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इतिहास के पन्नों से

शिवाजी की तरह शूरवीर थे संभाजी महाराज, औरंगजेब को दिया था अपनी वीरता का परिचय

अनन्या मिश्रा

छत्रपति शिवाजी महाराज की तरह ही उनके बेटे संभाजी महाराज वीर तथा प्रतिभाशाली इंसान थे। शिवाजी की मृत्यु के बाद संभाजी ने मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली थी। इस दौरान मुगलों ने उनपर कई आक्रमण किए, लेकिन संभाजी ने कभी भी मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके। संभाजी शुरू से ही मुगलों के खिलाफ थे। आज ही के दिन यानी की 14 मई को पुरन्दर के किले में संभाजी का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर जानते हैं संभाजी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…

जन्म

14 मई 1657 को पुरन्दर के किले (पुणे) में संभाजी का जन्म हुआ था। संभाजी की माता का नाम सईबाई, जोकि शिवाजी की पहली पत्नी थीं। संभाजी शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र थे। महज 9 साल की उम्र में संभाजी पुरंदर की संधि हेतु मिर्जा राजा जयसिंह के साथ मुगल दरबार में भेजा गया था। साल 1665 में शिवाजी ने मिर्जा राजा जयसिंह के साथ पुरंदर की संधि की थी। इस संधि के अनुसार, शिवाजी को मुगलों के कई किलों को वापस लौटाना था। इस संधि के बाद संभाजी को मुगल मनसबदार बना दिया गया।

वहीं कुछ समय बाद जब शिवाजी अपने पुत्र संभाजी के साथ औरंगजेब के दरबार में गए। तब औरंगजेब ने शिवाजी और संभाजी का आदर सत्कार नहीं किया। इस कारण से गुस्सा होकर शिवाजी आमेर आ गए। आमेर में शिवाजी व संभाजी को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया गया। लेकिन शिवाजी और संभाजी को बंदी बनाकर रख पाना मुगलों के लिए आसान काम नहीं था। शिवाजी और संभाजी ने खुद की बीमारी का बहाना किया। जिस कारण उन दोनों के लिए टोकरे में फल आने लगे। इसी बात का फायदा उठाकर शिवाजी और संभाजी टोकरियों में बैठकर औरंगजेब की कैद से फरार हो गए और वापस पूणे पहुंच गए।

मुगलों से मिल गए थे संभाजी

प्राप्त जानकारी के अनुसार, संभाजी जब 21 साल के थे, तो वह कामुक सुख की ओर आकर्षित हो गए थे। संभाजी के इस व्यवहार को जानकर शिवाजी ने उनको पन्हाला किले में कैद कर दिया। लेकिन संभाजी अपनी पत्नी को लेकर फरार हो गए थे। इस दौरान वह मुगलों के साथ मिलगए और देशद्रोह के रास्ते पर चलने लगे। जब शिवाजी को संभाजी के इस फैसले के बारे में पता चला तो उनको बहुत दुख हुआ था। हालांकि 1 साल बाद संभाजी को अपनी गलती का एहसास होने पर वह वापस अपने पिता के पास वापस आ गए थे।

साल 1681 में सत्ता पाने की चाहत औरंगजेब के चौथे बेटे अकबर ने मुगल साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह कर दिया। जिसके बाद औरंगजेब ने अपने पुत्र को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। अपने पिता से बचने के लिए अकबर ने संभाजी के पास शरण ले ली। इस दौरान अकबर अन्ना दत्ता तथा कई अन्य मंत्रियों से मिला। मंत्रियों ने अकबर के माध्यम से राजा राम को गद्दी पर बिठाने का सोचा था। उन्होंने माना था कि वह संभाजी को राजगद्दी से हटा देंगे।

इसके लिए मंत्रियों ने अकबर को पत्र लिखा था। लेकिन अकबर ने संभाजी के प्रति वफादारी दिखाते हुए उस पत्र को संभाजी को दे दिया। मंत्रियों की इस हरकत पर गुस्सा होकर संभाजी ने नमक हराम मंत्रियों की हत्या करवा दी। बताया जाता है कि इस दौरान अकबर संभाजी के साथ करीब 5 सालों तक रहा था। संभाजी भी अकबर से सैनिक व धन की उम्मीद लगाए थे। लेकिन उस दौरान अकबर के पास संभाजी को देने के लिए कुछ नहीं था। वहीं औरंगजेब भी उत्तर भारत से दक्षिण की तरफ आकर रहने लगा।

मैसूर का अभियान

शिवाजी ने साल 1675 में कर्नाटक का अभियान चलाया था। अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए संभाजी ने भी 1681 में मैसूर का अभियान चलाया था। उन्होंने मैसूर को मराठा साम्राज्य में मिलाने के लिए अभियान चलाया था। इस अभियान में संभाजी की बड़ी सेना को चिक्कादेवराजा ने वापस भेज दिया। क्योंकि चिक्कादेवराजा मुगलों के साथ ज्यादा नजदीक रहा। चिक्कादेवराजा ने मुगलों के साथ बनाई संधि को भी खत्म कर दिया।

मृत्यु

वहीं संभाजी को उनके साथियों व कवि कैलाश को मुगलों ने बंदी बना लिया था। संभाजी और उनके साथियों को जोकर के कपड़े पहनाकर मुगल सरदारों द्वारा बेइज्जत किया गया था। इस दौरान औरंगजेब ने संभाजी को बहुत प्रताड़ित किया था। औरंगजेब ने संभाजी को इस्लाम कुबूल करने और अपने सामने झुकाने के लिए काफी विवश किया। लेकिन संभाजी अपने धर्म के लिए प्राणों की आहूति देने के लिए तैयार थे। इस्लाम धर्म कुबूल करने के लिए संभाजी ने कहा यह तभी संभव होगा जब औरंगजेब अपनी बेटी का हाथ उनके हाथों में दे दें।

संभाजी की यह बात सुन औरंगजेब आगबबूला हो गया। उसने संभाजी को कठोर दंड देने और कोड़ा मारने का आदेश दे दिया। साथ ही मुगल सैनिकों ने संभाजी और उनके साथी कवि कैलाश की आंखे व जीभ निकाल ली थी। बताया जाता है कि औरंगजेब इतना क्रूर शासक था कि उसने संभाजी को तड़पाने के लिए उनके नाखून तथा त्वचा को भी उखाड़ दिया था। इतना प्रताड़ित करने के बाद संभाजी महाराज की लापुर (पुणे) में भीमा नदी के किनारे कुल्हाड़ी मारकर हत्या कर दी गई थी। वहीं कुछ इतिहासकारों का मानना है कि संभाजी के शरीर को काटकर नदी में फेंक दिया गया था।

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