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शरीर पर 80 घाव और एक हाथ-पैर खो चुके राणा सांगा से कांपते थे विरोधी, सिर कटने के बाद भी करते रहे युद्ध

अनन्या मिश्रा

राजस्थान के सबसे साहसी शूरवीरों में से एक महाराणा सांगा को उनकी वीरता और बलिदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया था। आज के दिन यानि की 12 अप्रैल को राणा सांगा का जन्म हुआ था।
राजस्थान के सबसे साहसी शूरवीरों में से एक महाराणा सांगा आज भी उनकी वीरता और बलिदान के लिए याद किया जाता है। राणा सांगा मेवाड़ के पूर्व शासक एवं महाराणा प्रताप के पूर्वज थे। उन्होंने मेवाड़ पर साल 1509 से 1528 तक शासन किया। बता दें कि राणा सांगा का जन्म आज ही के दिन यानि की 12 अप्रैल को हुआ था। विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध राणा सांगा ने सभी राजपूतों को एकजुट किया। राणा सांगा को एक बहादुर योद्धा व शासक होने के साथ ही वीरता और उदारता के लिये भी जाने जाते थे। आइए जानते हैं राणा सांगा के बारे में कुछ खास बातें…

जन्म

चित्तौड़ राजस्थान के राजा राणा रायमल के यहां 12 अप्रैल 1448 में महाराणा संग्राम सिंह यानी की राणा सांगा का जन्म हुआ। राणा सांगा अपने भाइओं में सबसे छोटे थे। लेकिन मोवाड़ के सिंहासन के लिए राणा सांगा को अपने भाइयों से भी संघर्ष करना पड़ा था। जिसके बाद वह मेवाड़ छोड़कर अजमेर पलायन कर जाते हैं और वहां पर कर्मचन्द पंवार की सहायता से 1509 में मेवाड़ राज्य प्राप्त कर वहां के शासक बने थे।

परिवार

राणा सांगा की पत्नी का नाम कर्णावती था। जिनसे उनको 4 पुत्र हुए, जिनके नाम नाम रतन सिंह द्वितीय, उदय सिंह द्वितीय, भोज राज और विक्रमादित्य सिंह थे। बताया जाता है कि राणा सांगा की कुल 22 पत्नियां थीं। हालांकि इसकी कहीं पर पुष्टि नहीं होती है।

राजपूतों को एकजुट करना

राणा सांगा सिसोदिया राजवंश के सूर्यवंशी शासक थे। ऐसा पहली बार हुआ था जब विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ राणा सांगा ने सभी राजपूतों को एकजुट करने का काम किया था। इसके अलावा उन्होंने दिल्ली, गुजरात, मालवा के मुगल बादशाहों के आक्रमणों से अपने राज्य की रक्षा की थी। राणा सांगा की बहादुरी के बारे में कहा जाता है कि आक्रमणकारी मेवाड़ पर हमला करने से पहले सौ बार सोचते थे।

शरीर पर मिले अनगिनत घाव

राणा सांगा ने अपने जीवन काल में तमाम युद्ध लड़े थे। इनमें से कुछ इब्राहिम लोधी, महमूद खिलजी और बाबार के खिलाफ भी लड़ाइयां शामिल थीं। कहा जाता है कि एक बार युद्ध के दौरान राणा सांगा के शरीर में करीब 80 घाव हुए थे। इस दौरान उनकी एक आंख, एक हाथ और एक पैर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। लेकिन इसके बाद भी वह युद्ध करते रहे। इसी कारण राणा सांगा को ‘मानवों का खंडहर’ भी कहा जाता था। वहीं खातोली के युद्ध में उनका एक हाथ कट गया था और एक पैर से वह असहाय हो गए थे।

गुजरात-मालवा के सुल्तान से युद्ध

गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर से राणा सांगा का युद्ध ईडर के चलते हुआ। ईडर के राव भाण के 2 पुत्र सूर्यमल और भीम थे। सूर्यमल के बाद उनका बेटा रायमल ईडर का उत्तराधिकारी बन कर गद्दी पर बैठा। लेकिन इसी दौरान रायमल के चाचा भीम ने गद्दी पर कब्जा कर लिया। जिसके बाद रायमल ने मेवाड़ के महाराणा सांगा से शरण मांगी। राणा सांगा ने रायमल के साथ अपनी पुत्री की सगाई कर दी। रायमल को उसकी गद्दी वापस दिलाने के लिए 1516 में महाराणा सांगा ने भीम के पुत्र भारमल को हटाकर ईडर का शासक पुन: रायमल को बनाया।

राणा सांगा द्वारा रायमल की मदद किए जाने पर गुजरात का सुल्तान मुजफ्फर उन पर भड़क गया और अहमदनगर में जागीरदार निजामुद्दीन को युद्ध के लिए भेजा। लेकिन यहां पर निजामुद्दीन को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद गुजरात के सुल्तान ने मुवारिजुल्मुल्क को भेजा। लेकिन सभी को हार मिली। 1520 में सुल्तान ने मलिक अयाज तथा किवामुल्मुल्क के नेतृत्व में अलग-अलग सेनाएं मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजी। लेकिन किन्हीं कारणों से उनकी सेना आगे नहीं बढ़ सकी और उन्हें वापस लौटना पड़ा।

इब्राहिम लोदी

सिकंदर लोदी के समय ही महाराणा सांगा ने दिल्ली के कई इलाकों पर अपना अधिकार करना शुरू कर दिया था। जब सिकंदर लोदी के उत्तराधिकारी यानि की इब्राहिम लोदी ने 1517 में मेवाड़ पर शासन की इच्छा से आक्रमण कर दिया। खातोली में राणा सांगा और इब्राहिम लोदी के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। इस युद्ध में महाराणा सांगा की विजय हुई। कहा जाता है कि इस युद्ध में राणा सांगा का बायां हाथ कट गया था और उनके घुटने में तीर लगने के कारण वह लंगड़े हो गए थे।

राणा सांगा ने बाबर से नहीं किया समझौता

माना जाता है कि बाबर चाहता था कि महाराणा सांगा इब्राहिम लोदी के खिलाफ उसका साथ दें। लेकिन दिल्ली और आगरा के अभियान के दौरान राणा सांगा ने बाबर का साथ नहीं दिया। महाराणा सांगा को लगता था कि बाबर भी तैमूर की तरह दिल्ली में लूटपाट कर वापस चला जाएगा। लेकिन जब उन्होंने देखा के 1526 में बाबर ने इब्राहिम लोदी को पानीपत के युद्ध में हराकर दिल्ली पर शासन शुरू कर दिया। तब राणा ने बाबर के साथ युद्ध करने का निश्चय किया।

खानवा का युद्ध

राणा सांगा और मुगल बादशाह बाबर के बीच 1527 में खानवा का युद्ध हुआ था। बाबर और राणा की सेना लगभग एक सामान थी। लेकिन फर्क इतना था कि मुगल बादशाह बाबर के पास गोला-बारुद थे और महाराणा सांगा के पास साहस और वीरता थी। इस युद्ध में बाबर ने राणा सांगा के सेनापति को लालच देकर अपनी ओर शामिल कर लिया। जिसके बाद बाबर से युद्ध करते हुए राणा सांगा की आंख में तीर लगा, लेकिन इसके बाद भी वह युद्ध करते ऱहे। इसी युद्ध में महाराणा सांगा को 80 घाव आए थे। राणा की बहादुरी देख मुगल बादशाह बाबर के भी होश उड़ गए थे। बहादुरी और वीरता से लड़ने वाले राणा सांगा को इस युद्ध में हार का सामना करना पड़ा था।

महाराणा सांगा का निधन

बताया जाता है कि खानवा के युद्ध में जब महाराणा सांगा बेहोश हो गए तो उनकी सेना उन्हें किसी सुरक्षित स्थान पर ले गई थी। जहां पर होश आने के बाद राणा सांगा ने फिर से युद्ध करने की ठानी और बिना विजय प्राप्त किए चित्तौड़ नहीं लौटने की कसम खाई। कहा जाता है कि राणा सांगा के इस फैसले को सुन जो सामंत नहीं चाहते थे कि फिर से युद्ध हो उन्होंने चुपके से राणा को जहर दे दिया। जिसके कारण उनकी 30 जनवरी 1528 को कालपी में मौत हो गई।

विधि विधान से राणा सांगा का अन्तिम संस्कार माण्डलगढ में किया गया। इतिहासकारों में मुताबिक महाराणा सांगा के दाह संस्कार के बाद उस स्थल पर एक छतरी बनाई गई। बताया तो यह भी जाता है कि मांडलगढ़ क्षेत्र में मुगल सेना पर राणा सांगा तलवार लेकर गरजे थे। इस युद्ध में राणा सांगा का सिर धड़ से अलग हो गया था। लेकिन इसके बाद भी उनका धड़ लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। इस युद्ध में महाराणा सांगा का सिर माण्डलगढ़ की भूमि पर गिरा था और उनका धड़ लड़ता हुआ चावण्डिया तालाब के पास वीरगति को प्राप्त हुआ।

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