग कंपनी की नींव रखी। जो बाद में ‘नौरोजी एंड कंपनी’ के नाम से जानी जाने लगी। साल 1960 में उन्होंने सक्रिय रूप से भारतीयों के उत्थान के लिए काम करना शुरु किया। वह भारत में ब्रिटिशों की प्रवासीय शासनविधि के शुरू से खिलाफ थे। उन्होंने ब्रिटिशों के सामने ‘ड्रोन थ्योरी’ भी प्रस्तुत की। जिसमें उन्होंने बताया कि किस तरह से भोलेभाले औपर बेकसूर भारतीयों पर अत्याचार किया जा रहा है। ब्रिटिश भारतीयों पर शोषण कर उनके देश को आर्थिक रूप से कमजोर कर रहे हैं। इस थ्योरी ने अंग्रेजों की नींव को हिला दिया था।

इंग्लैंड में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के बाद दादाभाई नौरोजी भारत वापस आ गए। जिसके बाद से उनके सामाजिक जीवन की शुरूआत हुई। साल 1885 से 1888 तक उन्होंने मुंबई की विधान परिषद के सदस्य के रूप में भी काम किया था। जिसके बाद साल 1886 को दादा भाई नौरोजी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। इसके अलावा वह साल 1893 से 1906 तक भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। इसके बाद तीसरी बार साल 1996 में अध्यक्ष बने थे। इस दौरान उन्होंने पार्टी में उदारवादियों और चरमपंथियों के बीच विभाजन को रोकने का काम किया था। राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की नींव रखने वाले दादा भाई नौरोजी ने स्वराज की मांग की थी। वह अहिंसावादी और संवैधानिक तरीकों पर भरोसा रखते थे।

बचपन से ही दादा भाई नौरोजी के अंदर देशप्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी थी। वह शुरूआत से ही सामाजिक एवं क्रांतिकारी विचारधारा वाले एक ऐसी शख्सियत थे। जिन्होंने साल 1853 में ईस्ट इंडिया कंपनी के लीज नवीनीकरण का विरोध किया था। इस मामले को लेकर उन्होंने ब्रिटिश सरकार को तमाम याचिकाएं भी भेजी थी। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनकी बात को खारिज कर लीज को रिन्यू कर दिया था।

उनका मानना था कि भारत के लोगों में अज्ञानता की वजह से ही क्रूर ब्रिटिश शासक उनपर अत्याचार कर रहे हैं। युवाओं और वयस्कों की शिक्षा के लिए उन्होंने ज्ञान प्रसारक मंडली की भी स्थापना की थी। इसके अलावा भारत की समस्याओं का समाधान करने के लिए दादा भाई नौरोजी ने राज्यपालों और वायसराय को कई याचिकाएं लिखीं। आखिरी में उन्होंने महसूस किया कि भारतीयों की दुर्दशा के बारे में ब्रिटिश लोगों और ब्रिटिश संसद को जानकारी होनी चाहिए। इसी कारण वह साल 1855 में वह इंग्लैंड चले गए।

इंग्लैंड जाने के बाद उन्होंने वहां पर भारत के विकास और इसकी दशा में सुधार करने के लिए कई फेमस और प्रबुद्ध संगठनों से मुलाकात की। इंग्लैंड में उन्होंने कई अच्छी सोसायटी भी ज्वॉइन की। इंग्लैंड में भाषण के दौरान उन्होंने कई बार भारत की दुर्दशा के बारे में बताया। इस बारे में कई लेख भी लिखे थे। जिसके बाद 1 दिसंबर 1866 को ‘ईस्ट इंडिया एसोसिएशन’ की स्थापना की। बाद में इस संस्था में उच्च पदस्थ अधिकारियों को शामिल किया गया।

आखिरी दिनों में अंग्रेजों द्दारा भारत के बेकसूर लोगों पर अत्याचार करने और उनके शोषण पर दादा भाई नौरोजी लेख लिखा करते थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन की नींव रखी थी। स्वास्थ्य सही ना होने के कारण 31 जून 1917 को 91 साल की उम्र में भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी दादाभाई नौरोजी का निधन हो गया। दादाभाई नौरोजी ने अंतिम सांस मुम्बई में ली।

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