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कविता – आदर्श जीवन राम का

कविता  —  50

 
आदर्श जीवन राम का ….

एक सन्देशा दे रहा आदर्श जीवन  राम का ।
तन हमारा भी बने बस लोक के ही काम का।।
विपदा खड़ी जो सामने वह सनातन  है  नहीं ;
बुलबुले पानी में बनते शिकार होते नाश का।।

जीवन के संग्राम में तुम सेना सजाओ धर्म की ।
जीत निश्चित ही पाओगे,  है बात यही मर्म की ।।
वशीभूत काम और  क्रोध के मद ,मोह ,लोभ के ;
मत व्यर्थ जीवन को करो बस बात करो कर्म की ।।

विनाश जहाँ दिखता, वहाँ था कभी विकास भी ।
अंधकार जहाँ दीखता वहाँ था कभी प्रकाश भी।।
विपदा के झंझावात से मत भाव निराशा के जगा ;
देख अपने राम को – काट दिया वनवास भी।।

‘भीलनी’ के बेर खाकर सदभाव को सम्मान दो ।
लगा लो ‘विभीषण’ को गले -मान दो वरदान दो।।
पर किसी रावण के आगे झुकना यहाँ अपराध है ;
पापी और नीच का तो केवल होता शरसन्धान हो।।

जो लोग अपने मार्ग से  यहाँ भटके हुए  हैं घूमते ।
हताश और निराश होकर  लोगों के कदम चूमते ।।
आदर्श जीवन श्री राम का ह्रदय में अपने देख लें ;
जो अनेक कष्ट पाते हुए  भी आनंद में हैं  झूमते।।

अलौकिक चरित्र राम का दुर्लभ समस्त संसार में,
नहीं ढूंढ सकता कोई दूसरा राम विश्व इतिहास में।
उनके चरित्र  की  सभ्यता, इतिहास की है संपदा ,
अनोखे निराले श्री राम हैं , मेरी बात न लें अन्यथा।।

राम मानवता की धरोहर और राम  विश्ववन्द्य हैं ।
राम के व्यक्तित्व से परास्त  होते सारे  द्वन्द्व  हैं ।।
अक्षय ऊर्जा का स्रोत है ज्योति अखंड ज्ञान की ;
‘राकेश’ नमन कर रहा राम ज्योतिर्मय सुखकंद है।।

यह कविता मेरी अपनी पुस्तक ‘मेरी इक्यावन कविताएं’-  से ली गई है जो कि अभी हाल ही में साहित्यागार जयपुर से प्रकाशित हुई है। इसका मूल्य ₹250 है)

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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