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कविता

कुंडलियां … 41 अहंकार मोह से ऊपजे…

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चमक दमक फीकी पड़े, बन्द होय बाजार।
व्यापारी उठ जाएंगे, समेट लेंय व्यापार।।
समेट लेंया व्यापार, रात काली पसरेगी ।
बंद हो पछवा बयार , बयार बेसुरी बहेगी।।
समय पर चेत बावरे, ये बात है मेरी नीकी ।
सही वक्त आने पर,चमक-दमक हो फीकी।।

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अहंकार मोह से ऊपजे, अहम से जन्मे काम।
काम से ही लेते जन्म , लोभ, क्रोध , संताप ।।
लोभ, क्रोध , संताप , करें मनुज का नाश।
सगे संबंधी होत हैं, मद, मदिरा और मांस।।
बुद्धि हरें, मत फेरते, नहीं मनुष्य के यार।
भक्त बन ईश का , क्यों व्यर्थ करे अहंकार।।

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चार वेद छह शास्त्र की, बात अमोली एक।
जगत झमेला छोड़कर , लगा प्रभु से टेक।।
लगा प्रभु से टेक , जगत के झंझट मिटते।
जकड़ लिया जिन पाशों ने,निश्चय सारे कटते।।
काम,क्रोध , मद आदि, इन सब का व्यापार।
छुटे सभी की जेर से, जब वेद हाथ हों चार।।

दिनांक :13 जुलाई 2023

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