एक बार एक महर्षि ने ऋषियों से कहा कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन व अन्नकूट की पूजा करनी चाहिए। तब ऋषियों ने महर्षि से पूछा-अन्नकूट क्या है गोवर्धन कौन हैंघ् इनकी पूजा क्यों तथा कैसे करनी चाहिए इसका क्या फल होता हैघ् इस सबका विधान विस्तार से कहकर कृतार्थ करें।
महर्षि बोले-एक समय की बात है। भगवान श्रीकृष्ण अपने सखा और गोप-ग्वालों के साथ गउएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि हज़ारों गोपियां 56 छप्पनद्ध प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच-गाकर उत्सव मना रही थीं। पूरे ब्रज में भी तरह.तरह के मिष्ठान्न तथा पकवान बनाए जा रहे थे।
श्रीकृष्ण ने इस उत्सव का प्रयोजन पूछा तो गोपियां बोली.श्आज तो घर.घर में यह उत्सव हो रहा होगाए क्योंकि आज वृत्रासुर को मारने वाले मेघदेवताए देवराज इन्द्र का पूजन होगा। यदि वे प्रसन्न हो जाएं तो ब्रज में वर्षा होती हैए अन्न पैदा होता हैए ब्रजवासियों का भरण.पोषण होता हैए गायों का चारा मिलता है तथा जीविकोपार्जन की समस्या हल होती है।
यह सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा-श्यदि देवता प्रत्यक्ष आकर भोग लगाएंए तब तो तुम्हें यह उत्सव व पूजा ज़रूर करनी चाहिए। गोपियों ने यह सुनकर कहा कोटि-कोटि देवताओं के राजा देवराज इन्द्र की इस प्रकार निंदा नहीं करनी चाहिए। यह तो इन्द्रोज नामक यज्ञ है। इसी के प्रभाव से अतिवृष्टि तथा अनावृष्टि नहीं होती।
श्रीकृष्ण बोले-इन्द्र में क्या शक्ति हैए जो पानी बरसा कर हमारी सहायता करेगाघ् उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा यह गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है। अतरू हमें इन्द्र से भी बलवान गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए।
इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण के वाग्जाल में फंसकर ब्रज में इन्द्र के स्थान पर गोवर्धन की पूजा की तैयारियां शुरू हो गईं। सभी गोप-ग्वाल अपने-अपने घरों से सुमधुरए मिष्ठान्न पकवान लाकर गोवर्धन की तलहटी में श्रीकृष्ण द्वारा बताई विधि से गोवर्धन पूजा करने लगे। उधर श्रीकृष्ण ने अपने आधिदैविक रूप से पर्वत में प्रवेश करके ब्रजवासियों द्वारा लाए गए सभी पदार्थों को खा लिया तथा उन सबको आशीर्वाद दिया। सभी ब्रजवासी अपने यज्ञ को सफल जानकर बड़े प्रसन्न हुए।
तथी नारद मुनि इन्द्रोज यज्ञ देखने की इच्छा से वहां आए। गोवर्धन की पूजा देखकर उन्होंने ब्रजवासियों से पूछा तो उन्होंने बताया. श्श्रीकृष्ण के आदेश से इस वर्ष इन्द्र महोत्सव के स्थान पर गोवर्धन पूजा की जा रही है।
यह सुनते ही नारद उल्टे पांव इन्द्रलोक पहुंचे तथा उदास तथा खिन्न होकर बोले हे राजन! तुम महलों में सुख की नींद सो रहे होए उधर गोकुल के निवासी गोपों ने इद्रोज बंद करके आप से बलवान गोवर्धन की पूजा शुरू कर दी है। आज से यज्ञों आदि में उसका भाग तो हो ही गया। यह भी हो सकता है कि किसी दिन श्रीकृष्ण की प्रेरणा से वे तुम्हारे राज्य पर आक्रमण करके इन्द्रासन पर भी अधिकार कर लें। नारद तो अपना काम करके चले गए। अब इन्द्र क्रोध में लाल.पीले हो गए। ऐसा लगता थाए जैसे उनके तन.बदन में अग्नि ने प्रवेश कर लिया हो। इन्द्र ने इसमें अपनी मानहानि समझकरए अधीर होकर मेघों को आज्ञा दी. श्गोकुल में जाकर प्रलयकालिक मूसलाधार वर्षा से पूरा गोकुल तहस.नहस कर देंए वहां प्रलय का सा दृश्य उत्पन्न कर दें।श्
पर्वताकार प्रलयंकारी मेघ ब्रजभूमि पर जाकर मूसलाधार बरसने लगे। कुछ ही पलों में ऐसा दृश्य उत्पन्न हो गया कि सभी बाल.ग्वाल भयभीत हो उठे। भयानक वर्षा देखकर ब्रजमंडल घबरा गया। सभी ब्रजवासी श्रीकृष्ण की शरण में जाकर बोले. श्भगवन! इन्द्र हमारी नगरी को डुबाना चाहता हैए आप हमारी रक्षा कीजिए।
गोप गोपियों की करुण पुकार सुनकर श्रीकृष्ण बोले. श्तुम सब गऊओं सहित गोवर्धन पर्वत की शरण में चलो। वही सब की रक्षा करेंगे। कुछ ही देर में सभी गोप.ग्वाल पशुधन सहित गोवर्धन की तलहटी में पहुंच गए। तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर छाता सा तान दिया और सभी गोप.ग्वाल अपने पशुओं सहित उसके नीचे आ गए।
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