Dr DK Garg
Note -यह आलेख महात्मा बुद्ध के प्रारम्भिक उपदेशों पर आधारित है। ।और विभिन्न विद्वानों के विचार उपरांत है। ये 9 भाग में है।
इसको पढ़कर वे पाठक विस्मय का अनुभव कर सकते हैं जिन्होंने केवल परवर्ती बौद्ध मतानुयायी लेखकों की रचनाओं पर आधारित बौद्ध मत के विवरण को पढ़ा है ।
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क्या बौद्ध धर्म के लोग शराब पी सकते है ?
प्रश्न उठता है की यदि शराब पीना बौध धर्म का उलंघन है, अधर्म है तो इसके विरूद्ध बौद्ध धर्म में कोई सन्यासी, प्रचारक या बौद्ध समाज अपनी आवाज क्यों नहीं उठाता ? 75% से अधिक बौद्ध अनुयायी शराब का सेवन परिवार सहित करते है। और बौध देश इसके लिए प्रसिद्ध है।
शराब का उत्पादन और उपभोग बुद्ध के समय से बहुत पहले से प्रचलित था।बुद्ध ने माना था कि मादक पदार्थों (शराब) में लिप्त होने के कारण सचेतनता खो जाती है, जो कि अनुभूति प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण गुण है। इस संदर्भ में असावधानी का अर्थ नैतिक लापरवाही है, जो सही और गलत के बीच की सीमा को समझने के लिए मन की स्पष्टता को अस्पष्ट करता है।
इसलिए, बुद्ध ने एक द्वंद्व सूत्र में नशे के नकारात्मक पक्ष को शामिल किया: “शराब की एक बूंद भी पीने और नशीले पदार्थों को लेने से परहेज करना है क्योंकि वे लापरवाही का कारण हैं। यदि कोई बौद्ध नशीले पेय के लालच में पड़ जाता है, तो वे मुझे शिक्षक नहीं मानेंगे।”
बुद्ध ने अनुयायियों के लिए जो न्यूनतम नैतिक पालन के रूप में पाँच उपदेश निर्धारित किए थे: हत्या, चोरी, यौन दुराचार, झूठ बोलना और नशीली दवाओं के सेवन से बचना।
ये नियम बुद्ध द्वारा एक गाँव के द्वार के बाहर एक भिक्षु के नशे में गिरने के बाद निर्धारित किया गया था क्योंकि सभी ग्रामीणों ने उसे नारियल की ताड़ी दी थी जब वह अपने भिक्षाटन के चक्कर में था।
ब्रह्म नेट सूत्र (चीनी मनगढ़ंत सूत्र) में सूचीबद्ध बोधिसत्वों के लिए 10 प्रमुख उपदेशों में बोधिसत्वों के लिए शराब बेचना एक बड़ा अपराध बताया गया है।
बुद्ध की शिक्षाएँ धूम्रपान आदि के बारे में सीधे तौर पर कुछ नहीं कहतीं लेकिन तम्बाकू और धूम्रपान का बौद्ध निषेध बाद में गुरु पद्मसंभव के समय में आया।
कुल मिलाकर ये कह सकते है की इस धर्म में जो शराब की मनाही है वो केवल कागजी है क्योंकि बौध कभी शराब,नशा आदि के विरुद्ध जाग्रत नही करते ।