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संपादकीय

“मोहब्बत की दुकान” से बिकता नफरत का सामान

अजीज कुरैशी कांग्रेस के बड़े नेता हैं। कांग्रेस की परंपरागत तुष्टिकरण की नीति के चलते इन जैसे नेताओं को एक वर्ग विशेष के विरुद्ध बोलने का और घृणा का व्यापार करने का पूरा अधिकार प्राप्त रहता है। आजादी से पहले भी कांग्रेस के मंच से नफरत का माहौल बनाने में कांग्रेस के तत्कालीन मुस्लिम नेताओं ने किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी थी। इसके उपरांत भी सावरकर जी जैसे हिंदूवादी नेताओं को कांग्रेस के कथित हिंदू नेताओं ने भी विभाजन का दोषी बताना आरंभ कर दिया। इनकी ऐसी मानसिकता के पीछे कारण केवल एक ही था कि मुसलमानों का तुष्टिकरण करते हुए उनकी वोट प्राप्त की जाएं।आज जब 1947 को बीते 75 वर्ष से अधिक का समय हो गया है तब भी कांग्रेस ने अपने अतीत से किसी प्रकार की शिक्षा नहीं ली है । इसके मंचों पर आज भी ऐसे लोग बैठे हैं जो नफरत की हवाओं को तेज करने का काम करते रहते हैं। यद्यपि कांग्रेस के राहुल गांधी “मोहब्बत की दुकान” चलाने की बात करते हैं पर अजीज कुरैशी जैसे लोग अपने ही नेता के दावे को फुस्स करने का काम करते रहते हैं।
इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस के नेता अजीज कुरैशी ने कहा है कि “मुसलमानों ने हाथों में चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं,
22 करोड़ में से 1-2 करोड़ मर भी जाएंगे तो कोई बात नहीं।”
कांग्रेस ने सर सैयद अहमद खान, मोहम्मद अली जिन्ना , सोहरावर्दी जैसे मुस्लिम नेताओं की कट्टरता को न केवल सहन किया बल्कि अपने आचरण से उसे प्रोत्साहित भी किया । उसी का परिणाम रहा कि द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को मुस्लिम नेता कांग्रेस के मंचों से हवा देते गए और एक दिन देश बंट गया। आज फिर अपने मंचों का दुरुपयोग करा रही कांग्रेस कहीं भारत के एक और विभाजन की इबारत तो नहीं लिख रही है ?
ये वही कुरैशी हैं जिन्हें उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का राज्यपाल बनाने का काम भी कांग्रेस ने किया था । संवैधानिक पदों पर रहने के उपरांत भी अज़ीज़ कुरैशी जैसे लोगों के भीतर राष्ट्र भाव और सद्भाव पैदा नहीं हुआ। तब इनसे और क्या अपेक्षा की जा सकती है ? अजीज कुरैशी को इस बात पर भी आपत्ति है कि कांग्रेस जैसे धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल के कार्यालय में मूर्तियां क्यों स्थापित की गई हैं? उनका कहना है कि हिन्दुत्व की बात करना डूब मरने वाली बात है। उनका यह भी कहना है कि गंगा मैया की जय बोलना आपत्तिजनक है।
यदि अजीज कुरैशी के इन शब्दों पर ध्यान दिया जाए तो उनकी धर्मनिरपेक्षता का वास्तविक अर्थ यही है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर वही होना चाहिए जो कुरान कहती हो या इस्लाम की जिसमें आस्था हो। उनके अनुसार धर्मनिरपेक्षता का यह अर्थ नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति की सामाजिक व धार्मिक मान्यताओं का सम्मान किया जाएगा और प्रत्येक को अपनी धार्मिक आस्था को प्रकट करने का पूर्ण अधिकार होगा। निश्चित रूप से उनके कथित धर्मनिरपेक्ष भारत में यदि यह स्थिति किसी मुसलमान को प्राप्त है तो हिंदू को भी अपनी धार्मिक आस्था का पालन करते हुए जीवन जीने की पूर्ण छूट होनी चाहिए। ऐसी स्थिति में हिंदुत्व की बात भी करना न्याय संगत है। हमारा मानना है कि भारत का हिंदुत्व उस आर्यत्व का ही वर्तमान स्वरूप है जो ऋषियों के वसुधैव कुटुंबकम के पवित्रतम संदेश की अभिव्यक्ति है।
उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त उत्तराखंड और मिजोरम के भी राज्यपाल रह चुके अजीज कुरैशी ने कहा है कि यदि ऐसा बोलने पर कांग्रेस पार्टी उन्हें बाहर का रास्ता दिखाती है तो वह भी उन्हें स्वीकार है। कुरैशी की यह बंदर घुड़की उनकी उस मानसिकता को स्पष्ट करती है जिसमें वह नैतिक रूप से पराजित हो चुके हैं अर्थात उन्हें पता है कि अब उन्हें जीवन भर कांग्रेस की ओर से कोई पद नहीं मिलेगा। ऐसे में अच्छा रहेगा कि वह कम से कम शांति दूतों के मध्य तो लोकप्रिय बने ही रहें। यही कारण है कि उन्होंने सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए मुसलमानी जज्बातों से खेलने का काम करते हुए उपरोक्त भड़काऊ और घृणास्पद बयान दिए हैं।
हमारे देश में जो लोग बात-बात पर गंगा-जमुनी तहजीब की बात करते हैं, हिंदू मुस्लिम भाई-भाई का नारा देते हैं और संविधान की दुहाई देते हुए कहते पाए जाते हैं कि देश संविधान से चलेगा, वे सबके सब अजीज कुरैशी के इस बयान पर अपनी परंपरागत खामोशी के आंचल में समा गए हैं। इनकी आपराधिक मानसिकता और तटस्थता का देश विरोधी भाव कभी सच को सच नहीं कह सकता। कुर्सियों के पीछे शिकार खेलने की उनकी परंपरागत सोच के कारण ही देश का माहौल खराब होता है। ये उन लोगों की जबानों पर ताले लगाने की बात नहीं करते जो देश को तोड़ने की गतिविधियों में लगे रहते हैं। वास्तव में, किसी मुसलमान ने या हिंदू ने चूड़ी पहनी हों या ना पहनी हों पर इन धर्मनिरपेक्ष नेताओं ने जरूर चूड़ियां पहन रखी हैं। आजादी से पहले से ही यह कभी भी सच को सच कहने का साहस नहीं कर पाए। यही कारण है कि मोहब्बत की दुकान के सबसे बड़े बादशाह राहुल गांधी भी अजीज कुरैशी के इस बयान के बाद कुर्सियों के पीछे जा छुपे हैं। यह नूपुर शर्मा को लेकर हंगामा काट सकते हैं और हंगामे की बातों पर इनका हंगामा खामोशी में परिवर्तित हो जाता है।
पूरा देश जानता है कि अजीज कुरैशी ‘मध्य प्रदेश उर्दू एकेडमी’ के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 1973 में उन्हें मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार में मंत्री भी बनाया गया था। 1984 में उन्हें राज्य के सतना लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुना गया था। उनका परिवार अरब-पठान नस्ल से ताल्लुक रखता है और वो भोपाल से आते हैं। वो अक्सर उर्दू ही बोलते रहे हैं। अपनी मजहबी मान्यताओं को राजनीति में भी लागू करना इनकी प्रकृति में सम्मिलित है। जिस समय यह ऐसा कर रहे होते हैं उस समय भी उनकी मान्यता यही होती है कि ऐसा करना उनका संवैधानिक अधिकार है। कहने का अभिप्राय है कि संविधान का भी इस्लामीकरण हो जाए और उस पर भी हिंदू मौन रहे तो अजीज कुरैशी जैसे लोगों के अनुसार वास्तविक धर्मनिरपेक्षता इसी को कहा जा सकता है।
लोकतंत्र की खूबसूरती इसी में है कि हम अपने विचारों को लोकतांत्रिक ढंग से मर्यादित आचरण करते हुए प्रकट करें। जो लोग जिम्मेदारी के पदों पर बैठे हैं या बैठ चुके हैं उनसे तो यह अपेक्षा और भी अधिक की जाती है कि वह लोकतांत्रिक परंपराओं का पालन करते हुए ही अपने शब्दों का चयन करेंगे। भारत के लोकतांत्रिक संविधान की यह विशेषता है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को फूलने फलने का पूर्ण अवसर उपलब्ध कराता है। संविधान की इस खूबसूरती का हम सबको सम्मान करना चाहिए और प्रत्येक के अधिकारों का ध्यान रखते हुए भारत निर्माण में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करनी चाहिए। अजीज कुरैशी जैसे लोगों को राजनीति से दूर करने के लिए इस समय राजनीतिक आचार संहिता की नितांत आवश्यकता है। हमारा मानना है कि समान नागरिक संहिता से भी पहले राजनीतिक आचार संहिता देश में लागू की जानी चाहिए । जिससे कि अजीज कुरैशी जैसे लोगों को समाज में किसी भी प्रकार का घृणास्पद परिवेश सृजित करने की अनुमति न हो । लोगों के मध्य सांप्रदायिक आधार पर विभेद करना या सांप्रदायिक आधार पर किसी वर्ग विशेष को मारने काटने की धमकी देना संवैधानिक अपराध ही नहीं है बल्कि इसे देशद्रोह जैसे गंभीर अपराध के साथ जोड़कर देखे जाने की आवश्यकता है।

राकेश कुमार आर्य

(लेखक सुविख्यात इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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