Categories
विविधा

अंधविश्वास का मनोविज्ञान और समाज का जनसाधारण

ललित वर्मा

पड़ोस में एक दादी आई हैं। बहुत केयरिंग। नमस्ते करो तो सिर पर बाकायदा हाथ फेरती हैं। आशीर्वाद देती हैं। एक दिन पत्नी ने कहा : दादी ने बाहर रखे मरवे के पौधों पर ऑब्जेक्शन किया है। कह रही हैं, बेटा इनको हटा दियो। ये घर के लिए अच्छे नहीं होते। मैं हंसा। कहा- कुछ नहीं होता। पर यह बात हफ्ते भर अटकी रही। और कुछ अटक जाए तो उसे निकाल देना बेहतर होता है। मेरे तर्क और अंधविश्वास गुत्थमगुत्था हो गए और इस तर्क ने अंधविश्वास को जिता दिया कि उखाड़ देंगे तो नुकसान क्या है? उसी गमले में नया पौधा लगा देंगे। और मैंने मरवे उखाड़ दिए।

शादी और बच्चे होने से पहले मैं ऐसा नहीं था। पर अब अक्सर कुछ अंधविश्वासों के सामने मेरे तर्क घुटने टेक देते हैं। कई बार ये बात कचोटती है कि पढ़-लिखकर भी इनसे ऊपर नहीं उठ पाए। लेकिन यह मसला जितना सरल लगता है, उतना है नहीं।

सांकेतिक तस्वीर

अंधविश्वास वे झूठे विश्वास और विचार हैं, जिनका कोई तार्किक आधार नहीं होता। लोग अनजान डर के चलते इन्हें गढ़ते हैं। कहते हैं कि हमारे पुरखों ने किसी नुकसान से बचाने के लिए इन्हें बनाया होगा। इनकी खासियत ही यह है कि हमें पता होता है कि हम जो मान रहे हैं, वह संभव नहीं है, फिर भी हम मान लेते हैं। अमेरिकन साइकोलॉजिकल सोसाइटी के मेंबर जेम राइजन ने इसका कारण खोजने की कोशिश की। उनका कहना था कि इंसान तेज और धीमा, दोनों तरह सोच सकता है। तेजी से फैसला लेते वक्त उसमें इंट्यूशन यानी सहज ज्ञान और अधीरता शामिल रहती है। धीमा सोचते वक्त शांति और तर्क। हम जानबूझकर अंधविश्वास को मान लेते हैं क्योंकि किसी अनहोनी की आशंका से उपजी हमारी एंग्जाइटी को आराम मिल रहा होता है।

कई बार ये अंधविश्वास हमारे भीतर इतनी गहराई तक उतर जाते हैं कि जानलेवा साबित हो सकते हैं। दिल्ली बुराड़ी जैसे केस देख चुकी है, जहां परिवार के 11 लोगों ने सामूहिक आत्महत्या कर ली थी। साइकोलोग्स मैगजीन के मुताबिक, मानसिक रोग होने पर इंडिया में लोग डॉक्टर की तरफ कम, पुजारियों, तांत्रिकों की तरफ ज्यादा भागते हैं। अंधविश्वासों के चलते ओसीडी जैसे रोग क्रॉनिक स्टेज में चले जाते हैं। इसे मैजिकल थिंकिंग कहा जाता है। सामान्य ओसीडी में आदमी कोई ऊलजलूल हरकत एंग्जाइटी में करता है। लेकिन मैजिकल थिंकिंग ओसीडी में इसलिए करता है कि उसे डर होता है कि नहीं की तो पता नहीं क्या बुरा हो जाएगा।

बिलिविंग इन मैजिक : द साइकॉलजी ऑफ सुपरस्टिशंस नाम की बुक में कहा गया है- गुड लक के लिए किए गए अंधविश्वास से हमें अच्छा परफॉर्म करने का मनोवैज्ञानिक लाभ मिलता है। हमारा हालात पर कंट्रोल नहीं होता, इसलिए हमें एंग्जाइटी हो जाती है। लेकिन कुछ रिवाज निभाने से कुछ अच्छा हो जाए तो हमेशा के लिए उनमें विश्वास बढ़ जाता है। शायद ये छोटे-छोटे अंधविश्वास भी इसके अपवाद नहीं हैं।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version