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महाजनपद काल – एक सम्पूर्ण यात्रा (भाग-4)- शूरसेन महाजनपद

उगता भारत ब्यूरो

शूरसेन / सूरसेन / शौरसेनाई / शौरि महाजनपद

शूरसेन महाजनपद उत्तरी-भारत का प्रसिद्ध जनपद था, मथुरा और उसके आसपास के क्षेत्र इस जनपद में शामिल थे,आधुनिक मथुरा नगर ही इसकी राजधानी था।प्राचीन मथुरा के आस-पास जो राज्य कायम हुआ, उसका पुराना नाम `शूरसेन’ मिलता है । यह नाम किस व्यक्ति विशेष के कारण पड़ा? यह विचारणीय है । पुराणों की वंश-परंपरा-सूचियों को देखने से पता चलता है कि शूर या शूरसेन नाम के कई व्यक्ति प्राचीन काल में हुए । इनमें उल्लेखनीय ये है-हैहयवंशी कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्र शूरसेन, भीम सात्‍वत के पुत्र अंधक के परनाती शूर राजाधिदेव, श्रीराम के छोटे भाई शत्रुघ्न के पुत्र शूरसेन तथा श्रीकृष्ण के पितामह शूर । श्रीकृष्ण के पितामह का नाम शूर था, न कि शूरसेन (हरिवंश, विष्णु आदि पुराणों में तथा परवर्ती संस्कृत साहित्य में श्री कृष्ण के लिये ‘शौरि’ नाम मिलता है ।) । इनके नाम से जनपद की संज्ञा का आविर्भाव मानने में कठिनाई प्रतीत होती है।कुछ इतिहासकारों के मतानुसार यह एक क़बीला था जिसने ईसा पूर्व 600-700 के आस-पास ब्रज पर अपना अधिकार कर लिया था और स्थानीय संस्कारों से मेल बढ़ने के लिए कृष्ण पूजा शुरू कर दी।

ग्रंथों में उल्लेख-

*शूरसेन ने पुरानी मथुरा के स्थान पर नई नगरी बसाई थी जिसका वर्णन वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में है।

*शूरसेन-जनपदीयों का नाम भी वाल्मीकि रामायण में आया है- ‘तत्र म्लेच्छान्पुलिंदांश्च सूरसेनांस्तथैव च, प्रस्थलान् भरतांश्चैय कुरूंश्च यह मद्रकै:’।

*वाल्मीकि रामायण में मथुरा को शूरसेना कहा गया है:-‘भविष्यति पुरी रम्या शूरसेना न संशय:’.

*महाभारत में शूरसेन-जनपद पर सहदेव की विजय का उल्लेख है- ‘स शूरसेनान् कार्त्स्न्येन पूर्वमेवाजयत् प्रभु:, मत्स्यराजंच कौरव्यो वशेचक्रे बलाद् बली’।

*कालिदास ने रघुवंश में शूरसेनाधिपति सुषेण का वर्णन किया है- ‘सा शूरसेनाधिपतिं सुषेणमुद्दिश्य लोकान्तरगीतकीर्तिम्, आचारशुद्धोभयवंशदीपं शुद्धान्तरक्ष्या जगदे कुमारी’।

*इसकी राजधानी मथुरा का उल्लेख कालिदास ने इसके आगे रघुवंश में किया है।

*श्रीमद् भागवत में यदुराज शूरसेन का उल्लेख है जिसका राज्य शूरसेन-प्रदेश में कहा गया है।

मथुरा उसकी राजधानी थी- ‘शूरसेना यदुपतिर्मथुरामावसन् पुरीम्, माथुरान्छूरसेनांश्च विषयान् बुभुजे पुरा, राजधानी तत: साभूत सर्वयादभूभुजाम्, मथुरा भगवान् यत्र नित्यं संनिहितों हरि:’।
विष्णु पुराण में शूरसेन के निवासियों को ही संभवत: शूर कहा गया है और इनका आभीरों के साथ उल्लेख है- ‘तथापरान्ता: सौराष्ट्रा: शूराभीरास्तथार्बुदा:’।

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